जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

कविता  (काव्य)

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Author: शिव प्रताप पाल

कविता किसी के ह्रदय का उदगार है
किसी के लिए ये काला आजार है
किसी के लिए यह केवल व्यापार है
किसी के लिए ये मियादी बुखार है

किसी के लिए यह महज़ मनोरंजन है
किसी के लिए यह दंतमंजन है
खीसें निपोरने का बढ़िया उपकरण है
जिसे सुनने से दांतों में चमक आती है

उस चमक को दिखलाने हेतु वे अकुलाते हैं
कुटिल और रहस्यमयी मुस्कान फैलाते हैं
अपने चमकीले दांत दिखलाते हैं
फिर ललचाती जीभ बाहर लप-लपाते हैं

कविता किसी के लिए पुराना अखबार है
बेकार व रद्दी चीज़ों का अम्बार है
कविता किसी के लिए महज़ विज्ञापन है
वस्तुयें बेचने का उत्कृष्ट साधन है

कविता किसी के लिए काला अक्षर है
जो काली मोटी भैंस के बराबर है|
जिससे दूध निकालना तो मुश्किल है
पर मार खाना है अत्यंत आसान

कविता किसी के लिए गहरी संवेदना है
किसी के ह्रदय की तीव्र वेदना है|
किसी के दिल से उठी पुकार है|
कविता किसी के लिए किसी का प्यार है

कविता किसी के प्रति उमड़ता दुलार है
कविता किसी के प्रति घुमड़ता गुबार है
कविता किसी के लिए टाइम-पास है
किसी के लिए पूरी तरह बकवास है

कविता किसी की शान में गुस्ताखी है
किसी के लिए यह आम माफ़ी है
किसी के लिए यह हमदर्द की साफी है
जो खून को अच्छे से साफ़ करती है

कविता किसी के लिए साधना है
किसी के लिए यह आराधना है
कविता किसी की प्यारी बेटी का नाम है
कविता किसी की सुन्दर बीवी का नाम है

कविता किसी के लिए आजीविका है
उसके जीवन का एक आधार है
किसी के लिए यह बड़ा उधार है
जिसे चुकाना एक दुष्कर कार्य है

कविता वीरों के प्रति श्रद्धांजलि है
जांबाजों के प्रति यह पुष्पांजलि है
संगीतकारों के लिए यह गीतांजलि है
प्रार्थ्नाकारों के लिए यह बद्धांजलि है

कविता कभी बहुत आनन्दित करती है
कभी कभी बेहद रुलाया करती है
कविता कभी सहलाया करती है
कभी कभी वो ढांढस बंधाया करती है

कविता कभी खूब हँसाया करती है
कभी वह सोचने को मजबूर करती है
कभी वह दोषों को दिखाती है
उसके ऊपर का आवरण हटाती है

कभी कभी आश्चर्यचकित करती है
कभी यह बौद्धिकता में भटकाती है
कभी कभी यह चुनौती पेश करती है
और कभी गीत बनकर फूटती है

कभी यह नायिका का श्रृंगार बखानती है
मीठा मीठा सा मधुर रस घोलती है
कभी कानो में पिघला सीसा उड़ेलती है
सारा शिष्टाचार पीछे धकेलती है

कविता कभी शासकों को हीरो बनाती है
कभी यह नेताओं को जीरो बनाती है
कभी यह चारणों की बोली होती है
पूरी मक्खन की गोली होती है

कविता किसी को सम्मान दिलाती है
कभी कभी किसी को बरगलाती है
कविता कभी किसी का मजाक उड़ाती है
कभी किसी का दिल बहलाती है

कविता वैसे तो भोथरा हथियार है
पर इसकी अलग ही मार है
यही कवि का संबल है
उसकी ताकत और कम्बल है

कविता ही उसे हिम्मत देती है
उसकी भरपूर हिफाज़त करती है
बारूद से टक्कर लेते रहने का
यह हर वक्त पाठ पढ़ाती है

- शिव प्रताप पाल
ई-मेल: shivppal@gmail.com

 

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