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 काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ - राजगोपाल सिंह की ग़ज़ल | Hindi Ghazal by Rajgopal Singh
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:राजगोपाल सिंह
 

काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहे
जब तलक़ ज़िन्दा रहे बचपन को दुलराते रहे

रात कैसे-कैसे ख्याल आते रहे, जाते रहे
घर की दीवारों से जाने क्या-क्या बतियाते रहे

स्वाभिमानी ज़िन्दगी जीने के अपराधी हैं हम
सैंकड़ों पत्थर हमारे गिर्द मँडराते रहे

कोई समझे या न समझे वो समझता है हमें
उम्र-भर इस मन को हम ये कह के समझाते रहे

ख्वाब में आते रहे वो सब शहीदाने-वतन
मरते-मरते भी जो वन्देमातरम् गाते रहे

- राजगोपाल सिंह

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