साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। - गणेशशंकर विद्यार्थी।
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वामनावतार रक्षाबंधन पौराणिक कथा  - भारत-दर्शन संकलन

एक सौ 100 यज्ञ पूर्ण कर लेने पर दानवेन्द्र राजा बलि के मन में स्वर्ग का प्राप्ति की इच्छा बलवती हो गई तो का सिंहासन डोलने लगा। इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर लिया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुँच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
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डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम - भारत-दर्शन संकलन

डॉ० कलाम का जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में रामेश्वर (तमिलनाडु ) में हुआ था। डॉ० कलाम के पिता जैनुलाबदीन की कोई बहुत अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी। वे आर्थिक रूप से सामान्य परंतु बुद्धिमान व उदार थे। इनके पिताजी एक स्थानीय ठेकेदार के साथ मिलकर लकड़ी की नौकाएँ बनाने का काम करते थे जो हिन्दू तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम् से धनुषकोटि ले जाती थीं। इनकी माँ, आशियम्मा उनके जीवन की आदर्श थीं। डॉ० कलाम का पूरा नाम ‘अवुल पकीर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम' है। डॉ० कलाम ने भौतिकी और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई की।
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रोचक विडियो व ऑडियो देखें - भारत-दर्शन संकलन

यहाँ आप पाएंगे ताजा विडियो, ऑडियो व रोचक सामग्री! चाहे वह स्वतंत्रता दिवस विडियो वेबकॉस्ट हो, गणतंत्र-दिवस वेबकॉस्ट हो या कोई अन्य विडियो।
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जीवन सार - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी। मेरा जन्म सम्वत् १९६७ में हुआ। पिता डाकखाने में क्लर्क थे, माता मरीज। एक बड़ी बहिन भी थी। उस समय पिताजी शायद २० रुपये पाते थे। ४० रुपये तक पहुँचते-पहुँचते उनकी मृत्यु हो गयी। यों वह बड़े ही विचारशील, जीवन-पथ पर आँखें खोलकर चलने वाले आदमी थे; लेकिन आखिरी दिनों में एक ठोकर खा ही गये और खुद तो गिरे ही थे, उसी धक्के में मुझे भी गिरा दिया। पन्द्रह साल की अवस्था में उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और विवाह करने के साल ही भर बाद परलोक सिधारे। उस समय मैं नवें दरजे में पढ़ता था। घर में मेरी स्त्री थी, विमाता थी, उनके दो बालक थे, और आमदनी एक पैसे की नहीं। घर में जो कुछ लेई-पूँजी थी, वह पिताजी की छ: महीने की बीमारी और क्रिया-कर्म में खर्च हो चुकी थी। और मुझे अरमान था, वकील बनने का और एम०ए० पास करने का। नौकरी उस जमाने में भी इतनी ही दुष्प्राप्य थी, जितनी अब है। दौड़-धूप करके शायद दस-बारह की कोई जगह पा जाता; पर यहाँ तो आगे पढ़ने की धुन थी-पाँव में लोहे की नहीं अष्टधातु की बेडिय़ाँ थीं और मैं चढऩा चाहता था पहाड़ पर!
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प्रेमचंद ने कहा था - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand
  • बनी हुई बात को निभाना मुश्किल नहीं है, बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है। [रंगभूमि]
  • क्रिया के पश्चात् प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। [ मानसरोवर - सवासेर गेहूँ]
  • रूखी रोटियाँ चाँदी के थाल में भी परोसी जायें तो वे पूरियाँ न हो जायेंगी। [सेवासदन]
  • कड़वी दवा को ख़रीद कर लाने, उनका काढ़ा बनाने और उसे उठाकर पीने में बड़ा अन्तर है। [सेवासदन]
  • चोर को पकड़ने के लिए विरले ही निकलते हैं, पकड़े गए चोर पर पंचलत्तिया़ जमाने के लिए सभी पहुँच जाते हैं। [रंगभूमि]
  • जिनके लिए अपनी ज़िन्दगानी ख़राब कर दो, वे भी गाढ़े समय पर मुँह फेर लेते हैं। [रंगभूमि]
  • मुलम्मे की जरूरत सोने को नहीं होती। [कायाकल्प]
  • सूरज जलता भी है, रोशनी भी देता है। [कायाकल्प]
  • सीधे का मुँह कुत्ता चाटता है। [कायाकल्प]
  • उत्सव आपस में प्रीति बढ़ाने के लिए मनाए जाते है। जब प्रीति के बदले द्वेष बढ़े, तो उनका न मनाना ही अच्छा है। [कायाकल्प]
  • पारस को छूकर लोहा सोना होे जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। [ मानसरोवर - मंदिर]
  • बिना तप के सिद्धि नहीं मिलती। [मानसरोवर - बहिष्कार]
  • अपने रोने से छुट्टी ही नहीं मिलती, दूसरों के लिए कोई क्योकर रोये? [मानसरोवर -जेल]
  • मर्द लज्जित करता है तो हमें क्रोध आता है। स्त्रियाँ लज्जित करती हैं तो ग्लानि उत्पन्न होती है। [मानसरोवर - जलूस]
  • अगर माँस खाना अच्छा समझते हो तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो तो मत खाओ; लेकिन अच्छा समझना और छिपकर खाना यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो इसे कायरता भी कहता हूँ और धूर्तता भी, जो वास्तव में एक है।

