अगस्त 31, 2015
आधिकारिक प्रवक्ता (श्री विकास स्वरूप): नमस्कार, मैं इस प्रेस वार्ता में आप सबका स्वागत करता हूँ। जैसा कि आप जानते हैं, दसवॉं विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में 10 से 12 सितम्बर, 2015 को विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित किया जा रहा है। आज हम आपको इस सम्मेलन की पृष्ठभूमि और इसके कार्यक्रम से अवगत करायेंगे। इस प्रेस वार्ता में हमारे साथ उपस्थित हैं माननीय विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जी, जो दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की अध्यक्षता करेंगी। उनके साथ हैं माननीय विदेश राज्य मंत्री और कार्यक्रम संचालन समिति के उपाध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह जी, प्रबन्धन समिति के उपाध्यक्ष सांसद श्री अनिल माधव दवे जी और सचिव(पूर्व) श्री अनिल वाधवा जी।
अब मैं माननीय विदेश मंत्री जी से अनुरोध करूँगा कि वह अपना प्रारम्भिक वक्तव्य दें।
माननीय विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री (श्रीमती सुषमा स्वराज): मित्रों, जैसा कि विकास जी ने बताया, आज का हमारा यह संवाददाता सम्मेलन दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के संबंध में हो रहा है। सबसे पहले मैं इसकी थोड़ी-सी पृष्ठभूमि बताना चाहूँगी। विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन की परम्परा सन् 1965 में शुरू हुई। पहला सम्मेलन भारत में ही नागपुर में हुआ। उसके एक वर्ष बाद ही सन् 1976 में यह सम्मेलन मॉरीशस में हुआ। लेकिन उसके बाद इसमें अन्तराल पड़ते गये और यह भी तय नहीं हो पा रहा था कि कितने वर्षों के अन्तराल पर यह होगा। तो अभी तक जो नौ सम्मेलन हुए, उनमें से दो सम्मेलन भारत में हुए - एक नागपुर में और उसके बाद 1983 में दिल्ली में, दो मॉरीशस में हुए, एक लन्दन में, एक न्यूयार्क में, एक त्रिनिदाद और टोबैगो में, एक सूरीनाम में, और एक दक्षिण अफ्रीका में जोहानेसबर्ग में हुआ। नौवां सम्मेलन जो जोहानेसबर्ग में हुआ, उसी में यह तय कर दिया गया कि अगला सम्मेलन भारत में होगा।
सबसे पहले इस सम्मेलन के आयोजन का काम राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा को दिया गया था। उसके बाद 1983 में यह काम मानव संसाधन मंत्रालय को दे दिया गया। लेकिन 1996 में जब यह लगा कि सम्मेलन सुचारू रूप से नहीं हो पाता है या अन्तराल बढ़ जाता है, तब यह काम विदेश मंत्रालय को सौंप दिया गया। सन् 1996 से अब तक यह सम्मेलन विदेश मंत्रालय के तत्वावधान में होता है और यह तय किया गया है कि हम तीन वर्ष के अन्तराल पर इसको किया करेंगे, कभी भारत में और कभी बाहर।
यह जो दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन है, यह 10 से 12 सितम्बर को भोपाल में होगा। 10 सितम्बर को सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करेंगे और 12 सितम्बर को तीन बजे गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी इसका समापन करेंगे। इस बार के सम्मेलन की एक मुख्य बात यह है कि नौ के नौ सम्मेलन जो आज तक हुए वे हिन्दी साहित्य के इर्द-गिर्द रहे। साहित्य की जो अलग-अलग विधायें थीं, उनसे संबंधित सत्र हुआ करते थे और उन विधाओं और रचनाओं की आलोचना-समालोचना तक ही वे सीमित रहते थे। इस बार हमने सम्मेलन की रूपरेखा पूरी तरह बदल दी है और इसे भाषा-केन्द्रित किया है। इसीलिए हमने इसका मुख्य विषय चुना है - हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनायें।
