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बाल-साहित्य |
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं। |
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हिन्दी ही अपने देश का गौरव है मान है - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा' |
पश्चिम की सभ्यता को तो अपना रहे हैं हम, |
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बीरबल की पैनी दृष्टि - अकबर बीरबल के किस्से |
बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें। |
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शेखचिल्ली और सात परियाँ - भारत-दर्शन संकलन |
शेखचिल्ली जवान हो चला तो एक दिन मां ने कहा- 'मियां कुछ काम-धंधा करने की सोचो!' |
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मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी - द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी |
मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी |
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चार बाल गीत - प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Prabhudyal Shrivastava |
यात्रा करो टिकिट लेकर |
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सिंह को जीवित करने वाले - विष्णु शर्मा |
किसी शहर में चार मित्र रहते थे। वे हमेशा एक साथ रहते थे। उनमें से तीन बहुत ज्ञानी थे। चौथा दोस्त इतना ज्ञानी नहीं था फिर भी वह दुनियादारी की बातें बहुत अच्छी तरह जानता था। |
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पीछे मुड़ कर कभी न देखो - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना, |
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