वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
 

न्यूज़ीलैंड में हिंदी का भविष्य और भविष्य की हिंदी

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

लगभग 50 लाख की जनसंख्या वाले न्यूज़ीलैंड में अँग्रेज़ी और माओरी न्यूज़ीलैंड की आधिकारिक भाषाएं है। यहाँ सामान्यतः अँग्रेज़ी का उपयोग किया जाता है।

यद्यपि अंग्रेजी न्यूजीलैंड में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है तथापि माओरी और न्यूजीलैंड सांकेतिक भाषा, दोनों को औपचारिक रूप से न्यूजीलैंड की आधिकारिक भाषाओं के रूप में संवैधानिक तौर पर विशेष दर्जा प्राप्त है। यहाँ के निवासियों को किसी भी कानूनी कार्यवाही में माओरी और न्यूजीलैंड सांकेतिक भाषा का उपयोग करने का अधिकार है।

2018 की जनगणना के अनुसार यहाँ भारतीयों की कुल जनसंख्या 2,25,414 है। जनसंख्या की दृष्टि से न्यूजीलैंड यूरोपीय (64.1 प्रतिशत), माओरी (16.5 प्रतिशत), चीनी (4.9 प्रतिशत) समुदाय के पश्चात भारतीय (4.7 प्रतिशत) चौथा बड़ा समुदाय है। पाँचवें स्थान पर सामोअन (3.9 प्रतिशत) आते हैं।

हिंदी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में पांचवें स्थान पर है, जबकि 2013 की जनगणना में इसका स्थान चौथा था। इस समय अँग्रेज़ी, माओरी, सामोअन व चीनी भाषा के बाद हिंदी सर्वाधिक बोले/समझे जाने वाली भाषा है। 2018 की जनगणना के अनुसार 69,471 लोग हिंदी का उपयोग करते हैं।

न्यूज़ीलैंड और हिंदी

लगभग पचास लाख की जनसंख्या वाला यह छोटा-सा देश हिंदी के मानचित्र पर अपनी विशेष पहचान रखता है। न्यूज़ीलैंड ने हिंदी जगत को इंटरनेट पर विश्व का पहला प्रकाशन देकर, हिंदी वेब पत्रकारिता में अपना नेतृत्व स्थापित किया। जहां तक प्रवासी भारतीयों का संबंध है, पंजाब और गुजरात के भारतीय न्यूज़ीलैंड में बहुत पहले से बसे हुए हैं किन्तु 1990 के आसपास बहुत से लोग मुम्बई, देहली, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा इत्यादि राज्यों से आकर यहाँ बस गए। इस समय न्यूज़ीलैंड में हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, फीजी हिंदी, हिंदी बात, बंगाली, उडिया, नेपाली, पंजाबी, सिंधी, कश्मीरी, सिंहला, गुजराती, कोंकणी, मराठी, द्रविड़ियन, कन्नड, मलयालम, तमिल और तेलुगु भाषाएँ बोली जाती हैं।

न्यूज़ीलैंड में हिंदी का भविष्य

आज न्यूज़ीलैंड में भारत-दर्शन जैसी हिंदी पत्रिका के अतिरिक्त हिंदी रेडियो और टीवी भी हैं, जिनमें रेडियो तराना और रेडियो ‘अपना 990 एएम’ अग्रणी हैं। हिंदी रेडियो और टीवी अधिकतर मनोरंजन के क्षेत्र तक ही सीमित है किंतु मनोरंजन के इन माध्यमों को आवश्यकतानुसार हिंदी अध्यापन का एक सशक्त माध्यम बनाया जा सकता है। बीबीसी व वॉयस ऑव अमेरिका इस प्रकार के सफल प्रयोग कर चुके हैं। विदेशों में सक्रिय भारतीय मीडिया भी इस संदर्भ में बीबीसी व वॉयस ऑव अमेरिका से सीख लेकर, उन्हीं की तरह हिंदी के पाठ विकसित करके, उन्हें अपने प्रसारण व अपनी वेब साइट से जोड़ सकता है। बीबीसी और वॉयस ऑव अमेरिका अंग्रेजी के पाठ अपनी वेब साइट पर उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त इनका प्रसारण भी करते रहे हैं।

ऑकलैंड में 1945 के आसपास हिंदी शिक्षण का उल्लेख मिलता है। पंडित अमीचन्द ने ऑकलैंड में 1945 के आसपास हिंदी की कक्षाएँ आरंभ की थी। यह न्यूज़ीलैंड में भाषा शिक्षण का सबसे पहला प्रयास था। वर्तमान में दर्जन से अधिक हिंदी विद्यालय संचालित हैं। अनेक संस्थाएं हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगी हुई हैं। 1992 में स्थापित ‘वैलिंगटन हिंदी स्कूल’ न्यूज़ीलैंड में सुचारु सबसे पुराना हिंदी विद्यालय कहा जा सकता है। ऑकलैंड का ‘वायटाकरे हिंदी स्कूल’ न्यूज़ीलैंड का सबसे बड़ा हिंदी विद्यालय है। इसके अतिरिक्त ऑकलैंड का पापाटोएटोए हाई स्कूल देश का पहला मुख्यधारा का स्कूल था जिसने स्वैच्छिक पाठ्यक्रम के रूप में हिंदी का विकल्प उपलब्ध करवाया।

न्यूज़ीलैंड के विभिन्न सप्ताहांत विद्यालयों में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं लेकिन औपचारिक रुप से हिंदी शिक्षण की कोई व्यवस्था अभी नहीं है। न्यूज़ीलैंड में हिंदी को अभी राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में मान्यता प्राप्त नहीं है। यहाँ के एनसीईए (NCEA/National Certificate of Educational Achievement) में हिंदी के सम्मिलित न होने के कारण विद्यार्थियों को यह विषय लेने में रुचि नहीं रहती चूंकि परीक्षाओं में उन्हें हिंदी पढ़ने से कोई शैक्षणिक लाभ नहीं मिलता। हिंदी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में मान्यता मिले, इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

यहाँ की एक हिंदी शिक्षिका अनीता बिदेसी अपनी चिंता इस प्रकार व्यक्त करती हैं, “माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले भारतीय बच्चों के अभिभावकों को लगता है कि उनके बच्चों को उन विषयों को महत्व दिया जाना चाहिए जो उनके बच्चों की अगली कक्षाओं में मदद कर सकें, जब वे आगे हाई स्कूल में जाएं। इसी कारण, वे चाहते हैं कि उनके बच्चे हिंदी का विकल्प न चुनें। शायद जब एनसीईए (NCEA) स्तर पर हिंदी का विकल्प उपलब्ध होगा तो अधिक छात्र ‘हिंदी’ विषय लेने के लिए तैयार होंगे।“

हिंदी शिक्षण का वर्तमान परिदृश्य

इस समय कई संस्थाएं अपने स्तर पर हिंदी शिक्षण में लगी हुई हैं। अभी तक यहाँ हिंदी पठन-पाठन का स्तर व माध्यम अव्यावसायिक और स्वैच्छिक रहा है। हिंदी के इस अध्ययन-अध्यापन का कोई स्तरीय मानक अभी नहीं है। स्वैच्छिक हिंदी अध्यापन में जुटे हुए भारतीय मूल के लोगों में व्यावसायिक स्तर के शिक्षकों का अधिकतर अभाव रहा है। गूगल क्लासरूम (Google Classroom) और मूडल (Moodle) जैसे संसाधन अभी यहाँ के किसी हिंदी विद्यालय में उपयोग नहीं किए जा रहे। ऑनलाइन हिंदी शिक्षण को और प्रभावी बनाने के लिए उपलब्ध उपयुक्त संसाधनों के उपयोग और इसके लिए यथासंभव प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है।

पिछले कुछ वर्षों से काफी गैर-भारतीय भी हिंदी में रुचि दिखाने लगे हैं। न्यूजीलैंड में अपने कामकाज और अच्छे खासे जीवन को तिलांजलि देकर भारत में जा बसे ‘कार्ल रॉक’ अपने यूट्यूब चैनल और ऑनलाइन गाइड, ‘लर्न हिंदी फ़ास्टर देन आइ डिड’ के माध्यम से ‘हिंदी’ का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

