मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग, प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर।

सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा धुल रे मृदुतन।
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु-अणु गल।
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

सारे शीतल कोमल नूतन,
...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं!

क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!

भीत तारक मूंदते द्रग
...

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