देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है। - रविशंकर शुक्ल।

 
कुंडलिया
कुंडलिया मात्रिक छंद है। दो दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। आदि में एक दोहा तत्पश्चात् रोला छंद जोड़कर इसमें कुल छह पद होते है। प्रत्येक पद में 24 मात्राएं होती हैं व आदि अंत का पद एक सा मिलता है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुंडलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुंडलिया समाप्त भी होती है।

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गिरिधर की कुण्डलिया - गिरिधर कविराय

गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सहावन।
दोऊ को इक रंग, काग सब भए अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के॥
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