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 ठाकुर का कुआँ | ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता | Poem by Om Prakash Valmiki
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

ठाकुर का कुआँ | कविता

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki

चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।

भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?

-ओमप्रकाश वाल्मीकि

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Posted By Rakesh Shekhar   on Tuesday, 17-Nov-2015-14:41
bahut achha
 
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