हिन्दी के विस्तार की क्या-क्या सम्भावनायें हैं, कहॉं-कहॉं आवश्यकता है और क्या-क्या उसके लिए किया जाना चाहिये और इस मुख्य विषय से जुड़े हुए 12 विषय हमने रखे हैं और उन 12 विषयों के लिए 28 सत्र रखे हैं। जैसे मुख्य विषय है ‘हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनायें।’ तो आगे के जो 12 विषय चुने हैं, उनमें से एक है, ‘विदेश नीति में हिन्दी’ क्योंकि आप सब जानते हैं कि विदेश नीति में अंग्रेजी का आधिपत्य है। लेकिन इस सरकार के समय में हिन्दी ने काफी स्थान लिया है। दूसरा विषय है, ‘प्रशासन में हिन्दी।’ तीसरा विषय है, ‘विज्ञान में हिन्दी’ और चौथा विषय है, ‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हिन्दी’, क्योंकि जब तक सूचना एवं प्रौद्योगिकी हिन्दी को नहीं अपनायेगी और हिन्दी में नहीं आयेगी तब तक सूचना एवं प्रौद्योगिकी का विस्तार नहीं होगा और हिन्दी का विस्तार भी कम होगा।
इन चारों विषयों में हमने शासन से संबंधित लोगों की अध्यक्षता रखी है और इन चारों विषयों के सत्र भी चर्चा के लिए दो-दो रखे हैं। डेढ़-डेढ़ घण्टे का एक सत्र होगा लेकिन इन चारों विषयों पर तीन घण्टे की चर्चा होगी। डेढ़-डेढ़ घण्टे के दो सत्र होंगे। बाद में हमने हर सत्र के लिए एक-एक रिपोर्ट का सत्र भी रखा है। वर्ना चर्चा होती है, रिपोर्ट बाद में होती है तो जो चर्चा में भाग लेते हैं, उन्हें यह मालूम ही नहीं होता कि जो चर्चा होती है उसकी झलक उसमें आई या नहीं आई। तो रिपोर्ट भी बाकायदा अनुमोदित की जायेगी। एक रिपोर्ट का सत्र होगा। इन चारों विषयों में, ‘विदेश नीति में हिन्दी’ सत्र की अध्यक्षता मैं स्वयं कर रही हूँ। ‘प्रशासन में हिन्दी’ सत्र की अध्यक्षता श्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश कर रहे हैं। ‘विज्ञान में हिन्दी’ सत्र की अध्यक्षता डॉ. हर्षवर्धन करेंगे और ‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी’ सत्र की अध्यक्षता श्री रविशंकर प्रसाद करेंगे ताकि बजाय इसके कि बाद में उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाये, वह आधी-अधूरी पढ़ी जाये या न पढ़ी जाये, वे स्वयं चर्चा के समय मौजूद हों और क्या विषय उभर कर आ रहे हैं। जो रिपोर्ट बने उसका अनुपालन तुरन्त प्रारम्भ हो जाये इसलिए इन चारों सत्रों को हम लोगों ने शासकीय अध्यक्षता दी है।
इसके अलावा हमने विषय दिये हैं- गिरमिटिया देशों में हिन्दी, भारतीय मूल के लोग जहॉं गये हैं, जिन्हें हम गिरमिटिया देश कहते हैं। एक विषय लिया है, हिन्दीतर भाषी राज्यों में हिन्दी, जो अन्य भाषा-भाषी राज्य हैं उनमें हिन्दी, और एक विषय रखा है, बाल साहित्य में हिन्दी। जैसा कि मैनें कहा, साहित्य से हम भाषा की ओर ले गये हैं। बाल साहित्य हमने इसलिए रखा है क्योंकि वहॉं से बच्चे को प्रारम्भ में ही हिन्दी का शिक्षण मिल जाता है- शिशुगीत के माध्यम से, लोरी के माध्यम से। तो यह विषय है बाल साहित्य में हिन्दी।
फिर हमने विषय रखा है, विदेशों में हिन्दी शिक्षण की सुविधा। बहुत-सी संस्थाएं जो विदेशों में हिन्दी शिक्षण कर रही हैं, हमारे यहॉं आई.सी.सी.आर. की पीठ हैं, चेयर्स बना रखी हैं उनमें हिन्दी शिक्षण चल रहा है। तो ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण की सुविधा’ एक विषय है। इस जैसा ही एक विषय रखा है, ‘भारत में विदेशियों के लिए हिन्दी अध्ययन की सुविधा’, जो हमारे यहॉं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में चल रहे हैं जहॉं विदेशी आकर हिन्दी पढ़ते हैं। तो ‘भारत में विदेशियों के लिए हिन्दी अध्ययन की सुविधा’ एक विषय है। एक प्रकाशन से संबंधित विषय रखा है, ‘देश एवं विदेश में प्रकाशन की समस्याएं एवं समाधान’ एक विषय है जो आप लोगों से भी बहुत संबंधित है, क्योंकि हिन्दी में संवर्द्धन तो एक विषय है, अब तो उसके संरक्षण का भी विषय आ गया है। हिन्दी पत्रकारिता की भाषा बिगड़ रही है। तो हमने एक विषय रखा है, ‘हिन्दी पत्रकारिता एवं हिन्दी संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता।’
