हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
गीत फ़रोश (काव्य)    Print  
Author:भवानी प्रसाद मिश्र | Bhawani Prasad Mishra
 

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ!

जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं हैं, काम बताऊंगा;
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने,
यह गीत, सख़्त सर-दर्द भुलायेगा,
यह गीत पिया को पास बुलायएगा!

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को;
पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान--
मैं सोच-समझकर आख़िर
अपने गीत बेचता हूँ,
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ!

यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,
यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे,
यह गीत ज़रा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है,
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है!
यह गीत भूख और प्यास भगाता है
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर,
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ।

जी, छंद और बेछंद पसंद करें,
जी अमर गीत और वे जो तुरत मरें!
ना, बुरा मानने की इसमें बात,
मैं ले आता हूँ क़लम और दावात,
इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ,
जी, नये चाहिए नहीं, गये लिख दूँ!
मैं नये, पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ,
जी हाँ, हुज़ूर मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ।

मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ!
जी, गीत जनम का लिखूँ मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का!
कुछ और डिज़ायन भी हैं, ये इल्मी,
यह लीजे चलती चीज़, नयी फ़िल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,
यह दुकान से घर जाने का गीत!

जी नहीं, दिल्लगी की इस में क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी, रूठ-रूठ कर मन जाते है गीत!
जी, बहुत ढेर लग गया, हटाता हूँ,
गाहक की मर्ज़ी, अच्छा जाता हूँ;
या भीतर जा कर पूछ आइए आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप,
क्या करूँ मगर लाचार
हार कर गीत बेचता हँ।
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ।
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत बेचता हूँ!

-भवानी प्रसाद मिश्र
[गीत फ़रोश, 1956, नवहिन्द प्रकाशन, हैदराबाद]

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