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ऐसे थे चन्द्रशेखर आज़ाद - भारत-दर्शन संकलन

एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते-करते मज़ाक में चन्द्रशेखर आज़ाद से कहा, "पंडित जी, हम क्रान्तिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।"
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प्रेमचंद की लघु -कथा रचनाएं - बलराम अग्रवाल

कई वर्ष पूर्व डॉ. कमल किशोर गोयनका ने एक बातचीत के दौरान मुझसे कहा था कि प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य खोजते हुए उन्हें उनकी 25-30 लघुकथाएं भी प्राप्त हुई हैं और वे शीघ्र ही उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करेंगे । हम, लघुकथा से जुड़े, लोगों के लिए यह बड़ी उत्साहवर्धक सूचना थी । इस बहाने कथा की लघ्वाकारीय प्रस्तुति के बारे में प्रेमचंद की तकनीक को जानने समझने में अवश्य ही मदद मिलती । हालांकि प्रेमचंद को उपन्यास-सम्राट माना जाता है, परन्तु वे कहानी-सम्राट नहीं थे-यह नहीं कहा जा सकता ।
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धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र - धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम 'धनपत राय' था।
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प्रेमचंद : घर में - शिवरानी देवी प्रेमचन्द

प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी द्वारा लिखी, 'प्रेमचंद : घर में' पुस्तक में शिवरानी ने प्रेमचन्द के बचपन का उल्लेख किया है। यहाँ उसी अंश को प्रकाशित किया जा रहा है।
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प्रेमचंद के पत्र - बनारसीदास चतुर्वेदी

प्रेमचंद की आकांक्षाओं को प्रकट करते दो पत्र:
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इन्द्र और महारानी शची | भविष्य पुराण  - भारत-दर्शन संकलन

भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार  एक बार देवता और दैत्यों  (दानवों ) में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर  देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत  करके रक्षासूत्र   तैयार किए और  स्वास्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में  इंद्राणी ने वह सूत्र  इंद्र की  दाहिनी कलाई में बांधा  जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
 
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:

"येन बद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबल: ।
दानवेन्द्रो मा चल मा चल ।।"  

इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।

यह रक्षा विधान श्रवण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया  यथा  रक्षा-बंधन अस्तित्व में आया  और  श्रवण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।
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डॉ० कलाम का पसंदीदा गीत  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

'हम होंगे कामयाब' डॉ० कलाम का पसंदीदा गीत था। वे अक्सर संकट की घड़ियों में गुनगुनाया करते थे:
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माँ | चंद्रशेखर की कविता  - चंद्रशेखर आज़ाद

