मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
हमदर्दी | लघु-कथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

बस खच्चाखच भरी थी। एक नौजवान ने जब एक बुढ़िया को अपनी बगल में खड़े पाया तो झट से आँखें मूंद लीं, मानो सो रहा हो।

अगले बस अड्डे पर एक सुंदर नवयुवती बस में चढ़ी व उसी लड़के के समीप जा खड़ी हुई। लड़का झट से अपनी सीट से खड़ा होते हुए उस लड़की से बोला, 'आप बैठिए!'

लड़की बैठने लगी तो उसकी निगाह पास खड़ी बुढ़िया पर पड़ी। "मांजी, आप बैठिए, मैं तो खड़ी रह सकती हूँ।'' कहते हुए, लड़की ने बुढ़िया की बांह पकड़ कर सहारा देते हुए उसे खाली हुई सीट पर बिठा दिया।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'
[भारत-दर्शन, अक्टूबर-नवंबर 1996]

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