इस तरह से ये 12 विषय हमने रखे हैं, इन सत्रों के अलग-अलग अध्यक्ष रखें हैं, संयोजक रखे हैं, उनके वक्ता रखे हैं। यह कार्यक्रम तीन दिन तक चलेगा और चार सत्र समानान्तर हुआ करेंगे। उद्घाटन और समापन के अलावा 12 विषयों के 28 सत्र हैं। कुल मिलाकर 30 सत्र होंगे। उद्घाटन सत्र और समापन सत्र अलग होगा, लेकिन ये 28 सत्र समानान्तर चलेंगे।
मध्य प्रदेश इसमें हमारा सहयोगी राज्य है और तीन विश्वविद्यालयों को हमने सहयोगी बनाया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल और अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, भोपाल हमारी सहयोगी संस्थायें होंगी। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा हमारे लिए रिपोर्ट संकलन का कार्य करेगी। इसके अलावा हमने तीनों दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा है। पहले दिन हमारा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार सांस्कृतिक कार्यक्रम करेगा। दूसरे दिन मध्य प्रदेश का संस्कृति मंत्रालय सांस्कृतिक कार्यक्रम करेगा। तीसरे दिन समापन के बाद कवि सम्मेलन होगा। उस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम के बजाय हम लोगों ने एक बड़ा कवि सम्मेलन रखा है। हमारे समापन कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। उनकी हमने विशेष उपस्थिति समापन के दिन रखी है।
भोपाल में दो संग्रहालय हैं- एक जनजातीय संग्रहालय और एक मानव संग्रहालय। दोनों का भ्रमण भी हमने एक-एक दिन रखा है। अपने आप में यह काफी भव्य सम्मेलन होगा। हमने प्रतिभागियों की तीन श्रेणियां रखी हैं- प्रतिनिधि, अतिथि और विशिष्ट। जो प्रतिनिधि श्रेणी है वे पंजीकृत होकर आ रहे हैं। उनका पंजीकरण शुरू हो गया है। मुझे आपको यह बताते हुए खुशी है कि पिछली बार जोहान्सबर्ग में जो सम्मेलन हुआ या उससे पहले जो सम्मेलन हुए, उसमें उपस्थिति लगभग 500-600 रही है। लेकिन इस बार हमारी तीनों श्रेणियों की कुल उपस्थिति 2000 से ज्यादा जा रही है और 1270 पर हमने पंजीकरण बंद किया है, 1270 प्रतिनिधि पंजीकृत हो गये हैं। हमने पंजीकरण का शुल्क रखा है- विदेशियों के लिए 100 डॉलर, भारतीयों के लिए रु0 5000 और छात्रों के लिए अलग शुल्क रखा है- 25 डॉलर विदेशी छात्रों के लिए और रु0 1000 भारतीय छात्रों के लिए। यह जो 1270 हमारा पंजीकरण हुआ है, इसमें 27 देशों के नागरिकों का पंजीरकण है और सबसे खुशी की बात है कि 1270 में से 464 केवल विद्यार्थियों का पंजीकरण हुआ है। तो ये 1270 हमारे प्रतिनिधि हैं, जो इसमें भाग लेंगे, जो पंजीकृत होकर आ रहे हैं, जो सारा व्यय स्वयं वहन करेंगे, 450 अतिथि श्रेणी के लोग हैं जिनका केवल पंजीकरण नि:शुल्क होगा, भोजन सम्मेलन की तरफ से होगा, बाकी यात्रा व्यय, आवास, वाहन की व्यवस्था वे स्वयं करेंगे, और 250 की संख्या हमारी ‘विशिष्ट’ की है जिसमें सरकारी प्रतिनिधिमण्डल हैं।
हमने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए तीन अलग समितियां बनायी हैं- एक परामर्शदाता मण्डल, एक प्रबन्ध समिति और एक कार्यक्रम संचालन समिति। इन तीनों के सभी सदस्य हमारे सरकारी प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य होंगे। उसके अलावा भी कुछ लोगों को सरकारी प्रतिनिधिमण्डल में रखा है। फिर हमारे सभी सत्रों के वक्ता, अध्यक्ष और संयोजक ‘विशिष्ट’ श्रेणी में रहेंगी। इस सम्मेलन में 20 भारतीय विद्वानों को और 20 विदेशों में रहने वाले भारतीय या विदेशी विद्वानों को सम्मानित किये जाने की परम्परा है। उसके लिए हमने एक चयन समिति नियुक्त की थी। उस चयन समिति के मण्डल भी ‘विशिष्ट’ प्रतिनिधि होंगे और ये 40 विद्वान भी ‘विशिष्ट’ श्रेणी में ही आयेंगे।
इन तीन श्रेणियों के अलावा मीडिया की श्रेणी है। करीब 100 का पंजीकरण यहॉं से और करीब 200 का पंजीकरण मध्य प्रदेश से ‘मीडिया’ श्रेणी में भी हुआ है। कुल मिलाकर 2000 प्रतिनिधि और 1000 मीडिया और व्यवस्था के लोग, इस प्रकार लगभग 3000 लोग हर समय तीनों दिन मौजूद रहेंगे। लेकिन उद्घाटन समारोह और समापन समारोह में हमने सभी हिन्दी-सेवी संस्थाओं को बुलाया है। तो उस समय हमारी संख्या पॉंच-पॉंच हजार की होगी। उद्घाटन समारोह में 5000 व्यक्ति और समापन समारोह में 5000 हिन्दी सेवी भाग लेंगे। बाकी 3000 की संख्या हर समय मौजूद रहेगी।
हमने परिसरों को अलग-अलग नाम दिया है। एक बहुत बड़ा परिसर हम बना रहे हैं। लाल परेड मैदान में यह सम्मेलन होगा। उस पूरे परिसर को ‘माखन लाल चतुर्वेदी परिसर’ नाम हमने दिया है। यह जो बड़ा सभागार 5000 व्यक्तियों का है, जिसमें हमारा उद्घाटन सत्र और समापन सत्र होगा, उसे हमने ‘श्री रामधारी सिंह दिनकर सभागार’ नाम दिया है। इसके अलावा सुभद्रा कुमारी चौहान परिसर, महादेवी वर्मा परिसर, कवि प्रदीप के नाम से परिसर बनाया है, श्री राजेन्द्र माथुर जो बहुत बड़े पत्रकार हैं, उनके नाम से परिसर बनाया है। इस तरह से हमने बहुत बड़े साहित्यकारों के नाम से, पत्रकारों के नाम से परिसर बनाये हैं। दुष्यन्त कुमार के नाम से परिसर है, काका कालेलकर के नाम से परिसर है। इसी तरह भोपाल के जितने भी चौराहे हैं, उनको बड़े नामों से सजाया है- तुलसी चौराहा, मीरा चौराहा, सूरदास चौराहा, रहीम चौराहा, रसखान चौराहा, इस तरह के चौराहों से सजाया है। तो अभी तक का सबसे भव्य सम्मेलन यह होगा।
हमने प्रदर्शनियॉं तय की हैं। हम एक प्रदर्शनी ‘विज्ञान में हिन्दी’ विषय पर लगा रहे हैं। ‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हिन्दी’ विषय के लिए वे सभी संस्थाएं आकर अपनी प्रदर्शनी लगा रही हैं जो अब हिन्दी में काम कर रही हैं – गूगल, एप्पल, सी-डैक, माइक्रोसॉफ्ट, भारतकोश। वहॉं लोगों को सिखाने का भी प्रबन्ध रखा है। एक कक्ष अलग बनाया है जिसमें वे लोग यदि सीखना चाहेंगे तो सीख भी सकेंगे। बहुत-से काम हिन्दी में सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हो रहे हैं लेकिन लोगों को मालूम नहीं हैं। वहॉं उसकी भी प्रदर्शनी का आयोजन हम लोगों ने किया है। हमने हिन्दी भाषी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी बुलाया है। उनकी स्वीकृतियॉं अभी आ रही हैं। दो-चार दिन बाद हमें मालूम हो जायेगा कि कितने मुख्यमंत्री उसमें भाग ले रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री उद्घाटन करेंगे और गृहमंत्री समापन करेंगे, ये स्वीकृतियॉं हमें प्राप्त हो गयी हैं। मुझे अपनी ओर से पृष्ठभूमि के रूप में इतना बताना था। यदि आप इससे संबंधित कोई भी प्रश्न मुझसे पूछना चाहें, तो मैं हाजिर हूँ।
प्रश्न : सुषमाजी, आपने कहा कि विज्ञान, सूचना और प्रौद्योगिकी में इंग्लिश में अभी तक के सिलेबस वगैरह हैं, तो क्या आपने कोई यूनीवर्सिटी के वाइस-चांसलर या टीचर्स या प्रोफेसर्स को बुलाया है, क्योंकि वे ही हिन्दी में ट्रान्सलेट करेंगे और जब हिन्दी में पढ़ाई होगी तभी स्टूडेन्ट्स को समझ में आयेगा। तो क्या वाइस-चांसलर या प्रवक्ता या कोई ऐसे प्रोफेसर्स को आपने बुलाया है?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : हमने हिन्दुस्तान के हर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष को बुलाया है और हमने उनको यह भी कहा है कि वे पॉंच-पॉंच छात्र भी अपने साथ लेकर आयें, क्योंकि वे ही इसको करेंगे। जो बात आपने कही, उनको बुलाया है, आमंत्रित किया है और वे आ रहे हैं। बहुत-से विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागाध्यक्ष अपने साथ पॉंच-पॉंच छात्र भी लेकर आ रहे हैं।
प्रश्न : अटलजी ने विदेश मंत्री के रूप में सन् 1977-78 में बहुत से लोगों को एनकरेज किया था, अपने भारत के लोगों को, कि आप लोग हिन्दी के शिक्षण की व्यवस्था करो। उन लोगों ने किया और उसके बाद हम लोग लगभग भूल गये। उनकी सरकारें उनको आर्थिक मदद कर रही हैं। क्या उनका सेन्सस या उनके बारे में कोई सर्वे या एनकरेजमेन्ट का कोई प्रावधान नहीं है?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : सब लोगों को हमने बुलाया है। जो संस्थायें विदेश में हिन्दी शिक्षण कर रही हैं, अपने-अपने मिशन के माध्यम से उनसे सम्पर्क किया है, उनको सबको बुलाया है। जब मैं सत्रों का विषय बता रही थी, तब भी मैनें आपको बताया कि एक विषय है ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण’ जिसमें डी.जी., आई.सी.सी.आर. के माध्यम से पीठ चलती हैं, चेयर्स बनी हुई हैं वे भी, और जो संस्थायें हिन्दी शिक्षण कर रही हैं वे भी हैं और वे ही लोग उसमें वक्ता बनकर आ रहे हैं।
प्रश्न : सुषमाजी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए भोपाल में जो आयोजन हो रहा है, उसमें आपको एक चीज का एहसास हुआ होगा कि संसद में अंग्रेजी से हिन्दी में जो ट्रान्सलेशन होता है, उसको समझने में काफी दिक्कत होती है। जो बोलचाल की भाषा आप इस्तेमाल आप कर रही हैं, वह आसानी से समझ में आ रही है। लेकिन हमने यह देखा है कि उस भाषा को पढ़ते हुए कई बार अंग्रेजी की स्क्रिप्ट का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए वह सुचारू ढंग से ट्रान्सलेट हो, लोगों की समझ में आये, उसके लिए कुछ काम हो।
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : आपने बहुत सही सवाल किया है। क्योंकि आपने संसद की बात की, हम लोगों ने ‘प्रशासन में हिन्दी’ विषय में एक उपविषय रखा है। यह जो हिन्दी आ रही है, यह पारिभाषिक शब्दावली से आ रही है। तो हमने उसका एक उपविषय रखा है : ‘पारिभाषिक शब्दावली की उपयोगिता, अनिवार्यता और व्यावहारिकता।‘ आपने जो पारिभाषिक शब्दावली बनाई है, उसकी उपयोगिता एवं व्यावहारिकता में कोई तुलना है? तो यह विषय ही हमने रखा है। पूनम जुनेजा, जो स्वयं राजभाषा विभाग में हैं, उनको वक्ता रखा है। ‘प्रशासन में हिन्दी’ विषय पर जब चर्चा होगी तो उस चर्चा में यह विषय बहुत ज्यादा अग्रिम रूप में आयेगा। जो बात आप कह रहे हैं कि हम किस तरह की हिन्दी पढ़ाना चाह रहे हैं और पारिभाषिक शब्दावली की कितनी उपयोगिता है, यह विषय रखा है।
Question (Tripti Nath, Asahi Shimbun): You have invited Mr. Amitabh Bachchan. If I am not mistaken, his father the late Dr. Harivansh Rai Bachchan used to be Hindi Officer in the External Affairs Ministry once upon a time. What is going to be Mr. Bachchan’s role in this entire thing and is the Government having to pay him anything for his presence?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : देखिए, जहॉं तक पेमेन्ट का सवाल है, कोई पेमेन्ट नहीं हो रही है। ‘विशिष्ट’ श्रेणी में वह आ रहे हैं और ‘विशिष्ट’ श्रेणी के लोगों के लिए केवल यात्रा व्यय है, उनके आवास की व्यवस्था है और वाहन की व्यवस्था है। तो कोई पेमेन्ट पर वह नहीं आ रहे हैं, कोई भुगतान हमसे नहीं ले रहे हैं। जो ‘विशिष्ट’ श्रेणी में बाकी सबको सुविधा मिल रही है, अमिताभ जी उसी में आ रहे हैं। आपने कहा, वह कहने क्या वाले हैं? हमें यह लगता है कि फिल्मों से जो हिन्दी गई है, उसमें अगर सबसे ज्यादा शुद्ध हिन्दी किसी ने बोलने की प्रेरणा दी है, तो वह अमिताभ बच्चन जी ने दी है। हमने उनको विषय भी दिया है कि वह यह कहें कि आओ अच्छी हिन्दी बोलें। तो वह इस पर ही बोलने वाले हैं कि युवजन को प्रेरणा मिले। इसमें जैसा मैनें बताया कि लगभग हमारी आधे प्रतिनिधि विद्यार्थी और युवा हैं और उनको एक प्रेरणादायक वक्तव्य अगर अमिताभ बच्चन जी से मिलता है जिसमें वह यह कहें कि आओ अच्छी हिन्दी बोलें, तो इस पर अमिताभ बच्चन बोलने वाले हैं।
प्रश्न : सुषमाजी, मैं जन जन जागरण, भोपाल से हूँ। यह विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन अच्छा आयोजन है लेकिन आपके विदेश मंत्रालय के सांस्कृतिक केन्द्र विदेशों में बन्द हैं, हिन्दी अध्यापकों को वेतन नहीं मिल पा रहा है, यह स्थायी समिति की रिपोर्ट में उल्लेख हुआ है। इस बारे में आपका क्या विचार है? एक तरफ तो हम हिन्दी को आयोजन के जरिये बचाना चाह रहे हैं, दूसरी तरफ हिन्दी के अध्यापकों के वेतन या उनकी समस्याओं की ओर हम ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। हमारे सांस्कृतिक केन्द्र जो विदेशों में है, वे बन्द होने की कगार पर हैं। इस मामले में आपका क्या कहना है?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : समस्याये हैं, लेकिन उन पर विचार नहीं हो रहा है, यह गलत है। समस्यायें हैं, यह सही है। लेकिन कोई भी सांस्कृतिक केन्द्र बन्द नहीं हो रहा है। पर आपने जो बात कही, जब हमने कहा कि इन पीठों पर कौन-कौन व्यक्ति लगे हैं, तो बहुत जगह आया है कि स्थान रिक्त है, स्थान रिक्त है, स्थान रिक्त है। तो समस्यायें हैं, लेकिन उन समस्याओं के समाधान के लिए हम लोग अग्रसर हैं और आप लोग देखेंगे कि इस विश्व हिन्दी सम्मेलन के समाप्त होने के बाद वे सारी रिक्तियॉं भर जायेंगी।
प्रश्न (प्रणय उपाध्याय, आई.बी.एन.) : विदेश मंत्री जी, संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को मान्यता प्राप्त भाषा बनाने के लिए 2003 से प्रयास चल रहे हैं और संसद में आपके मंत्रालय के जवाब अक्सर यह कहते हैं कि आर्थिक बोझ के कारण यह काम पूरा नहीं हो पा रहा है। आखिर इस अार्थिक बोझ का समाधान निकालने के लिए अब तक कोई प्रयास हुआ है और क्या आप देखती हैं कि आपके कार्यकाल में यह लक्ष्य प्राप्त हो पायेगा?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ कि ये काम जो अब तक नहीं हो पाया, वह आर्थिक बोझ के कारण नहीं हो पाया, सही नहीं है। मैनें आने के बाद सबसे पहले देखा, मेरा तो प्रिय विषय है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को कैसे लाया जाये। तो आते ही जब नोट मंगवाया और इस पर चर्चा की तो आर्थिक बोझ कोई एक राष्ट्र उठाने को तैयार हो उसकी भाषा संयुक्त राष्ट्र संघ वाले ले लें, यह प्रक्रिया नहीं है। अगर यह प्रक्रिया होती तो यह कब का हो चुका होता। वर्ष 2003 में जब अटलजी की सरकार थी तभी हो चुका होता, और हमारे आने के बाद भी हो चुका होता। लेकिन 129 वोट चाहिये क्योंकि वह खर्च बंटना है। जैसे जापान है, उन्होंने जापानी भाषा के लिए कहा। वे तो कब से पैसा दे सकते थे। वे पैसा दे देते और जापानी भाषा को मान्यता प्राप्त भाषा बनवा देते। वह सम्भव नहीं है। प्रक्रिया यह है कि 129 मत चाहिये क्योंकि इसका बजट उन तमाम देशों में बंटेगा और सबके सामने कितना-कितना आयेगा। हमारे ऊपर तो बहुत ही कम आयेगा। तो अब हम इसमें लगे हैं। भारत का विश्व में प्रभाव जिस तरह से बढ़ रहा है, अभी अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस में 177 मत हमने प्राप्त किये, हमारा हौसला बहुत बढ़ा। अब हम सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए कोशिश कर रहे हैं। हमें लगता है जिस दिन भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जायेगा, यह काम हमारे लिए और भी आसान हो जायेगा। तो हम वे मत इकट्ठा करने में लगे हैं कि 129 मत हम प्राप्त कर सकें इस प्रस्ताव के लिए। आर्थिक बोझ उसमें बिल्कुल कोई कारण नहीं है, और जितना भी आर्थिक बोझ पड़े, इतने बड़े बजट का राज्य उसको दे सकता है, उसमें कोई दिक्कत नहीं है। तो देश आर्थिक बोझ सहने के लिए तैयार है लेकिन वे 129 मत इकट्ठा करने में हम लगे हैं और हमें लग रहा है कि जिस तरह से भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है, हम बहुत जल्दी उस स्थिति में पहुँच जायेंगे जब हम अपनी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनवा पायेंगे।