माँ हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर माँ निज शीश कटाने आज।
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मैं नास्तिक क्यों हूँ? - भगत सिंह

एक नई समस्‍या उठ खड़ी हुई है - क्‍या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान सर्वव्‍यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर विश्‍वास नहीं करता हूँ? मैंने कभी कल्‍पना भी न की थी कि मुझे इस समस्‍या का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अपने दोस्‍तों से बातचीत के दौरान मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे कुछ दोस्‍त, यदि मित्रता का मेरा दावा गलत न हो, मेरे साथ अपने थोड़े से संपर्क में इस निष्‍कर्ष पर पहुँचने के लिए उत्‍सुक हैं कि मैं ईश्‍वर के अस्तित्‍व को नकार कर कुछ जरूरत से ज्‍यादा आगे जा रहा हूँ और मेरे घमंड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्‍वास के लिए उकसाया है। जी हाँ, यह एक गंभीर समस्‍या है। मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमजोरियों से बहुत ऊपर हूँ। मैं एक मनुष्‍य हूँ और इससे अधिक कुछ नहीं। कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता। एक कमजोरी मेरे अंदर भी है। अहंकार मेरे स्‍वभाव का अंग है। अपने कामरेडों के बीच मुझे एक निरंकुश व्‍यक्ति कहा जाता था। यहाँ तक कि मेरे दोस्‍त श्री बी.के. दत्त भी मुझे कभी-कभी ऐसा कहते थे। कई मौकों पर स्‍वेच्‍छाचारी कहकर मेरी निन्‍दा भी की गई। कुछ दोस्‍तों को यह शिकायत है, और गंभीर रूप से है, कि मैं अनचाहे ही अपने विचार उन पर थोपता हूँ और अपने प्रस्‍तावों को मनवा लेता हूँ। यह बात कुछ हद तक सही है, इससे मैं इनकार नहीं करता। इसे अहंकार भी कहा जा सकता है। जहाँ तक अन्‍य प्रचलित मतों के मुकाबले हमारे अपने मत का सवाल है, मुझे निश्‍चय ही अपने मत पर गर्व है। लेकिन यह व्‍यक्तिगत नहीं है। ऐसा हो सकता है कि यह केवल अपने विश्‍वास के प्रति न्‍यायोचित गर्व हो और इसको घमंड नहीं कहा जा सकता। घमंड या सही शब्‍दों में अहंकार तो स्‍वयं के प्रति अनुचित गर्व की अधिकता है। तो फिर क्‍या यह अनुचित गर्व है जो मुझे नास्तिकता की ओर ले गया, अथवा इस विषय का खूब सावधानी के साथ अध्‍ययन करने और उस पर खूब विचार करने के बाद मैंने ईश्‍वर पर अविश्‍वास किया? यह प्रश्‍न है जिसके बारे में मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ। लेकिन पहले मैं यह साफ कर दूँ कि आत्‍माभिमान और अहंकार दो अलग-अलग बातें हैं।
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मैं नास्तिक क्यों हूँ? | भाग-2 - भगत सिंह

