हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
चीन्हे किए अचीन्हे कितने | गीतांजलि (काव्य)    Print  
Author:रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore
 

हुत वासनाओं पर मन से हाय, रहा मर,
तुमने बचा लिया मुझको उनसे वंचित कर ।
संचित यह करुणा कठोर मेरा जीवन भर।

अनमाँगे जो मुझे दिया है
जोत गगन तन प्राण हिया है
चीन्हे किए अचीन्हे कितने

घर कितने ही घर को;
किया दूर को निकट, बंधु,
अपने भाई-सा पर को।

छोड़ निवास पुराना जब मैं जाता
जानें क्या हो, यही सोच घबराता,
किन्तु पुरातन तुम हो नित नूतन में
यही सत्य मैं जाता बिसर-बिसर जो ।
किया दूर को निकट, बंधु,
अपने भाई-सा पर को।

जीवन और मरण में निखिल भुवन में
जब भी, जहां कहीं भी अपना लोगे,
जनम-जनम के ऐ जाने-पहचाने,
तुम्ही मुझे सबसे परिचित कर दोगे ।

तुम्हें जान लूं तो न रहे कोई पर,
मना न कोई और नहीं कोई डर-
तुम सबके सम्मिलित रूप में जागे
मुझे तुम्हारा दरस सदा प्रभुवर हो ।
किया दूर को निकट, बंधु,
अपने भाई-सा पर को ।

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

साभार - गीतांजलि, भारती भाषा प्रकाशन (1979 संस्करण), दिल्ली

अनुवादक - हंसकुमार तिवारी

 

Geetanjli by Rabindranath Tagore


Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश