साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
 

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मेरा दिल वह दिल है | ग़ज़ल

मेरा दिल वह दिल है कि हारा नहीं है
कहीं तिनके का भी सहारा नहीं है

जो मोजों को देखा तो जी हो न माना
यह मालूम था यह किनारा नहीं है

जिसे देख के लोग पलकें बिछा दें
कहेगा उसे कौन प्यारा नहीं है

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बात मेरी नहीं मानी... | ग़ज़ल 

बात मेरी नहीं मानी नहीं मानी तुम ने 
जी में जो बात बसी थी वही ठानी तुम ने

मेरा क्या, बात कही और लगा अपनी राह 
अपने आगे किसी की बात न जानी तुम ने

बात बिगड़ी तो बिगड़ती ही गई वन न सकी
गो बनाने में किया खून का पानी तुम ने

विश्व को छत का सुदृढ़ स्तंभ जिन्हें समझा था
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