प्रश्न (आशीष, एबीपी न्यूज): मैडम, आपने कहा कि हिन्दी भाषी जितने राज्य हैं, उनके चीफ मिनिस्टर्स को आपने इनवाइट किया है। बहुत हाई डेसीबिल वर्बल ड्यूल हम देख रहे हैं बिहार चीफ मिनिस्टर के साथ। क्या उनको भी आपने बतौर विदेश मंत्री इनवाइट किया है? वह भी हिन्दी बहुत अच्छी बोलते हैं। क्या आप चाहेंगी कि वह राजनीति छोड़कर इसमें शामिल हों?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : मैनें आज ही सुबह उनसे बात की है, व्यक्तिगत तौर पर बात की है कि नीतीश जी आप आइये। पर उन्होंने कहा कि तब तक आचार संहिता लग जायेगी। तो मैनें कहा कि आचार संहिता लग जायेगी तो केवल अपना विमान ही तो आप नहीं ला पायेंगे। आप कामर्शियल फ्लाइट से आइये। उन्होंने कहा, मैं देखता हूँ, नहीं तो मैं अपने शिक्षा मंत्री को अवश्य भेजूँगा। हिन्दी में कहीं राजनीति नहीं है। मैं सभी मुख्यमंत्रियों से बात कर रही हूँ। आज ही सुबह मैनें नीतीश जी से बात की है।
प्रश्न : मैडम, क्या मीडिया के लोगों के लिए भी यात्रा व्यय या आवास व्यवस्था की गई है?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : 100 लोगों के लिए की गई है। जो यहां से पंजीकृत हुए हैं, उनके लिए की गई है। जो मध्य प्रदेश या भोपाल के हैं उनके लिए नहीं की गई है क्योंकि वे या तो भोपाल में रुक जायेंगे या मध्य प्रदेश वाले अपने संगी-साथियों के यहॉं रुक जायेंगे। परन्तु जो यहॉं से जा रहे हैं, उनके लिए व्यवस्था की गई है।
प्रश्न : सुषमाजी, प्रश्न यह है कि यह संयोग या दुर्भाग्य कहें कि 1975 से जब हमने विश्व हिन्दी सम्मेलन करना शुरू किया, उसके बाद से अब तक विश्व की बात तो हम रहने दें, भारत में ही हिन्दी की दुर्दशा हो चुकी है। हिन्दी को जब तक हम रोजी-रोटी से नहीं जोड़ेंगे, तब तक हम ये औपचारिकतायें करते रहें और हिन्दी दूसरी तरफ गर्त में जाती रहेगी। तो विश्व हिन्दी सम्मेलन करें, लेकिन उससे पहले हम भारत के सम्मेलन को ही करके देख लें कि उसमें हिन्दी की हालत क्या है। कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमें हिन्दी की शब्दावली नहीं है। चाहे प्रशासन हो, चाहे विज्ञान हो, चाहे अर्थशास्त्र हो, कोई भी विषय हो दुनिया का, हिन्दी पूरी तरह से सक्षम है और हो सकती है लेकिन आपके प्रशासनिक स्तर पर शुरू से लेकर आज तक लगातार हिन्दी को जिस प्रकार दोहू बनाकर इसको एक ऐसी ओढ़ी हुई भाषा की शक्ल में रखा जाता है, उससे लगातार हिन्दी की अवमानना ही होती जा रही है और हिन्दी लोगों के व्यवहार से दूर होती जा रही है। यह प्राइमरी का जो आपने विषय रखा है और पत्रकारिता का रखा है, यह निश्चित रूप से बहुत अच्छा कदम है, हमें यहीं से शुरुआत करनी पड़ेगी। पहले लोग अखबार पढ़ते थे अपनी भाषा सुधारने के लिए, अब अखबार लोगों की भाषा खराब कर रहे हैं, स्थिति यह आ गई है। पता नहीं मैं प्रश्न कर पाया हूँ या नहीं कर पाया हूँ, लेकिन यह मेरी चिन्ता है।
