देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

 
बाल-साहित्य
बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल-कहानियाँ, बाल गीत व कविताएँ प्रमुख हैं। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पंचतंत्र की कथाएँ बाल साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हिंदी बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर-कथाएँ व अकबर बीरबल के क़िस्से बच्चों के साहित्य में सम्मिलित हैं। पंचतंत्र की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गई है। बाल साहित्य के अंतर्गत बाल कथाएँ, बाल कहानियां व बाल कविता सम्मिलित की गई हैं।

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सड़क यहीं रहती है | शेखचिल्ली के कारनामें - भारत-दर्शन संकलन

एक दिन शेखचिल्ली कुछ लड़कों के साथ, अपने कस्बे के बाहर एक पुलिया पर बैठा था। तभी एक सज्जन शहर से आए और लड़कों से पूछने लगे, "क्यों भाई, शेख साहब के घर को कौन-सी सड़क गई है ?"
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मेरा भी तो मन करता है - डॉ. जगदीश व्योम

मेरा भी तो मन करता है
मैं भी पढ़ने जाऊँ
अच्छे कपड़े पहन
पीठ पर बस्ता भी लटकाऊँ

क्यों अम्मा औरों के घर
झाडू-पोंछा करती है
बर्तन मलती, कपड़े धोती
पानी भी भरती है
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बचपन से दूर हुए हम - डॉ. जगदीश व्योम

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम
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कम्प्यूटर | बाल गीत  - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया

नहीं चाहिए मुझको ट्यूटर
माँ मुझको ला दे कम्प्यूटर।
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गवैया गधा - विष्णु शर्मा

एक धोबी के पास एक गधा था। गधा हर रोज मैले कपड़ों की गठरी पीठ पर लादकर घाट पर जाता और संध्या समय धुले कपड़ों का गट्ठर लेकर घर लौट आता। यही उसकी दिनचर्या थी। रात में धोबी उसे खुला छोड़ देता।
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घास में होता विटामिन - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

घास में होता विटामिन
गाय, भेड़ें, घोड़े;
घास खाकर जीते, उनके
बावर्ची हैं थोड़े!
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कपटी मित्र  - सीताराम | बाल कहानी
मगध देश में चम्पकवती नाम का एक वन हैं,  वहाँ बहुत दिनों से एक हिरन और एक कौवा बड़े स्नेह से रहते थे। एक दिन हिरन इधर-उधर टहल रहा था। उसे एक सियार ने देखा। सियार ने विचारा, “अरे, इसके सुन्दर मांस को कैसे खायें ? अच्छा चलो, पहले मेल करके विश्वास तो करावें।”  ऐसा सोच उसके पास जाकर बोला, “मित्र अच्छे हो?  हिरन ने पूछा, “तुम कौन हो?  सियार बोल, मैं क्षुद्र-बद्धि नाम का सियार हूँ। इस वन में बिना किसी मित्र के अकेला मरे की नाईं रहता हूँ। अब तुमको मित्र पाके फिर से मेरा जन्म होगा। अब तो में सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।” मृग ने कहा, “बहुत अच्छा।“

जब सूर्यनारायण अस्त हो गए, तो दोनों हिरन के कुंज में गए। वहाँ चम्पा की डार पर हिरन का पुराना मित्र सुबुद्धि नाम का काऊवा बैठा हुआ था। इन दोनों को देख, उसने पूछा, “यह कौन है?” हिरन ने कहा, “यह एक सियार है, हम लोगों से मिताई करने आया है।” कौवे ने कहा, “भाई, अकस्मात्‌ आनेवाले के साथ मिताई नहीं की जाती। यह काम तुमने अच्छा नहीं किया।” इतना सुनते ही सियार लाल-लाल आँखें करके बोला, “जब तुम्हारी हिरन की पहली भेंट हुई थी, तब तुम भी ऐसे ही थे। तुम्हारे साथ केसे आज तक प्रीति दिन-दिन बढ़ती जाती है? जैसे हिरन हमारा मित्र है, वैसे ही तुम भी।“  हिरन ने कहा, “इस बकवाद से क्‍या मिलेगा? आओ सब कोई इकट्ठे चैन से बातचीत करें।“  कौवा बोला, “अच्छा।” सबेरे सब इधर-उधर चले गए।

एक दिन सियार ने हिरन से चुपके से कहा, “भाई, इसी वन की एक ओर अनाज से भरापूरा एक खेत है, चलो तुम्हें दिखा दें।” मृग ने जो खेत देख लिया, तो नित वहीं जाकर अनाज चरा करता। एक दिन किसान ने हिरन को देख लिया और जाल फैला दिया। हिरन जो आया, वो जाल में फँस गया और सोचने लगा,  “इस काल की फाँसी ऐसे जाल से सिवाय मित्र के और कौन छुड़ा सकता है?” इतने ही में सियार भी वहाँ आ पहुंचा और हिरन को देख, सोचने लगा, “मेरा छल सफल हो गया। अब मनोरथ भी परा होगा;  क्योंकि जब यह काटा जाएगा, तो इसकी बोटियाँ हमें खाने को मिलेंगी। हिरन उसे देख खुशी से फूल गया और बोला, “भाई, मेरे बंधन काट दो। मुझे छुड़ाओ। अब देर न करो।”

सियार ने जाल को बार-बार देखकर विचारा कि हिरन तो कठिन बन्धन में बांध गया है। वह बोला, “भाई, जाल ताँत का बना है। इसमें इतवार के दिन दाँत कैसे लगाऊँ? तुम अपने मन में और कुछ मत समझना, सवेरे जो कहोगे, वही करूँगा।” जब साँझ हो गई और हिरन न आया, तो कौवा भी उसे ढूँढता हुआ वहीं आ पहुँचा और हिरन को उस दशा में देख के बोला, “भाई, यह क्या हुआ? हिरन ने कहा,  “भाई, हित की बात न मानने का फल। कौवे ने कहा,  “वह सियार कहाँ है? हिरन बोला, मेरे मांस के लालच में यहीं-कहीं होगा। कौवे ने कहा, मैंने तो  तुमसे पहले ही कहा था।” तब कोकौवा लम्बी साँस लेके बोला, “अरे दगाबाज़ पापी, तूने यह क्या किया?” सबेरे किसान को लाठी लेकर उसी ठाँव आते देख, कौवे ने कहा, “भाई हिरन, तुम अपना पेट फुला और हाथ पेर ढीले कर, मरे जैसे बन जाओ। जब में चिल्लाऊँ, तो तुम तुरन्त उठके भाग जाना।” कौबे की बात पर हिरन वैसा ही बन गया। किसान हिरन को मरा जान हँस के बोला, “अरे, यह तो आप ही मर गया।”  इतना कह वह हिरन को खोल जाल बटोरने लगा। जब किसान कुछ दूर चला गया, तो कौवा चिल्लाया और हिरन झटपट उठके भाग गया। किसान ने लाठी चलाई, वह सियार के लगी और वह मर गया।

-सीताराम
[साहित्य संग्रह]
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माँ मारेंगी !  - रघुवीर शरण

अगर हाथ देंगे नाली में, माँ मारेंगी ।
अगर साथ देंगे गाली में माँ मारेंगी ॥
कपड़े मैले नहीं करेंगे, माँ मारेंगी ।
मिट्टी सर में नहीं भरेंगे, माँ मारेंगी ।
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चाँद की सैर  - डॉ सुशील शर्मा

डब्बू ने इक सपना देखा
चाँद सैर पर जाने का।
उड़ता हुआ चाँद पर पहुँचा
बड़ा मज़ा उड़ जाने का।
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