न्यायशास्त्र के सर्वाधिक प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार, दंड को अपराधी पर पड़ने वाले असर के आधार पर, केवल तीन-चार कारणों से उचित ठहराया जा सकता है। वे हैं प्रतिकार, भय तथा सुधार। आज सभी प्रगतिशील विचारकों द्वारा प्रतिकार के सिद्धांत की निंदा की जाती है। भयभीत करने के सिद्धांत का भी अंत वही है। केवल सुधार करने का सिद्धांत ही आवश्यक है और मानवता की प्रगति का अटूट अंग है। इसका उद्देश्य अपराधी को एक अत्यंत योग्य तथा शांतिप्रिय नागरिक के रूप में समाज को लौटाना है। लेकिन यदि हम यह बात मान भी लें कि कुछ मनुष्यों ने (पूर्व जन्म में) पाप किए हैं तो ईश्वर द्वारा उन्हें दिए गए दंड की प्रकृति क्या है? तुम कहते हो कि वह उन्हें गाय, बिल्ली, पेड़, जड़ी-बूटी या जानवर बनाकर पैदा करता है। तुम ऐसे 84 लाख दंडों को गिनाते हो। मैं पूछता हूँ कि मनुष्य पर सुधारक के रूप में इनका क्या असर है? तुम ऐसे कितने व्यक्तियों से मिले हो जो यह कहते हैं कि वे किसी पाप के कारण पूर्वजन्म में गदहा के रूप में पैदा हुए थे? एक भी नहीं? अपने पुराणों से उदाहरण मत दो। मेरे पास तुम्हारी पौराणिक कथाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। और फिर, क्या तुम्हें पता है कि दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है? गरीबी एक अभिशाप है, वह एक दंड है। मैं पूछता हूँ कि अपराध-विज्ञान, न्यायशास्त्र या विधिशास्त्र के एक ऐसे विद्वान की आप कहाँ तक प्रशंसा करेंगे जो किसी ऐसी दंड-प्रक्रिया की व्यवस्था करे जो कि अनिवार्यतः मनुष्य को और अधिक अपराध करने को बाध्य करे? क्या तुम्हारे ईश्वर ने यह नहीं सोचा था? या उसको भी ये सारी बातें-मानवता द्वारा अकथनीय कष्टों के झेलने की कीमत पर - अनुभव से सीखनी थीं? तुम क्या सोचते हो। किसी गरीब तथा अनपढ़ परिवार, जैसे एक चमार या मेहतर के यहाँ पैदा होने पर इन्सान का भाग्य क्या होगा? चूँकि वह गरीब हैं, इसलिए पढ़ाई नहीं कर सकता। वह अपने उन साथियों से तिरस्कृत और त्यक्त रहता है जो ऊँची जाति में पैदा होने की वजह से अपने को उससे ऊँचा समझते हैं। उसका अज्ञान, उसकी गरीबी तथा उससे किया गया व्यवहार उसके हृदय को समाज के प्रति निष्ठुर बना देते हैं। मान लो यदि वह कोई पाप करता है तो उसका फल कौन भोगेगा? ईश्वर, वह स्वयं या समाज के मनीषी? और उन लोगों के दंड के बारे में तुम क्या कहोगे जिन्हें दंभी और घमंडी ब्राह्मणों ने जान-बूझकर अज्ञानी बनाए रखा तथा जिन्हें तुम्हारी ज्ञान की पवित्र पुस्तकों - वेदों के कुछ वाक्य सुन लेने के कारण कान में पिघले सीसे की धारा को सहने की सजा भुगतनी पड़ती थी? यदि वे कोई अपराध करते हैं तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा और उसका प्रहार कौन सहेगा? मेरे प्रिय दोस्तो, ये सारे सिद्धांत विशेषाधिकार युक्त लोगों के आविष्कार हैं। ये अपनी हथियाई हुई शक्ति, पूँजी तथा उच्चता को इन सिद्धान्तों के आधार पर सही ठहराते हैं। जी हाँ, शायद वह अपटन सिंक्लेयर ही था, जिसने किसी जगह लिखा था कि मनुष्य को बस (आत्मा की) अमरता में विश्वास दिला दो और उसके बाद उसकी सारी धन-संपत्ति लूट लो। वह बगैर बड़बड़ाए इस कार्य में तुम्हारी सहायता करेगा। धर्म के उपदेशकों तथा सत्ता के स्वामियों के गठबंधन से ही जेल, फाँसी घर, कोड़े और ये सिद्धांत उपजते हैं।
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मैं ज्ञान का दीपक जलाए रखूंगा  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

डॉ कलाम बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने कविता भी की है:
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चंद्रशेखर आज़ाद का राखी प्रसंग - भारत-दर्शन संकलन

बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फिरंगी उनके पीछे लगे थे।
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महाभारत संबंधी कथा  - भारत-दर्शन संकलन

महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के वृत्तांत मिलते हैं।

महाभारत में ही रक्षाबंधन से संबंधित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तांत मिलता है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था।

श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था।
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रक्षा बंधन का ऐतिहासिक प्रसंग  - भारत-दर्शन संकलन

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
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डॉ कलाम का शायराना केश-विन्यास - रोहित कुमार 'हैप्पी'

डॉ कलाम के राष्ट्रपति बनने पर इनके केशों की भी काफी चर्चा रही। आपका शायराना केश-विन्यास (हेयर स्टाइल) चर्चा में रहा।
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और नाम पड़ गया आज़ाद  - भारत-दर्शन संकलन

चन्द्रशेखर बचपन से ही महात्मा गांधी से प्रभावित थे। वे बचपन से स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने लगे थे - गांधीजी के 'असहयोग आंदोलन' के दौरान उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया।  इसी असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें पहली बार पंद्रह वर्ष की आयु आंदोलनकारी के रूप में पकड़ लिया गया और जब मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया।  उसका नाम पूछा गया तो  उन्होंने कहा "आजाद"।
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रक्षा बंधन - चंद्रशेखर आज़ाद का प्रसंग  - भारत-दर्शन संकलन

बात उन दिनों की है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत थे और फ़िरंगी उनके पीछे लगे थे।

फिरंगियों से बचने के लिए शरण लेने हेतु आज़ाद एक तूफानी रात को एक घर में जा पहुंचे जहां एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। हट्टे-कट्टे आज़ाद को डाकू समझ कर पहले तो वृद्धा ने शरण देने से इनकार कर दिया लेकिन जब आज़ाद ने अपना परिचय दिया तो उसने उन्हें ससम्मान अपने घर में शरण दे दी। बातचीत से आज़ाद को आभास हुआ कि गरीबी के कारण विधवा की बेटी की शादी में कठिनाई आ रही है। आज़ाद ने महिला को कहा, 'मेरे सिर पर पाँच हजार रुपए का इनाम है, आप फिरंगियों को मेरी सूचना देकर मेरी गिरफ़्तारी पर पाँच हजार रुपए का इनाम पा सकती हैं जिससे आप अपनी बेटी का विवाह सम्पन्न करवा सकती हैं।
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प्रेमचंद के संस्मरण - भारत-दर्शन संकलन

एक बार बनारसीदास चतुर्वेदी ने प्रेमचन्द को मज़ाक में पत्र लिखकर शिवरानी (प्रेमचंद की पत्नी) को कलाई घड़ी दिलने की सिफ़ारिश की। चतुर्वेदी ने पत्र में लिखा -
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रक्षा बंधन साहित्यिक संदर्भ - भारत-दर्शन संकलन

अनेक साहित्यिक ग्रंथों में रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिकृष्ण प्रेमी के ऐतिहासिक नाटक, 'रक्षाबंधन' का 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है 'राखी उर्फ रक्षाबंधन'।
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प्रेमचंद की विचार यात्रा - शैलेंद्र चौहान

प्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख ‘महाजनी सभ्यता' में लिखा है कि ‘मनुष्य समाज दो भागों में बँट गया है । बड़ा हिस्सा तो मरने और खपने वालों का है, और बहुत ही छोटा हिस्सा उन लोगों का था जो अपनी शक्ति और प्रभाव से बड़े समुदाय को बस में किए हुए हैं । इन्हें इस बड़े भाग के साथ किसी तरह की हमदर्दी नहीं, जरा भी रू -रियायत नहीं। उसका अस्तित्व केवल इसलिए है कि अपने मालिकों के लिए पसीना बहाए, खून गिराए और चुपचाप इस दुनिया से विदा हो जाए।' इस उद्धरण से यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद की मूल सामाजिक चिंताएँ क्या थीं ।
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आज़ाद के अमर-वचन - भारत-दर्शन संकलन

"जिस राष्ट्र ने चरित्र खोया उसने सब कुछ खोया।"
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मैं कहानी कैसे लिखता हूँ - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूँ मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियाँ नहीं लिखता। मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ। जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती। आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ। कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे।
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फिल्मों में रक्षा-बंधन  - भारत-दर्शन संकलन

'राखी' और 'रक्षा-बंधन' पर अनेक फ़िल्में बनीं और अत्यधिक लोकप्रिय हुई, इनमें से कुछ के गीत तो मानों अमर हो गए। इनकी लोकप्रियता आज दशकों पश्चात् भी बनी हुई है।
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प्रेमचंद की सर्वोत्तम 15 रचनाएं - रोहित कुमार 'हैप्पी'

मुंशी प्रेमचंद को उनके समकालीन पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने 1930 में उनकी प्रिय रचनाओं के बारे में प्रश्न किया, "आपकी सर्वोत्तम पन्द्रह गल्पें कौनसी हैं?"
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क्या आप जानते हैं? - भारत-दर्शन संकलन

यहाँ प्रेमचंद के बारे में कुछ जानकारी प्रकाशित कर रहे हैं। हमें आशा है कि पाठकों को भी यह जानकारी लाभप्रद होगी।
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चन्द्रशेखर आज़ाद की पसंदीदा शायरी - भारत-दर्शन संकलन

पं० चंद्रशेखर आज़ाद को गाना गाने या सुनने का शौक नहीं था लेकिन फिर भी वे कभी-कभी कुछ शेर कहा करते थे। उनके साथियों ने निम्न शेर अज़ाद के मुंह से कई बार सुने थे:
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प्रेमचन्दजी के साथ दो दिन - बनारसीदास चतुर्वेदी

"आप आ रहे हैं, बड़ी खुशी हुई। अवश्य आइये। आपने न-जाने कितनी बातें करनी हैं।
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प्रेमचंद गरीब थे, यह सर्वथा तथ्यों के विपरीत है  - रोहित कुमार 'हैप्पी'

Dr. Kamal Kishore Goyanka
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कछुआ-धरम | निबंध - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri


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न्यूज़ीलैंड एक परिचय - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

न्यूज़ीलैंड (New Zealand) या आओटियारोआ (Aotearoa - न्यूज़ीलैंड का माओरी नाम) दक्षिण प्रशान्त महासागर में आस्ट्रेलिया के 2000 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 269,000 वर्ग किलोमीटर है। यह क्षेत्रफल व आकार की दृष्टि से जापान से कुछ छोटा व ब्रिटेन से थोड़ा सा बड़ा कहा जा सकता है। न्यूज़ीलैंड की राजधानी वैलिंगटन है तथा सबसे बड़ा शहर ऑकलैंड है। ऑकलैंड को न्यूज़ीलैंड की वाणिज्य राजधानी भी कहा जा सकता है। न्यूज़ीलैंड की जनसंख्या लगभग 45 लाख ( 4.5 मिलियन) है जिसमें 80 प्रतिशत यूरोपियन समुदाय, सात में से एक माओरी (तांगाता फेनुआ, मूल या देशी लोग) 15 में से एक एशियन और 16 में से एक प्रशान्त द्वीप मूल के लोग सम्मिलित हैं। न्यूज़ीलैंड तेजी से बहु-संस्कृति समाज (Multi-cultural Society) के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है।
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मैं नास्तिक क्यों हूँ  - भगत सिंह

'मैं नास्तिक क्यों हूँ ?'  यह आलेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र "द पीपल" में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगतसिंह ने अपने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।
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भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य - डॉ शुभिका सिंह

"हिमालय के ऑंगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार।"
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15 अगस्त - स्वतंत्रता दिवस - राष्ट्रीय पोर्टल

"रात 12 बजे जब दुनिया सो रही होगी तब भारत जीवन और स्‍वतंत्रता पाने के लिए जागेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर कदम बढ़ाएंगे... भारत दोबारा अपनी पहचान बनाएगा।" - पंडित जवाहरलाल नेह‍रू
(भारतीय स्‍वतंत्रता दिवस, 1947 के अवसर पर)
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चंद्रशेखर आज़ाद का जीवन परिचय - भारत-दर्शन संकलन

चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrasekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई, 1906 को एक आदिवासी ग्राम भाबरा में हुआ था। काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में सम्मिलित निर्भीक महान देशभक्त व क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम् स्थान रखता है।
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रक्षा बंधन का इतिहास व पौराणिक कथाएं - भारत-दर्शन संकलन

रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।
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अरविंद कुमार और उनके विलक्षण कोश  - मीता लाल

आज हर ओर पचासी-वर्षीय अरविंद कुमार के नवीनतम द्विभाषी कोश अरविंद वर्ड पावर - इंग्लिश-हिंदी की धूम मची है। अशोक वाजपेयी जैसे मनीषी लिख रहे हैँ - हिंदी समाज को अरविंद कुमार का कृतज्ञ होना चाहिए कि उन्होँ ने ऐसा अद्भुत कोश बनाया।
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पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का कथा संसार | एक विवेचना - सुदर्शन वशिष्ठ

बहुआयाभी प्रतिमा के स्वाभी पंडित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के विषय में तीन बातें बहुत विलक्षण हैं । पहली तो ये कि उनकी Gulerijiएकमात्र कहानी 'उसने कहा था' आज से एक सदी पूर्व हिन्दी जगत में एक अभूतपूर्व घटना के रूप में प्रकट हुईं । दूसरी, संस्कृत के महापण्डित होने के साथ कई भाषाओं के ज्ञाता होते हुए भी एक विशुद्ध हिन्दी प्रेमी रहे । दर्शन शास्त्र ज्ञाता, भाषाविद, निबन्धकार, ललित निबन्धकार, कवि, कला समीक्षक, आलोचक, संस्मरण लेखक, पत्रकार और संपादक होते हुए वे हिन्दी को समर्पित रहे । और तीसरी यह कि 12 सितम्बर 1922 को केवल उनतालीस वर्ष, दो महीने और पांच दिन की अल्पायु में उनका देहावसान हो गया किंतु अपने अल्प जीवन में वे इतना अधिक हिन्दी साहित्य को दे गए जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ।
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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा - सुभाष चंद्र बोस - भारत-दर्शन संकलन

जब भारत स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था और नेताजी आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए सक्रिय थे तब आज़ाद हिंद फ़ौज में भरती होने आए सभी युवक-युवतियों को संबोधित करते हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।"

'हम अपना खून देने को तैयार हैं, सभा में बैठे हज़ारों लोग हामी भरते हुए प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने उमड़ पड़े।

नेताजी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं। वही आगे बढ़े जिसकी रगो में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिन्हें अपने प्राणों का मोह न हो, और जो आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हो़ं।"

नेताजी की बात सुनकर सबसे पहले सत्रह भारतीय युवतियां आगे आईं और अपनी कमर पर लटकी छुरियां निकाल कर, झट से अपनी उंगलियों पर छुरियां चलाकर अपने रक्त से प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने लगीं।  महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया गया जिसकी कैप्टन बनी  लक्ष्मी सहगल।

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राखी - भारत-दर्शन संकलन
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। उत्तरी भारत में यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है और इस त्यौहार का प्रचलन सदियों पुराना बताया गया है। इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हुए अपना स्नेहाभाव दर्शाते हैं।

रक्षा बंधन का उल्लेख हमारी पौराणिक कथाओं व महाभारत में मिलता है और इसके अतिरिक्त इसकी ऐतिहासिक व साहित्यिक महत्ता भी उल्लेखनीय है।

आइए, रक्षा-बंधन के सभी पक्षों पर विचार करें।

रक्षा बंधन - वामनावतार कथा
रक्षा बंधन - भविष्य पुराण की कथा
महाभारत संबंधी कथा
ऐतिहासिक प्रसंग
चंद्रशेखर आज़ाद का प्रसंग
साहित्यिक संदर्भ
फिल्मों में रक्षा-बंधन
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