हिंदी के कवि मोहन राणा का जन्म 9 मार्च 1964 को देहली में हुआ। आप पिछले डेढ़ दशक से ब्रिटेन के बाथ शहर के निवासी हैं।
मोहन राणा की कविता अपनी अलग पहचान रखती है। आज उनके जन्म-दिवस पर उनकी कुछ कविताएं।
अपना एक देस
लोगों ने वहाँ बस याद किया भूलना ही था ना अपना एक देस बुलाया नहीं फिर, कोई ऐसा वादा भी नहीं कि इंतजार हो, पहर ऐसा हवा भटकती सांय सांय सिर फोड़ती खिड़की दरवाजों पर, दराजों को खंगालता हूँ सबकुछ उनमें पर कुछ भी नहीं जैसे चीज़ें इस कमरे में चीज़ें मैं भी एक चीज़ जैसे मुझे खुद भी नहीं मालूम मेरी उम्मीद क्या निरंतर खोज के सिवा, अपनी नब्ज़ पकड़े मैं देस खोजता हूँ नक्शों में धूप की छाया से दिशा पता करते पर मिलीं मुझे शंकाएँ हीं अब तक
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अपने अलावा भी
ना लिखे भी ना सोचे भी ना चीख पुकार के भी नानाविध उपकरण और विधियाँ भी बेकार उपाय यही इस मन से मोक्ष का
अब खाली दानपात्र में बस बचा हूँ मैं ही चुराता नहीं जिसे वहाँ से कोई, जरूरी होता है कभी कभी देखना भी आइने को अपने अलावा भी
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नक्शानवीस
पंक्तियों के बीच अनुपस्थित हो तुम एक ख़ामोश पहचान जैसे भटकते बादलों में अनुपस्थित बारिश, तुम अनुपस्थित हो जीवन के हर रिक्त स्थान में समय के अंतराल में इन आतंकित गलियों में,
मैं देखता नहीं किसी खिड़की की ओर रूकता नहीं किसी दरवाजे के सामने देखता नहीं घड़ी को सुनता नहीं किसी पुकार को, बदलती हुई सीमाओँ के भूगोल में मेरा भय ही मेरे साथ है
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क्या नहीं देखा
पीले फूलों की झाड़ी में टँगी काठ की मछली मंडराती मूंदे अपनी आँखें देखती सपना आकाश में उड़ते कपासी बादलों में उमड़ती हैं लहरों की स्मृतियाँ
क्या नहीं देखा मैंने जिसे सोचा कभी किसी ने पीले फूलों को देख, क्या उसने मुझे भी देखा उन टहनियों के बीच पीले फूलों की झाड़ी में
- मोहन राणा
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