हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।
 

डॉ. संध्या सिंह की चार कविताएं

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 डॉ संध्या सिंह | सिंगापुर

नयापन ज़िंदगी है
बासी का अंत है
सुबह नई है
तो यह बासीपन क्यों
यह उदासी क्यों?

सवाल हैं
तो उत्तर भी होंगे ही
मिलें न मिलें

आइए ढूँढते हैं उन्हें
नये तौर से
नये तरीके से...

2)

हर शनिवार खड़ी होती हूँ
हिंदी स्कूल के सामने
देखती हूँ
कुछ नन्हे सपनों को हँसते
और
कुछ को रोते।

किसी माँ की
सिखावन सुनती हूँ,
“ध्यान से पढ़ना"
मनुहार भी कि--
“आना तो बाहर खाने चलेंगे।"
किसी-किसी की डाँट भी
कानों तक पहुँचती है,
“नहीं पढ़ा तो समझ लेना!"

छह-सात वर्ष की भोली आयु में
लोभ की शिक्षा क्यों?
डर का परिचय क्यों?
आख़िर क्यों!

क्या भाषा सीखना
बोझ है?

3)

खोज में उलझे हैं
कई विचार
एक गुत्थी सुलझाने में
उलझ जाती है हजार

4)

यह घेरा
वह घेरा
छोड़ दिया
आया नया
सबेरा
जोड़ लिया वैश्विक परिवार
बना लिया
वसुधा को कुटुंब।

-डॉ. संध्या सिंह
 सिंगापुर

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