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : आप प्रश्न चाहे न कर पाये हों, लेकिन आपने अपनी जो चिन्ता व्यक्त की है, यह विश्व हिन्दी सम्मेलन उसी चिन्ता के समाधान की शुरुआत कर रहा है। मैनें प्रारम्भ में कहा कि नौ के नौ विश्व हिन्दी सम्मेलन केवल साहित्य के इर्द-गिर्द रह गये जबकि चिन्ता भाषा की होनी चाहिये थी। भाषा की चिन्ता किसी ने नहीं की। जो उपविषय हमने रखे हैं, उसमें ‘हिन्दी के साथ रोजगारमूलक सम्भावनायें’ उपविषय भी है। जितना मीडिया का प्रसार अब हो रहा है, आप देखिये कि हिन्दी वालों को रोजगार मिल रहा है क्योंकि लोग मांग रहे हैं। उनको हिन्दी में मीडिया चाहिये। लेकिन वहॉं अगर संचार माध्यम में हिन्दी की दुर्गति हो जाये, व्याकरण हिन्दी का रह गया और शब्द अंग्रेजी के आ गये, इसीलिए इस तरह के विषय रखे हैं। आपने कहा विज्ञान में हिन्दी सक्षम है, तभी हमने ‘विज्ञान में हिन्दी’ रखा, ‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हिन्दी’ रखा। मैनें प्रारम्भ में पृष्ठभूमि बताते हुए यह कहा कि कुछ अलग यह विश्व हिन्दी सम्मेलन कर रहा है, वह यही कर रहा है। तो आपकी चिन्ताओं के समाधान की शुरुआत इस विश्व हिन्दी सम्मेलन से हो रही है, इसलिए आप थोड़े चिन्तामुक्त हो जाइये।
प्रश्न (मधुरेन्द्र देसाई, न्यूज नेशन): मैडम, मेरा सवाल यह है कि आपकी सरकार आने के बाद तमाम जो कामकाज हैं, उसमें हिन्दी को लाया गया और हिन्दी को प्राथमिकता दी गई। लेकिन देखा यह जा रहा है कि ज्यादातर वेबसाइट से लेकर तमाम जो संवाद हैं उसमें अंग्रेजी से हिन्दी में ट्रान्सलेट नहीं किया जाता है बल्कि ट्रान्सलिटरेट किया जाता है जिसके चलते हिन्दी का जो मूल शब्द है और मूल भाव है वह गौण हो जाता है। तो किस तरह से आपको लगता है कि दरअसल हिन्दी का जो मूल स्वरूप है वह सरकार के कामकाज में बरकरार रहे और यह ट्रान्सलेशन और ट्रान्सलिटरेशन से निकलकर उसके मूल भाव को सम्प्रेषित किया जाये। दूसरा सवाल थोड़ा अलग से जुड़ा है कि भारत-पाकिस्तान की बीच जो फायरिंग चल रही है, तो वर्तमान स्थिति है, अगर उस पर आप कुछ बोलना चाहें?
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : पहली बात, आपका दूसरा सवाल तो मैं नहीं लूँगी क्योंकि इस समय हम लोग यह जो प्रेस वार्ता कर रहे हैं, वह केवल दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन पर कर रहे हैं। इसलिए कोई भी अलग प्रश्न मैं नहीं लूँगी। जो पहला आपका सवाल है, उसकी शुरुआत हो चुकी है। अगर आप दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन की वेबसाइट देखें तो वहॉं कहीं ट्रान्सलिटरेशन नहीं है, अनुवाद है, और अनुवाद भी नहीं है, उसमें मौलिकता है। हम कोई भी वेबसाइट का लेखन अंग्रेजी में करके हिन्दी में अनुवाद नहीं कर रहे हैं। हम मौलिक हिन्दी में लिख रहे हैं, उसी को उसमें डाल रहे हैं। ट्रान्सलिटरेशन से हिन्दी निकले, या अनुवाद हो या मौलिकता हो। हम तो अनुवाद से भी आगे मौलिकता पर जा रहे हैं कि लेखन भी मौलिक हिन्दी में हो। जो बाकी अंग्रेजी में किताबें हैं उनका अनुवाद हो। तो ट्रान्सलिटरेशन से बहुत दूर हमारी वेबसाइट्स जा रही हैं। आपकी चिन्ता को हमने पहले ही ग्रहण कर लिया है।
प्रश्न (विनीता, पायनियर): मैडम, आपने कहा कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट वहॉं पर स्टॉल लगायेंगे। मैं यह जानना चाहती हूँ कि जब हिन्दी साहित्य को आप गूगल या किसी भी इन्टरनेट पर खोजें तो बहुत कम सामग्री मिलती है और अच्छा लिटरेचर तो बिल्कुल नहीं मिलता। तो क्या आपकी इनसे कुछ बातचीत हुई है कि कुछ इन्टरनेट पर लिटरेचर हमें मिले, खासकर जो प्रॉमिनेन्ट लिटरेचर रहा है।
विदेश एवं प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री : ऐसा है, ये लोग जो वहॉं आ रहे हैं, उसका दोतरफा फायदा है। एक तो जब मैनें बहुत-सी चीजें देखीं, हम लोगों को जानकारी नहीं है कि क्या कर रहे हैं। बहुत कुछ हुआ है जो हमें मालूम नहीं है, जो वे दिखायेंगे। लेकिन बहुत कुछ की अपेक्षा है जो हम उन्हें बतायेंगे कि आप यह करें। इसीलिए मैं आप लोगों से चाहूँगी कि कम से कम इस प्रदर्शनी में आप जरूर जाइये और देखिये। इतनी चीजें हुई हैं जो हमें मालूम नहीं थी