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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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धरती बोल उठी - रांगेय राघव |
चला जो आजादी का यह |
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बढ़े चलो! बढ़े चलो! - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
न हाथ एक शस्त्र हो |
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चाहता हूँ देश की.... - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
मन समर्पित, तन समर्पित |
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फ़क़ीराना ठाठ | गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
आ तुझको दिखाऊँ मैं अपने ठाठ फ़क़ीराना |
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ये देश है विपदा में - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक |
देश हमारा है विपदा में, साथी तुम उठ जाओ। |
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हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
हमने कलम उठा नहीं रखी, गीत किसी के गाने को॥ |
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तेरी मरज़ी में आए जो - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
तेरी मरज़ी में आए जो, वही तो बात होती है |
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मुस्कुराकर चल मुसाफिर - गोपाल दास 'नीरज' |
पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर। |
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आगे बढ़ेंगे - अली सरदार जाफ़री |
वो बिजली-सी चमकी, वो टूटा सितारा, |
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मेरे देश की माटी सोना | गीत - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना, |
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