हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
एक भी आँसू न कर बेकार (काव्य)    Print  
Author:रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi
 

एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाए!

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ-
पर समस्याएं कभी रूठी नहीं हैं,

हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाए!

व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
काम अपने पाँव ही आते सफर में,
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा-
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नज़र में,

हर लहर का कर प्रणय स्वीकार-
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!

 

- रामावतार त्यागी

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