‘कार्ल’ अपने यूट्यूब चैनल में धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं। इनके चैनल के सदस्यों की संख्या 2022 में 20 लाख से भी अधिक हो चुकी है। इनके सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है, यह संख्या 2019 में लगभग 7 लाख थी। हिंदी शिक्षण पर प्रकाशित इनकी ऑनलाइन गाइड किसी न्यूज़ीलैंडर द्वारा किया गया ऐसा पहला प्रयास है।

वेब द्वारा हिंदी शिक्षण और उसकी संभावनाएं

ऑनलाइन शिक्षण की संभावनाएं प्रबल हैं। कोरोना के चलते शिक्षक और विद्यार्थी दोनों पर्याप्त रूप से ऑनलाइन शिक्षण से परिचित हो चुके हैं। अधिकतर विद्यालयों में ज़ूम से ऑनलाइन कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं लेकिन इसे केवल एक अस्थायी विकल्प के रूप में देखा गया। अभी तक किसी विद्यालय ने इसपर पूरी गंभीरता से विचार नहीं किया। दो वर्षों से अधिक की कालावधि में ऑनलाइन शिक्षण जिसमें विद्यार्थी ऑनलाइन पाठ पढ़ सकें, गृहकार्य कर सकें और शिक्षक इन्हें देखकर अंक इत्यादि दे सकें, ऐसी किसी परियोजना पर विचार नहीं किया गया।

न्यूज़ीलैंड के लिए ऑनलाइन हिंदी शिक्षण नया नहीं है। न्यूज़ीलैंड में 1997-98 में हिंदी पत्रिका भारत-दर्शन के प्रयास से एक वेब आधारित ‘हिंदी-टीचर’ का आरम्भ किया गया। इंटरनेट पर हिंदी सिखाने की पहल भारत-दर्शन ने की। एक ऑनलाइन 'हिंदी टीचर' विकसित किया गया जिसके माध्यम से जिनकी भाषा हिंदी नहीं, वे हिंदी सीख सकें। इसके शिक्षण का माध्यम अंग्रेज़ी रखा गया ताकि विदेशों में जन्मे बच्चे व विदेशी इसका लाभ उठा सकें। आज सब कुछ सरल सुलभ है लेकिन 90 के दशक में यह तकनीक व प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवाना अपने आप में एक उपलब्धि थी। इंटरनेट आधारित ‘हिंदी-टीचर' विकसित करके भारत-दर्शन ने हिंदी जगत में एक नया अध्याय जोड़ा था।

न्यूज़ीलैंड में औपचारिक हिंदी की संभावना

न्यूज़ीलैंड में औपचारिक हिंदी की संभावना अभी दिखाई नहीं पड़ती लेकिन इसमें लोगों की रुचि अवश्य है। न्यूज़ीलैंड में औपचारिक हिंदी की संभावना तलाशने से पहले हमें कई तथ्यों को समझने और उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता होगी। भारतीय समुदाय में भिन्नता होने के कारण एकजुटता एक बड़ी समस्या है, इस तथ्य से हम सब परिचित हैं। न्यूज़ीलैंड का भारतीय समाज भी इसका अपवाद नहीं।

वर्ष 2018 की जनगणना में हिंदी 69,471 हिंदी भाषियों के साथ 26805 ‘फीजी हिंदी भाषी’ और 6 हिंदी बात (फीजी हिंदी से संबंध) भाषी थे। हिंदी में यदि यह विभाजन न हो और इन सब हिंदी भाषियों को जोड़ दिया जाए, तो कुल संख्या 96,282 हो जाती है, जो न्यूज़ीलैंड के चीनी भाषियों से भी अधिक है।

न्यूज़ीलैंड में हिंदी शिक्षण की मांग का इतिहास भी पुराना है। पहली बार हिंदी शिक्षण की मांग 1949 में उठी थी, जब विश्वविद्यालय प्रवेश सर्टिफिकेट के लिए यह मुद्दा उठा था लेकिन अभी तक ऐसी कोई भी मांग फलीभूत नहीं हो पाई।

