हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
संवाद | कविता (काव्य)    Print  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड
 

"अब तो भाजपा की सरकार आ गई ।"
मैंने उस गुमसुम रिक्शा वाले से संवाद स्थापित किया ।

भाजपा आए या कांग्रेस जाए..
हमें क्या फर्क पड़ता है?
दो जून की कमाने के लिए
हमें तो तिल-तिल मरना पड़ता है ।

मैंने कहा, "तुम खुश नहीं?"

"आप तो खुश होंगे बाबू?
टैक्स कम देना पड़ेगा, शिक्षा भी बेहतर होगी !"

"हाँ!" मैं धीरे से बुदबुदाया ।

"हमें तो सवारी पहले भी दस देती थी, अब भी दस देगी ।
सुने हैं - जहाज का किराया घटा है !
हमें कहाँ जहाज में जाना है?

हमें तो वही सूखी रोटी या भूखे सो जाना है।"

"बस यहीं, रोक दो! कितने हुए, भाई?"

"पंद्रह रुपया, साब।"

"लो! बीस रख लो!"

"नहीं, अपना छुट्टा ले लो बाबू।
मैं भीख नहीं मांगता....
मेहनत की खाता हूँ,
जितनी मेहनत की मिले
उसी से घर चलाता हूँ।"

-  रोहित कुमार 'हैप्पी'

Back
Posted By Raavi Ramesh   on Thursday, 23-Jul-2015-04:26
चंद्रशेखर आज़ाद अमर रहे |
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश