हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।
 

हैलो सूरज!

 (विविध) 
 
रचनाकार:

 डॉ सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

हो न हो चाचा मामा से बड़े गुस्सैले होते हैं, नहीं तो चंदा को मामा और सूरज को चाचा क्यों कहते। कभी-कभी तो उसका गुस्सा देख दादा भी कह उठते हैं। ब्रह्मांड में कई आकाशगंगा है। उनमें से एक आकाशगंगा का एक छोटा सा भाग है हमारा सौरमंडल और सौरमंडल के प्रधान हैं हमारे सूरज चाचा। सूरज चाचा एक ही स्थान पर टिके हैं। वे किसी के आगे-पीछे चिरौरी करने नहीं घूमते। बल्कि दुनिया के लोग उन्हें गर्मी की सेटिंग करने की सलाह दे डालते हैं। हाँ यह अलग बात है कि वे किसी की नहीं सुनते। उनमें 72% पेड़ों को काटने का हाइड्रोजन वाला गुस्सा, 26% बचे-खुचे पेड़ों को पानी न डालने वाला हिलियम गुस्सा, 2% पर्यावरण के नाम पर नौटंकी करने और मुँह काला करवाने वाला कार्बनी गुस्सा, और कभी-कभी किसी के पुण्य पर ऑक्सीजन बनकर प्रेम लुटाने का काम करते हैं। सूरज चाचा का रंग अभी भी सफ़ेद है, इसलिए कि वे किसी खादी की दुकान से कपड़ा नहीं लेते। 

सूरज चाचा पृथ्वी से 150 मिलियन किलोमीटर दूरी पर अपने गर्म विला में रहते हैं। दूरी बनाए रखने का एक कारण यह भी है कि कहीं कोई नेता उनकी जमीन न हड़प ले। आजकल इनकी किरणें आवश्यकतानुसार धरती पर नहीं पड़ती। हो न हो सूरज चाचा किसी अर्थशास्त्री से ब्लैक मार्केटिंग का प्रशिक्षण ले रहे हैं। ऐसा करने से उनका डिमांड हमेशा बना रहता है। गर्मी के दिनों में तो वातानुकूलित यंत्र बेचने वाली कंपनियों से सांठ-गांठ बनाए रखते हैं। सुना है वे उन्हें कमीशन भी अच्छा देते हैं।

सूरज चाचा के प्रकाश में अन्य तारे चमकते है। गर्दिश वाले तारे पैसों की चमक से चमकते हैं। चाचा जी आग का गोला हैं। धरती के लोग उन्हीं की आग से सोलर-सोलर खेलते हैं और उनके सामने डरने की नौटंकी करते हैं। वे इनसानों की तरह अंदर-बाहर से अलग नहीं हैं। वे जैसा दिखते हैं, वैसा होते हैं। वैसा करते हैं। गर्मी होना, गर्म करना, गर्म फेंकना इनकी फितरत है। इसमें किसी प्रकार का समझौता नहीं करते। सूरज चाचा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 28 गुना ज्यादा है। बावजूद इसके वे नेताओं की खरीद-फरोख्त वाले गुरुत्वाकर्षण शक्ति में अभी भी बच्चे हैं। धरती पर सारे जीवन का आधार स्तंभ सूरज चाचा ही हैं। बिना सूरज चाचा के पृथ्वी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसीलिए कोई इन्हें अपनी पार्टी का निशान बना रहा है, तो कोई गटर का पाइप। सब अपनी-अपनी सोच और पहुँच से उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।

-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
 ई-मेल : drskm786@gmail.com

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