जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

प्रभु या दास?

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

बुलाता है किसे हरे हरे,
वह प्रभु है अथवा दास?
उसे आने का कष्ट न दे अरे,
जा तू ही उसके पास । 

- मैथिलीशरण गुप्त

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