साहित्य की उन्नति के लिए सभाओं और पुस्तकालयों की अत्यंत आवश्यकता है। - महामहो. पं. सकलनारायण शर्मा।
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हिन्दी दिवस - खाक बनारसी

अपने को आता है
बस इसमें ही रस
वर्ष में मना लेते
एक दिन हिंदी दिवस
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जन-गण-मन साकार करो - छेदीसिंह

हे बापू, इस भारत के तुम,
एक मात्र ही नाथ रहे,

जीवन का सर्वस्व इसी को

देकर इसके साथ रहे।

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हिन्दी - गौरी शंकर वैद्य ‘विनम्र’

भारत माता के अन्तस की
निर्मल वाणी हिन्दी है।
ज्ञान और विज्ञान शिरोमणि,
जन-कल्याणी हिन्दी है।
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देखो बापू | कविता - पूनम शुक्ला

देखो बापू
कितनी हिंसा है
कितनी अराजकता है
कितनी लंबी टाँगें हैं
झूठ की
फरेब की काली चादर
ढक देती है
सत्य का प्रकाश

पर फिर भी
देखो बापू
सत्य डोलता है
इन रगों में
झूठ हार ही जाता है
देखो बापू
हार गए न दोनों
झूठा गुरु
और लुटेरा नेता

-पूनम शुक्ला

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कलम, आज उनकी जय बोल | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
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शास्त्रीजी - कमलाप्रसाद चौरसिया | कविता - भारत-दर्शन संकलन | Collections

पैदा हुआ उसी दिन,
जिस दिन बापू ने था जन्म लिया
भारत-पाक युद्ध में जिसने
तोड़ दिया दुनिया का भ्रम।
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वीर | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं
स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं
...

हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur

एक डोर में सबको जो है बाँधती
वह हिंदी है,
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है।
भरी-पूरी हों सभी बोलियां
यही कामना हिंदी है,
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है,
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है।
...

हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections

प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी।
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे  - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन॥
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हिन्दी–दिवस नहीं, हिन्दी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिन्दी दिवस पर
एक नेता जी
बतिया रहे थे,
'मेरी पब्लिक से
ये रिक्वेस्ट है
कि वे हिन्दी अपनाएं
इसे नेशनवाइड पापुलर लेंगुएज बनाएं
और
हिन्दी को नेशनल लेंगुएज बनाने की
अपनी डयूटी निभाएं।'
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तीनों बंदर बापू के | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू के
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू के
ज्ञानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू के
लीला के गिरधारी निकले तीनों बंदर बापू के!
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ज़िन्दगी - अभिषेक गुप्ता

अधूरे ख़त
अधूरा प्रेम
अधूरे रिश्ते
अधूरी कविता
अधूरे ख्वाब 
अधूरा इंसान
पूरी ज़िन्दगी
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डूब जाता हूँ मैं जिंदगी के - अभिषेक गुप्ता

डूब जाता हूँ मैं ज़िंदगी के
उन तमाम अनुभावों में
जब खोलता हूँ अपने जहन की
एल्बम पन्ना दर पन्ना और
जब झांकता हूँ उन यादों में
...

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