गत वर्ष न्यूज़ीलैंड की संसद में एक शिक्षा संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया गया था। यह प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में द्वितीय भाषा अध्ययन सशक्तीकरण हेतु था। न्यूज़ीलैंड में भारतीयों और हिंदी भाषियों की इतनी बड़ी संख्या होने पर भी सबमिशन करने वालों में ‘उर्दू’ ‘हिंदी’ से आगे रही।

इन सबमिशन्स में हिंदी की अपेक्षा उर्दू के सबमिशन अधिक हुए। हमें हिंदी के लिए अपनी कार्य योजना और कार्य नीति पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

कोरोनाकाल और हिंदी

कोरोना महामारी ने विश्व भर में दैनिक जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। विश्व भर में शिक्षण के लिए नए विकल्प खोजे जाने लगे। शिक्षा के लिए ऑनलाइन शिक्षण एक सशक्त विकल्प के रूप में उभरा। हालांकि अनेक देशों में बहुत समय से ऑनलाइन शिक्षण का विकल्प उपलब्ध रहा है लेकिन कोरोना में इसका उपयोग करना एक आवश्यकता बन गया। यह कोरोना संकट में एक आशा की नई किरण बनकर उभरा।

पूरे विश्व की भांति न्यूज़ीलैंड में भी, अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन के अतिरिक्त कोरोना वायरस से शिक्षा व्यवस्था सर्वाधिक प्रभावित हुई है। प्राथमिक पाठशाला से लेकर उच्च स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों में पठन-पाठन का भविष्य अनिश्चितता के दौर से गुजरने लगा। जब से कोरोना की महामारी ने विश्व को अपनी चपेट में लिया है, विश्वव्यापी तालाबंदी का एक नया दौर चल रहा है। हमारा संपूर्ण सामाजिक ढांचा कोविड-19 (कोरोना) से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

न्यूज़ीलैंड में हिंदी सहित अनेक भारतीय भाषाओं के ‘सप्ताहांत विद्यालय’ हैं। इन सब के लिए ऑनलाइन शिक्षण एक नया प्रयोग था। ‘सप्ताहांत विद्यालय’ शिक्षकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। धीरे-धीरे सभी को शिक्षण क्रियाशील रखने के लिए ‘ऑनलाइन शिक्षण पद्धति’ अपनानी पड़ी। विश्वव्यापी बंद ने दुनिया के 60% से अधिक विद्यार्थियों को प्रभावित किया। यूनेस्को ने स्कूल बंद होने के तात्कालिक प्रभाव को कम करने के लिए, विशेष रूप से अधिक कमजोर और वंचित समुदायों के लिए दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से सभी के लिए शिक्षा की निरंतरता को सुविधाजनक बनाने के प्रयासों का समर्थन किया। सप्ताहांत हिंदी विद्यालयों ने भी अंततः इस ऑनलाइन शिक्षण को अपनाया।

न्यूज़ीलैंड में हिंदी के भविष्य की चर्चा करें तो भविष्य में न्यूज़ीलैंड ही नहीं अपितु विश्व भर में ऑनलाइन शिक्षण की अपार संभावना है। विश्व भर में कोरोना की त्रासदी के बीच शिक्षण के जो माध्यम उभर कर आए उनमें ‘ऑनलाइन शिक्षण’ सर्वोपरि है। ऑनलाइन शिक्षण निःसंदेह एक सशक्त विकल्प के रूप में तो उभर कर सामने आया लेकिन हिंदी जगत में इसका प्रयोग उतना प्रभावी नहीं दिखाई दिया। इसका एक मुख्य कारण संसाधनों की कमी और प्रशिक्षण की कमी है।

न्यूज़ीलैंड में औपचारिक हिंदी शिक्षण की संभावना अभी निकट भविष्य में अपेक्षित नहीं है लेकिन हिंदी के प्रति रुचि अवश्य बढ़ रही है। इस रुचि की आपूर्ति के लिए सप्ताहांत हिंदी विद्यालय और ऑनलाइन शिक्षण अहम् भूमिका निभा सकते हैं। इन्हें और प्रभावी बनाने के लिए जहां ऑनलाइन संसाधनों व प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय हिंदी सामग्री सम्मिलित करने की ज़रूरत है। हमारे हिंदी विद्यालय अभी प्रौद्योगिकी में पिछड़े हुए हैं। यदि हम प्राथमिक स्तर पर प्रौद्योगिकी को विद्यालयों से जोड़ दें तो न केवल हम विद्यार्थियों को प्रारंभिक दौर में प्रौद्योगिकी से परिचित करवाएंगे बल्कि नया कौशल सामने आएगा, नई प्रतिभाओं का जन्म व विकास होगा। प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों में हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के टंकण का शिक्षण भी सम्मिलित हो ताकि बच्चे ऑनलाइन भी हिंदी का सरलता से प्रयोग कर सकें।

इस समय बहुत-सी सुविधाएँ, संसाधन, पद्धतियां व उपकरण उपलब्ध हैं जिनकी जानकारी पाकर व इनका समुचित उपयोग कर विद्यार्थी, शिक्षक व शैक्षणिक संस्थान लाभान्वित हो सकते हैं । ऑनलाइन शिक्षण के लिए तो ये वरदान प्रमाणित हो सकते हैं।

ऑनलाइन हिंदी शिक्षण पर न्यूज़ीलैंड में काम किया जा रहा है। यह अभी अपने आरंभिक चरण में हैं। बच्चों और शिक्षकों से साक्षात्कार करने के बाद, एक महत्वपूर्ण बात सामने आई कि हमें भाषा और पाठ्यक्रम का स्थानीयकरण करना होगा। बच्चे जिस देश में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहाँ की विषय वस्तु को सम्मिलित करना, शिक्षण को सरल और रोचक बनाता है। न्यूज़ीलैंड में शिक्षा व तकनीक से जुड़े लोगों ने इसपर चर्चा की है। इस संदर्भ में भी काम आरंभ किया जा चुका है। ‘भारत-दर्शन’ ने भी हिंदी शिक्षण के लिए ‘ऑनलाइन शिक्षक’ में नए पाठ और नई तकनीक सम्मिलित किए है।

हिंदी को केवल भाषणबाज़ी और नारेबाज़ी की नहीं सिपाहियों की आवश्यकता है। हिंदी विद्वान/विदुषियों, शिक्षक-प्रशिक्षकों को चाहिए कि वे आगे आएँ और हिंदी के लिए काम करनेवालों की केवल आलोचना करके या त्रुटियां निकालकर ही अपनी भूमिका पूर्ण न समझें बल्कि हिंदी प्रचार में काम करनेवालों को अपना सकारात्मक योगदान भी दें।

आने वाले समय में इंटरनेट पर क्षेत्रीय भाषाओं का वर्चस्व निःसंदेह बढ़ने की संभावना है, इसके लिए अभी से तैयारी करनी होगी। वैश्विक स्तर पर हिंदी को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने के लिए हिंदी का स्थानीयकरण यानी जिस देश में हिंदी पढ़ाई जा रही है, वहाँ की सामग्री सम्मिलित करना, उसे और रुचिकर और स्वाभाविक रूप प्रदान करेगा। कोरोना के समय में न्यूज़ीलैंड के हिंदी साहित्य को भी विश्वव्यापी पहचान मिली है। केन्द्रीय हिंदी संस्थान, वैश्विक हिंदी परिवार और विश्व हिंदी सचिवालय के साथ न्यूज़ीलैंड ने अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जो एक अच्छा संकेत है। न्यूज़ीलैंड की दो कृतियों ‘न्यूज़ीलैंड की हिंदी यात्रा’ और ‘प्रशांत की लोक-कथाएँ’ का केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा प्रकाशन भी अभिनंदनीय है। न्यूज़ीलैंड ने हिंदी में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं और निःसन्देह ‘न्यूज़ीलैंड की हिंदी यात्रा’ विश्व भर में बसे अन्य हिंदी प्रेमियों को भी अपने देश की हिंदी यात्रा लिपिबद्ध करने को प्रेरित करेगी।

-रोहित कुमार ‘हैप्पी’

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश