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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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हिन्दी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
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आर्य-स्त्रियाँ - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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बेटी को उसके अठाहरवें जन्मदिन पर पत्र - अनिल जोशी | Anil Joshi |
आशा है तुम सकुशल होगी |
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देश पीड़ित कब तक रहेगा - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक |
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फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच |
कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है, |
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मेरे देश का एक बूढ़ा कवि - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया |
फटे हुए लिबास में क़तार में खड़ा हुआ |
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बैठे हों जब वो पास - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
बैठे हों जब वो पास, ख़ुदा ख़ैर करे |
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तू, मत फिर मारा मारा - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
निविड़ निशा के अन्धकार में |
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यह चिंता है | ग़ज़ल - त्रिलोचन |
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लोकतंत्र का ड्रामा देख - हलचल हरियाणवी |
विदुर से नीति नहीं |
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है |
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जय जय जय अंग्रेजी रानी! - डॉ. रामप्रसाद मिश्र |
जय जय जय अंग्रेजी रानी! |
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दिव्य दोहे - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
अपने अपने काम से है सब ही को काम। |
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गांव पर हाइकु - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
डॉ. 'मानव' हाइकु, दोहा, बालकाव्य तथा लघुकथा विधाओं के सुपरिचित राष्ट्रीय हस्ताक्षर हैं तथा विभिन्न विधाओं में लेखन करते हैं। गांव पर लिखे उनके कुछ हाइकु यहाँ दिए जा रहे हैं: |
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मैं सबको आशीष कहूँगा - नरेन्द्र दीपक |
मेरे पथ में शूल बिछाकर दूर खड़े मुस्कानेवाले |
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बटोही, आज चले किस ओर? - भगवद्दत्त ‘शिशु' |
नहीं क्या इसका तुमको ज्ञान, |
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दो पल को ही गा लेने दो - शिवशंकर वशिष्ठ |
दो पल को ही गा लेने दो। |
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परिवर्तन | गीत - ताराचन्द पाल 'बेकल' |
भूख, निराशा, बेकारी का कटता जाए हर बन्धन। |
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फूल और काँटा | Phool Aur Kanta - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
हैं जनम लेते जगह में एक ही, |
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दो ग़ज़लें - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar |
झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं |
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अभिलाषा - राजकुमारी गोगिया |
दीप की लौ सा लुटा कर प्यार अपना |
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भला क्या कर लोगे? - डॉ. शैलेश शुक्ला |
है हर ओर भ्रष्टाचार, भला क्या कर लोगे |
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स्काइप की डोर - गुलशन सुखलाल |
जिस दिन नेटवर्क नहीं मिलता |
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कविता सतत अधूरापन - कविता वाचक्नवी |
कविता........! |
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कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल - ममता मिश्रा |
कहाँ तक बचाऊँ ये हिम्मत कहो तुम |
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