मुस्लिम शासन में हिंदी फारसी के साथ-साथ चलती रही पर कंपनी सरकार ने एक ओर फारसी पर हाथ साफ किया तो दूसरी ओर हिंदी पर। - चंद्रबली पांडेय।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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प्रहलाद - होलिका की कथा | पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है।
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समाधान - भारत-दर्शन संकलन

एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
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मनुष्य का परम धर्म - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

होली का दिन है। लड्डू के भक्त और रसगुल्ले के प्रेमी पंडित मोटेराम शास्त्री अपने आँगन में एक टूटी खाट पर सिर झुकाये, चिंता और शोक की मूर्ति बने बैठे हैं। उनकी सहधर्मिणी उनके निकट बैठी हुई उनकी ओर सच्ची सहवेदना की दृष्टि से ताक रही है और अपनी मृदुवाणी से पति की चिंताग्नि को शांत करने की चेष्टाकर रही है।
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नदियाँ और समुद्र  - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

एक ऋषि थे, जिनका शिष्य तीर्थाटन करके बहुत दिनों के बाद वापस आया।
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सरोज रानियाँ - डॉ. वंदना मुकेश | इंग्लैंड

क्लास में घुस ही रही थी कि मिसेज़ चैडवेल की आवाज़ से मेरे चाबी ढूँढते हाथ अनजाने ही सहम गए।
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कृष्ण-पूतना की कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया।
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इतिहास का वर्तमान - अभिमन्यु अनत

एक बार जब बोनोम नोनोन अपने मित्र बिसेसर के साथ अपनी कुटिया के सामने ढपली बजाता हुआ जोर-जोर से गाने और नाचने लगा था तो मेस्ये गिस्ताव रोवियार उस तक पहुँच आया था। उस शाम पहले ही से बोतल खाली किए बैठे नोनोन ने जगेसर से चिलम लेकर गाँजे के दो लंबे कश भी ले लिए थे। उस ऊँचे स्वर के गाने के कारण मेस्ये रोवियार ने नोनोन को डाँटते हुए कहा था। कि वह जंगलियों की तरह शोर मत करे। रोवियार की नजर बिसेसर पर नहीं पड़ी थी, क्योंकि अपने पुराने मालिक के बेटे को दूर ही से ढलान पार करते बिसेसर ने देख लिया था। बिसेसर का घर नदी के उस पार था, जो इस इलाके में नहीं आता था। इस इलाके में बिसेसर का आना मना था; पर अपने मित्र नोनोन से मिलने वह कभी-कभार आ ही जाता था। शक्कर कोठी के छोटे मालिक गिस्ताव का आलीशन मकान, जिसे बस्ती के लोग 'शातो' कहते थे, वास्तव में एक महल ही तो था। नोनोन की झोंपड़ी से ऊपर जहाँ पहाड़ी दूर तक समतल थी और जहाँ यह महल स्थित था, वह स्थान तीन ओर से हरे-भरे मनमोहक पेड़ों से घिरा हुआ था।
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शिव पार्वती कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरांत शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया।
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ढुंढा राक्षसी की कथा | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

इस कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के पूर्वजों के राज्य में एक माली नामक राक्षस की बेटी ढुंढा राक्षसी थी। इस राक्षसी ने भगवान शिव को प्रसन्न के करके तंत्र विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसे ऐसा वर प्राप्त था जिससे उसके शरीर पर किसी भी देवता या दानव के शस्त्रास्त्र का कोई मारक प्रभाव नहीं होता था। इस प्रकार भयमुक्त ढुंढा प्रत्येक ग्राम और नगर के बालकों को पीड़ा पहुंचाने लगी।
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पृथ्वीराज चौहान का होली से संबंधित प्रश्न | होली की पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन

एक समय राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दरबार के राज-कवि चन्द से कहा कि हम लोगों में जो होली के त्योहार का प्रचार है, वह क्या है? हम सभ्य आर्य लोगों में ऐसे अनार्य महोत्सव का प्रचार क्योंकर हुआ कि आबाल-वृद्ध सभी उस दिन पागल-से होकर वीभत्स-रूप धारण करते तथा अनर्गल और कुत्सित वचनों को निर्लज्जता-पूर्वक उच्चारण करते है । यह सुनकर कवि बोला- ''राजन्! इस महोत्सव की उत्पत्ति का विधान होली की पूजा-विधि में पाया जाता है । फाल्गुन मास की पूर्णिमा में होली का पूजन कहा गया है । उसमें लकड़ी और घास-फूस का बड़ा भारी ढेर लगाकर वेद-मंत्रो से विस्तार के साथ होलिका-दहन किया जाता है । इसी दिन हर महीने की पूर्णिमा के हिसाब से इष्टि ( छोटा-सा यज्ञ) भी होता है । इस कारण भद्रा रहित समय मे होलिका-दहन होकर इष्टि यज्ञ भी हो जाता है । पूजन के बाद होली की भस्म शरीर पर लगाई जाती है ।
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जेल-जीवन की झलक - गणेशशंकर विद्यार्थी | Ganesh Shankar Vidyarthi

जेल जाने के पहले जेल के संबंध में हृदय में नाना प्रकार के विचार काम करते थे। जेल में क्‍या बीतती है, यह जानने के लिए बड़ी उत्‍सुकता थी। कई मित्रों से, जो इस यात्रा को कर चुके थे, बातें हुई। किसी ने कुछ कहा और किसी ने कुछ। इस विषय में कुछ साहित्‍य भी पढ़ा। महात्‍मा गाँधी के 'जेल के अनुभव' को बहुत पहले पढ़ चुका था। भाई परमानंद के 'जेलजीवन' को भी पढ़ा। जो कुछ सुना और जो कुछ पढ़ा, उस सबसे इसी नतीजे पर पहुँचा था कि जेल-जीवन है कठिन जीवन और वहाँ जो कुछ बीतती है उसे भूलना कठिन हो जाता है।
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हम से सयाने बालक - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy

रूस देश की बात है। ईस्टर के शुरू के दिन थे। बरफ यों गल चला था, पर आँगन में कही-कही अब भी चकते थे। और गलगल कर बरफ का पानी गाँव की गलियों मे ही बहता था।
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जामुन का पेड़ - कृश्न चंदर

रात को बड़े जोर का अंधड़ चला। सेक्रेटेरिएट के लॉन में जामुन का एक पेड़ गिर पडा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे मालूम हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है।
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ठेस - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu'

खेती-बारी के समय, गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसको बेकार ही नहीं, 'बेगार' समझते हैं। इसलिए, खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा, उसको बुला कर? दूसरे मजदूर खेत पहुँच कर एक-तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचन राय हाथ में खुरपी डुलाता दिखाई पड़ेगा - पगडंडी पर तौल तौल कर पाँव रखता हुआ, धीरे-धीरे। मुफ्त में मजदूरी देनी हो तो और बात है।
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चन्दबरदाई और पृथ्वीराज चौहान - रोहित कुमार 'हैप्पी'

चन्द हिंदी भाषा के आदि कवि माने जाते हैं। ये सदैव भारत वर्ष के अंतिम सम्राट चौहान-कुल के पृथ्वीराज चौहान के साथ रहा करते थे। दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन भर की कहानियों का वर्णन इन्होंने अपने ‘पृथ्वीराज रासो' में किया है। शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने संवत् 1250 में थानेश्वर की लड़ाई में पृथ्वीराज को पकड़ लिया, और उनकी दोनों आंखें फोड़कर कैद कर लिया। उसी समय उनके परमप्रिय सामन्त कविवर चन्दबरदाई को भी कारावास में डाल दिया।
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अंतिम दर्शन  - पूनम चंद्रलेखा

सुबह से कई बार स्वप्निल का मोबाइल बजा था किन्तु, वह बिना देखे ही कॉल बार-बार काट देता।
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खम्भे पर बेल - सुनील कुमार शर्मा

मोलू चायवाले की दुकान के सामने, गंदे नाले के किनारे खड़े बिजली के खम्भे पर गलती से एक जंगली बेल चढ़ गयी। हर रोज मोलू की दुकान पर बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ गपशप करने वाले देश के जागरूक नागरिकों की निगाह, जब उस बेल पर पड़ी तो वे सतर्क हो गए। उन्होंने तुरंत इसकी सूचना मोहल्ले के पार्षद को दी। पार्षद महोदय गरजे, "मेरे इलाके में इस बेल ने खम्भे पर चढ़ने की जुर्रत कैसे की?... चलो हम विद्युत् विभाग के एस.डी.ओ के पास चलते है।"
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साझा घाव - दिलीप कुमार

कई दिनों से वे दोनों मजदूर चौक पर आते थे। पूरा-पूरा दिन बिता देते थे मगर उनकी दिहाड़ी नहीं लगती थी। माहौल में एक अजीब तरह की तल्खी और सिहरन थी। इंसानों के वहशीपन को प्रशासन ने डंडे की चोट से शांत तो करा दिया था मगर कुछ लोग खासे असंतुष्ट थे। उन्हें खुलकर वह सब करने का मौका नहीं मिल पाया था जो वे करना चाहते थे। दंगे के प्रभाव से मजदूर चौक भी अछूता नहीं रहा था क्योंकि दंगे के दिन ही सात मजदूर मार दिए गए थी। उनका दोष सिर्फ इतना था कि वे एक ऐसे इलाके में मजदूरी करने गए थे जहां उनके धर्म के लोगों की आबादी कम थी। जिस तरह रोटी की जरूरत साझी होती है, उसी तरह नफरत की विरासत भी साझी थी। लोगों को जब मारने के लिए कोई और न मिलता थे तो अपने इलाके में आये दूसरे धर्म के मजदूरों पर ही हमला करके उनको अधमरा कर देते थे। ये सिलसिला बढ़ा तो मजदूरों ने अपने-अपने इलाके में ही मजदूरी करना बेहतर समझा। मगर मजदूरी के अवसर मजहब देख कर पैदा नहीं होते। नतीजा कई दिनों तक उन दोनों को मजदूरी नहीं लगी। दोनों रोटियाँ लेकर आते फिर दोपहर में सब्जी बाँट लिया करते थे। बीड़ी, तमाखू की अदला-बदली करके बिना दिहाड़ी लगाए घर लौट जाते। हालात बिगड़े तो सब्ज़ियां आनी बन्द हो गयीं, अमल-पत्ती के भी लाले पड़ गए। किसी दिन बरसाती अली रोटियां लाता तो किसी दिन घसीटालाल। उन दोनों को अपनी पसंद के इलाके में मजदूरी ना मिली और दूसरे इलाकों में जाने पर जान का खतरा था। उनके घरों में रोटियां पकनी बन्द हो गयीं और वे खाली पोटलियों के साथ आते और नाउम्मीद होकर लौट जाते। उन्हें मौत अवश्यंभावी नजर आ रही थी, एक तरफ दंगाइयों से मारे जाने का भय दूसरी तरफ भूख से मर जाने का अंदेशा।
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कोठरी की बात - अज्ञेय | Ajneya

मुझ पर किसी ने कभी दया नहीं की, किन्तु मैं बहुतों पर दया करती आयी हूँ। मेरे लिए कभी कोई नहीं रोया, किन्तु मैंने कितनों के लिए आँसू बहाये हैं, ठंडे, कठोर, पत्थर के आँसू...
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