शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

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नीरज के हाइकु

जन्म मरण
समय की गति के
हैं दो चरण

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किसको मिला
वफा का दुनिया में
वफा ही सिला

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वो हैं अकेले
दूर खड़े होकर
देखें जो मेले

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मेरी जवानी
कटे हुये पंखों की
एक निशानी

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वो है अपने
देखें हो मैंने जैसे
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नीरज के लोकप्रिय दोहे

गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न। 
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न॥ 

भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नाम।
उसने आँखों के बिना देख लिये घनश्याम॥

हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचान।
इसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान॥

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कोई नहीं पराया

कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।

मैं ना बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं ना खड़ा हूँ जाति-पाति की ऊँची-नीची भीड़ में,
मेरा धर्म ना कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,
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