समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

 
गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

Articles Under this Category

खेत में तपसी खड़ा है - भैयालाल व्यास

खेत में तपसी खड़ा है।
हाथ की ठेठे बतातीं,
भाग्य से कितना लड़ा है! खेत में तपसी खड़ा है।
...

आओ साथी जी लेते हैं - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

आओ साथी जी लेते हैं
विष हो या अमृत हो जीवन
सहज भाव से पी लेते हैं
...

बदलकर आंसुओं की धार | गीत - तुलसी

बदलकर आंसुओं की धार को मैं मुस्कुराती हूँ।
जगाती ओज की धारा बहुत सुख-चैन पाती हूँ॥
ना मेरे शब्द है उनके लिए जो देशद्रोही हैं।
वतन से प्यार है जिनको उन्हें कविता सुनाती हूँ॥
बदलकर आंसुओं की-------
...

रो उठोगे मीत मेरे  - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,
पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।
...

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश