हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
कहानियां
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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अधूरी कहानी - कुमारी राजरानी

मैं भला क्यों उसे इतना प्यार करती थी ? उसके नाममात्र से सारे शरीर में विचित्र कँपकँपी फैल जाती थी। उसकी प्रशंसा सुनते ही मेरी आँखें चमक जाती थीं। उसकी निन्दा सुनकर मेरा मन भारी हो उठता था। पर मैं उसके निन्दकों का खण्डन नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसके पक्ष समर्थन के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं थे। बस, अपनी विवशता पर गुस्सा आता था। और यदि मेरे पास पर्याप्त शब्द होते भी, तो मैं किस नाते उसके निन्दकों का मुँह बन्द करती?  वह मेरा कौन था और मैं उसकी क्या लगती थी!
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पूर्ण विराम थोड़ी ना लगा - मंगला रामचंद्रन

ईरा लाइब्रेरी में किताबों से कुछ नोट्स ले रही थी। अरूणा उसे ढूंढती हुई वहाँ पहुंच ग‌ई और हँसते हुए बोली—" ईरा, सारे दिन किताबों की खूशबू में डूबी रहती है कभी इनसे जी नहीं भरता?"
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ज़ालिम भूख - खेमराज श्रीबंधु आदर्श

सूरज की प्रथम किरण के साथ चिड़िया चहचहाने लगी थी। परिंदे अपने घोसलों को छोड़कर वन की ओर निकल पड़े थे, किंतु सेठ धनपत की नींद, शायद अभी तक पूरी नहीं हुई थी। फिर भी वे अपनी खुली तोंद पर हाथ फेरते हुए, बंगले के सामने पार्क में टहल रहे थे। इसमें उनका शेरू भी उनका पूर्ण ईमानदारी से साथ दे रहा था। बीच-बीच में वे बड़े प्यार से अपने शेरू के कानों में उंगलियॉं चलाने में पीछे नहीं रहते। शायद, उनको ऐसा करने में एक असीम आनंद प्राप्त हो रहा था। स्वाभाविक भी है कि उनके अंदर से एक आत्मविश्वास की आवाज निकल रही थी। वे मन ही मन कहते,"मेरी सम्पूर्ण करोडों की सम्पति का रक्षक, तो यह एक वफ़ादार कुत्ता शेरू ही तो है। जो सुबह से शाम तक किसी को बगंले के आस-पास फटकने नहीं देता। किसी की मजाल है, जो उसके सामने आ जाए! 'भौं-भौं'करके, जैसे कानों के पर्दे फाड़ देता।"
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तमाशा    - नफे सिंह कादयान

जून के अन्तिम पखवाड़े में सूर्य अपनी प्रचण्ड अग्नि शिखाओं से धरती झुलसाने लगा। वर्षा हुई तो लोगों को गर्मी से कुछ राहत मिली मगर बादलों ने जैसे ही आसमाँ से विदाई ली तेज धूप ने भीगी धरती को उबाल दिया। अब उमसी गर्मी में लोगों के शरीर पसीने से तर होने लगे। शाम के चार बजे अम्बाला शहर अलसाया हुआ सा चल रहा था। कमली इस शहर में आज आखिरी तमाशा दिखाने वाली थी। आज वह तीन बार करतब दिखा बुरी तरह थक चुकी थी। उसने शहर की बस्ती में एक व्यस्त सा चौक देख कर अपने बापू से रिक्शा रोकने को कहा।
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चिरसंचित प्रतिकार - डॉ. आरती ‘लोकेश’

“गिरिजा! आपके बच्चों की स्कूल फीस कितनी जाती है?” अपनी कम्पनी के नए नियुक्त मानव संसाधन अफसर जयंत समदर्शानी का यह प्रश्न मुझे अवाक् कर गया।
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