हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

हम भी काट रहे बनवास

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हम भी काट रहे बनवास
जावेंगे अयोध्या नहीं आस

पडूं रावण पर कैसे मैं भारी
नहीं लक्ष्मण भी है मेरे पास

यहाँ रावण-विभीषण हैं साथ
करूं लँका का कैसे मैं नास

कौन फूँकेगा सोने की लँका
यहाँ है कहाँ हनुमन-सा दास

सीया बैठी है कितनी उदास
राम आवेंगे है उसको आस

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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