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गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
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खेत में तपसी खड़ा है - भैयालाल व्यास |
खेत में तपसी खड़ा है। |
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आओ साथी जी लेते हैं - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित' |
आओ साथी जी लेते हैं |
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बदलकर आंसुओं की धार | गीत - तुलसी |
बदलकर आंसुओं की धार को मैं मुस्कुराती हूँ। |
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रो उठोगे मीत मेरे - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ, |
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