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 हास्य दोहे | काका हाथरस्सी के हास्य दोहे | Hasya Dohe - Kaka Hathrasi
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।

हास्य दोहे | काका हाथरसी

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज

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अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट

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अंदर काला हृदय है, ऊपर गोरा मुक्ख,
ऐसे लोगों को मिले, परनिंदा में सुक्ख

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अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,
देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंद

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अंधा प्रेमी अक्ल से, काम नहीं कुछ लेय
प्रेम-नशे में गधी भी, परी दिखाई देय

#

अगर फूल के साथ में, लगे न होते शूल
बिना बात ही छेड़ते, उनको नामाक़ूल

#

अगर चुनावी वायदे, पूर्ण करे सरकार
इंतज़ार के मजे सब, हो जाएं बेकार

#

मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल

- काका हाथरसी

 

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