वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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पानी और पुल - महीप सिंह

गाड़ी ने लाहौर का स्टेशन छोड़ा तो एकबारगी मेरा मन काँप उठा। अब हम लोग उस ओर जा रहे थे जहाँ चौदह साल पहले आग लगी थी। जिसमें लाखों जल गये थे, और लाखों पर जलने के निशान आज तक बने हुए थे। मुझे लगा हमारी गाड़ी किसी गहरी, लम्बी अन्धकारमय गुफा में घुस रही है। और हम अपना सब-कुछ इस अन्धकार को सौंप दे रहे हैं।
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पाजेब - जैनेन्द्र कुमार | Jainendra

बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियां आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पांव में पड़े उसी के अनुकूल ही रहती हैं।
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दीवाली | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी'

पखवाड़े बाद दीवाली थी, सारा शहर दीवाली के स्वागत में रोशनी से झिलमिला रहा था। कहीं चीनी मिट्‌टी के बर्तन बिक रहे थे तो कहीं मिठाई की दुकानों से आने वाली मन-भावन सुगंध लालायित कर रही थी।
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मेज़बान | लघु-कथा - खलील जिब्रान

"कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।" करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा।
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बंद दरवाजा - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से। वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी।
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कहावत | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी'

- कैंची मत बजाओ।
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ज़मीन आसमान | लघु कथा  - रेखा जोशी

आज अंजू सातवें आसमान पर उड़ रही थी ,बार बार वह अपने चाचा जी का धन्यवाद कर रही थी जो उसे शहर के इतने खूबसूरत जगमगाते स्थान पर ले कर आये थे ।
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करवा का व्रत  - यशपाल | Yashpal

कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर पर दूसरों से पूछे जाते हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं।
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परदा | कहानी - यशपाल | Yashpal

चौधरी पीरबख्श के दादा चुंगी के महकमे में दारोगा थे । आमदनी अच्छी थी । एक छोटा, पर पक्का मकान भी उन्होंने बनवा लिया । लड़कों को पूरी तालीम दी । दोनों लड़के एण्ट्रेन्स पास कर रेलवे में और डाकखाने में बाबू हो गये । चौधरी साहब की ज़िन्दगी में लडकों के ब्याह और बाल-बच्चे भी हुए, लेकिन ओहदे में खास तरक्की न हुई; वही तीस और चालीस रुपये माहवार का दर्जा ।
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सबसे सुन्दर लड़की | कहानी - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

समुद्र के किनारे एक गाँव था । उसमें एक कलाकार रहता था । वह दिन भर समुद्र की लहरों से खेलता रहता, जाल डालता और सीपियाँ बटोरता । रंग-बिरंगी कौड़ियां, नाना रूप के सुन्दर-सुन्दर शंख चित्र-विचित्र पत्थर, न जाने क्या-क्या समुद्र जाल में भर देता । उनसे वह तरह-तरह के खिलौने, तरह-तरह की मालाएँ तैयार करता और पास के बड़े नगर में बेच आता ।
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लौटना - सुशांत सुप्रिय की कहानी - सुशांत सुप्रिय

समुद्र का रंग आकाश जैसा था । वह पानी में तैर रही थी । छप्-छप्, छप्-छप् । उसे तैरना कब आया ? उसने तो तैरना कभी नहीं सीखा । फिर यह क्या जादू था ? लहरें उसे गोद में उठाए हुए थीं । एक लहर उसे दूसरी लहर की गोद में सौंप रही थी । दूसरी लहर उसे तीसरी लहर के हवाले कर रही थी । सामने, पीछे, दाएँ, बाएँ दूर तक फैला समुद्र था । समुद्र-ही समुद्र। एक अंतहीन नीला विस्तार ।

"सिस्टर , रोगी का ब्लड-प्रेशर चेक करो ।" पास ही कहीं से आता हुआ एक भारी स्वर ।

"डाक्टर, पेशेंट का ब्लड-प्रेशर बहुत 'लो' है ।"

"सिस्टर, नब्ज़ जाँचो ।"

"नब्ज़ बेहद धीमी चल रही है, सर ।"

लहरें नेहा को समुद्र की अतल गहराइयों में लिए जा रही हैं । वह लहरों पर सवार हो कर नीचे जाती जा रही है । नीचे, और नीचे । वहाँ जहाँ कोई गोताखोर पहले कभी नहीं जा पाया । कमाल की बात यह है कि उसके पास कोई अॉक्सीजन -सिलिंडर नहीं है । नीचे समुद्र का तल सूरज-सा चमक रहा है । उसे अपने पास बुला रहा है । उसे आग़ोश में लेना चाह रहा है । आह ! समुद्र का जल कितना साफ़ है । कितना स्वच्छ है । कितना पारदर्शी ।
नर्सें और डॉक्टर आपस में बातें कर रहे हैं ।

"सिस्टर , क्या पेशेंट यूरिन पास कर रही है ?" एक भारी स्वर पूछ रहा है ।

"नहीं , डॉक्टर ।" दूसरा मुलायम स्वर जवाब दे रहा है ।

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डाची | कहानी - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk

काट* 'पी सिकंदर' के मुसलमान जाट बाक़र को अपने माल की ओर लालच भरी निगाहों से तकते देखकर चौधरी नंदू पेड़ की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊंची घरघराती आवाज़ में ललकार उठा, "रे-रे अठे के करे है?*" और उसकी छह फुट लंबी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने का कारण, मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल सीना और उसकी मज़बूत बाहें दिखाई देने लगीं।
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दीप जगमगा उठे - शैल चंद्रा

बिरजू थका हारा अपनी झोंपड़ी में लौटा । उसका उतरा हुआ मुख देखकर उसकी पत्नी ने पूछा आज भी आपको काम नही मिला? उसने कुछ नहीं कहा। झोंपड़ी में अंधियारा छाया था।
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दीवाली किसे कहते हैं? - रोहित कुमार 'हैप्पी'

"बापू परसों दीवाली है, ना? बापू, दीवाली किसे कहते हैं?" सड़क के किनारे फुटपाथ पर दीये बेच रहे एक कुम्हार के फटेहाल नन्हे से बच्चे ने अपने बाप से सवाल किया।
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