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कथा-कहानी |
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानियाँ - भारत-दर्शन संकलन |
पिछले कुछ वर्षों में भारत-दर्शन में प्रकाशित हिंदी की कुछ कालजयी कहानियाँ यहाँ सूचीबद्ध की गई हैं ताकि इन लोकप्रिय कहानियों का आप सब आनंद उठा सकें: |
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गर्मियों के दिन | कहानी - कमलेश्वर | Kamleshwar |
चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है । उसके फाटक पर इंद्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं । सैयदअली पेंटर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्ड़ों को बनाया है । देखते-देखते शहर में बहुत-सी ऐसी दुकानें हो गई हैं, जिन पर साइनबोर्ड लटक गए हैं । साइनबोर्ड लगना यानी औकात का बढ़ना । बहुत दिन पहले जब दीनानाथ हलवाई की दूकान पर पहला साइनबोर्ड लगा था तो वहाँ दूध पीने वालों की संख्या एकाएक बढ़ गई थी । फिर बाढ़ आ गई, और नए-नए तरीके और बैलबूटे ईजाद किए गए । ‘ऊँ' या ‘जयहिन्द' से शुरु करके ‘एक बार अवश्य परीक्षा कीजिए' या ‘मिलावट साबित करने वाले को सौ रुपया नगद इनाम' की मनुहारों या ललकारों पर लिखावट समाप्त होने लगी । |
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खेल - जैनेन्द्र कुमार | Jainendra |
मौन-मुग्ध संध्या स्मित प्रकाश से हँस रही थी। उस समय गंगा के निर्जन बालुकास्थल पर एक बालक और बालिका सारे विश्व को भूल, गंगा-तट के बालू और पानी से खिलवाड़ कर रहे थे। |
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वे - सुशांत सुप्रिय |
रेलगाड़ी के इस डिब्बे में वे चार हैं, जबकि मैं अकेला । वे हट्टे-कट्टे हैं , जबकि मैं कमज़ोर-सा । वे लम्बे-तगड़े हैं, जबकि मैं औसत क़द-काठी का । जल्दबाज़ी में शायद मैं ग़लत डिब्बे में चढ़ गया हूँ । मुझे इस समय यहाँ इन लोगों के बीच नहीं होना चाहिए -- मेरे भीतर कहीं कोई मुझे चेतावनी दे रहा है । |
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लोहड़ी का ऐतिहासिक संदर्भ - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है। उसने दोनों लड़कियों, 'सुंदरी एवं मुंदरी' को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। |
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रानी सारन्धा | कहानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा गाँव है। यह गढ़ी और गाँव दोनों एक बुंदेला सरकार के कीर्ति-चिह्न हैं। शताब्दियाँ व्यतीत हो गयीं बुंदेलखंड में कितने ही राज्यों का उदय और अस्त हुआ मुसलमान आये और बुंदेला राजा उठे और गिरे-कोई गाँव कोई इलाका ऐसा न था जो इन दुरवस्थाओं से पीड़ित न हो मगर इस दुर्ग पर किसी शत्रु की विजय-पताका न लहरायी और इस गाँव में किसी विद्रोह का भी पदार्पण न हुआ। यह उसका सौभाग्य था। |
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लोहड़ी लोक-गीत - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
लोहड़ी पर अनेक लोक-गीतों के गायन का प्रचलन है। |
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सौत | कहानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
जब रजिया के दो-तीन बच्चे होकर मर गये और उम्र ढल चली, तो रामू का प्रेम उससे कुछ कम होने लगा और दूसरे व्याह की धुन सवार हुई। आये दिन रजिया से बकझक होने लगी। रामू एक-न-एक बहाना खोजकर रजिया पर बिगड़ता और उसे मारता। और अन्त को वह नई स्त्री ले ही आया। इसका नाम था दासी। चम्पई रंग था, बड़ी-बडी आंखें, जवानी की उम्र। पीली, कुंशागी रजिया भला इस नवयौवना के सामने क्या जांचती! फिर भी वह जाते हुए स्वामित्व को, जितने दिन हो सके अपने अधिकार में रखना चाहती थी। तिगरते हुए छप्पर को थूनियों से सम्हालने की चेष्टा कर रही थी। इस घर को उसने मर-मरकर बनाया है। उसे सहज ही में नहीं छोड़ सकती। वह इतनी बेसमझ नहीं है कि घर छोड़कर ची जाय और दासी राज करे। |
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मिट्टी और कुंभकार - नरेन्द्र ललवाणी | लघुकथा |
बार-बार पैरों तले कुचले जाने के कारण मिट्टी अपने भाग्य पर रो पड़ी । अहो! मैं कैसी बदनसीबी हूँ कि सभी लोग मेरा अपमान करते हैं । कोई भी मुझे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता जबकि मेरे ही भीतर से प्रस्फुटित होने वाले फूल का कितना सम्मान है । फूलों की माना पिरोकर गले में पहनी जाती है । भक्त लोग अपने उपास्य के चरणों में चढ़ाते हैं । वनिताएं अपने बालों में गूंथ कर गर्व का अनुभव करती हैं । क्या ही अच्छा हो कि मैं भी लोगों के मस्तिष्क पर चढ़ जाऊं! |
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दूसरा रुख | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
चित्रकार दोस्त ने भेंट स्वरूप एक तस्वीर दी। आवरण हटा कर देखा तो निहायत ख़ुशी हुई, तस्वीर भारत माता की थी। माँ-सी सुन्दर, भोली सूरत, अधरों पर मुस्कान, कंठ में सुशोभित ज़ेवरात, मस्तक को और ऊँचा करता हुआ मुकुट व हाथ में तिरंगा। |
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मलबे का मालिक - मोहन राकेश | Mohan Rakesh |
साढ़े सात साल के बाद वे लोग लाहौर से अमृतसर आये थे। हॉकी का मैच देखने का तो बहाना ही था, उन्हें ज़्यादा चाव उन घरों और बाज़ारों को फिर से देखने का था जो साढ़े सात साल पहले उनके लिए पराये हो गये थे। हर सडक़ पर मुसलमानों की कोई-न-कोई टोली घूमती नज़र आ जाती थी। उनकी आँखें इस आग्रह के साथ वहाँ की हर चीज़ को देख रही थीं जैसे वह शहर साधारण शहर न होकर एक अच्छा-ख़ासा आकर्षण-केन्द्र हो। |
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मकर संक्रांति - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है। |
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लोहड़ी | 13 जनवरी - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। असम में बीहू के रूप में यह त्यौहार मनाने की परंपरा है। इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है। |
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ममता | कहानी - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad |
रोहतास-दुर्ग के प्रकोष्ठ में बैठी हुई युवती ममता, शोण के तीक्ष्ण गम्भीर प्रवाह को देख रही है। ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। मन में वेदना, मस्तक में आँधी, आँखों में पानी की बरसात लिये, वह सुख के कण्टक-शयन में विकल थी। वह रोहतास-दुर्गपति के मंत्री चूड़ामणि की अकेली दुहिता थी, फिर उसके लिए कुछ अभाव होना असम्भव था, परन्तु वह विधवा थी-हिन्दू-विधवा संसार में सबसे तुच्छ निराश्रय प्राणी है-तब उसकी विडम्बना का कहाँ अन्त था? |
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