हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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ग़ज़ल  - शुकदेव पटनायक 'सदा'

प्यासी धरा और खेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
अब सत्य के संकेत पर मैं गीत लिक्खूंगा
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कलम, आज उनकी जय बोल | कविता - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
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सबको लड़ने ही पड़े : दोहे  - ज़हीर कुरैशी

बहुत बुरों के बीच से, करना पड़ा चुनाव ।
अच्छे लोगों का हुआ, इतना अधिक अभाव ।।
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नीति के दोहे - कबीर, तुलसी व रहीम

कबीर के नीति दोहे

साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय ॥
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अर्जुन उवाच - कन्हैयालाल नंदन (Kanhaiya Lal Nandan )

तुमने कहा मारो
और मैं
मारने लगा
तुम
चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं
हारने लगा !
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नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच

कार लेकर क्या करूँगा?
तंग उनकी है गली वह, साइकिल भी जा न पाती ।
फिर भला मै कार को बेकार लेकर क्या करूँगा?

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राजनीतिक गठबंधन - प्रवीण शुक्ल

दोनों ने सोचा कि साथ चलने में फ़ायदा है
इसलिए ये भी, वे भी साथ दौड़ रहे हैं।
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ख़ून बन के रगों में... | ग़ज़ल - आराधना झा श्रीवास्तव

ख़ून बन के रगों में है बहता वतन
अपनी हर साँस में है ये अपना वतन
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नहीं होता मित्र राजधानी में - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

मित्र
होता है हरदम
लोटे में पानी – चूल्हे में आग
जलन में झमाझम – उदासी में राग
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यमराज का इस्तीफा - अमित कुमार सिंह

एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इन्द्र देव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।

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हुल्लड़ के दोहे  - हुल्लड़ मुरादाबादी

बुरे वक्त का इसलिए, हरगिज बुरा न मान। 
यही तो करवा गया, अपनों की पहचान॥ 
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा

मैंने अपनी पत्नी से कहा --
"संत महात्मा कह गए हैं--
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी!"
[इन सभी को पीटना चाहिए!]
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तू है बादल - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

तू है बादल
तो, बरसा जल
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कृपया अर्थ दीजिये हमें - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

शब्द हैं हम
केवल शब्द
कृपया अर्थ दीजिये हमें।
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अहम की ओढ़ कर चादर - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

अहम की ओढ़ कर चादर
फिरा करते हैं हम अक्सर
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देवता तो हूँ नहीं - रमानाथ अवस्थी

देवता तो हूँ नहीं स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ क्योंकि मैं तो प्यार करता हूँ
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समय का पहिया - गोरख पांडेय

समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले!
फ़ौलादी घोड़ों की गति से आग बर्फ़ में जले रे साथी!
समय का पहिया चले!
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गाँधी - सागर निज़ामी

कैसा सन्त हमारा गाँधी! कैसा सन्त हमारा!!
दुनिया थी गो उसकी बैरी, दुशमन था जग सारा।
आखिर में जब देखा साधो वो जीता जग हारा।
कैसा सन्त हमारा गाँधी! कैसा सन्त हमारा!!
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दुनिया - दीवाना रायकोटी

यह दुनिया अजब हर शै फ़ानी देखी
यहाँ हर रोज़ इक नयी कहानी देखी
जो आ के ना जाये वो बुढ़ापा देखा
जो जा के ना आये वो जवानी देखी
...

दुआ - मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आज़ाद'

आलम है अपने बिस्तरे - राहत पै ख़ाब में,
'आज़ाद' सर झुकाए ख़ुदा की जनाब में।
फैलाए हाथ सूरते- उम्मीदवार है,
औ' करता सच्चे दिल से दुआ बार बार है॥
...

विपर्यय - रंजू मिश्रा

चारदीवारी और सड़क के बीच
बच गयी है थोड़ी सी ज़मीन
मिट्टी की एक पतली सी पट्टी
पट्टी से सटे दीवार पर
बड़े यत्न से रखे हुए हैं कुछ गमले
जिनमें लगे हुए हैं
लोक-लुभावन, गुण-गंध-रसहीन
कुछ ब्रांडेड फूल और
विदेशी नस्ल के लम्बे-लम्बे पत्ते
जिसे नाजों से सींचते रहते हैं
उस घर के मालिक ।
पाइप से छिटके हुए पानी से
अनायास ही भीगती रहती है
दीवार के किनारे की वह मिट्टी
उसी छिटके हुए छींटों के भरोसे
...

रत्न-करण - श्रीनाथ सिंह

जलाती जिसे क्रोध की आग,
धर्म का उसको बन्धन व्यर्थ
न सीखा जिसने करना त्याग,
प्रेम का वह क्या जाने अर्थ
रहा जिस पर आलस्य सवार,
मनुज वह जीवित मृतक समान।
लोभ ही है जिसका व्यापार,
बराबर उसे मान अपमान॥
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कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल - ममता मिश्रा

कहाँ तक बचाऊँ ये हिम्मत कहो तुम
रही ना किसी में वो ताक़त कहो तुम
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बयानों से वो बरगलाने लगे हैं - डॉ राजीव सिंह

बयानों से वो बरगलाने लगे हैं
चुनावों के दिन पास आने लगे हैं
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नित नई नाराज़गी... | ग़ज़ल - प्राण शर्मा

नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सा-कशी अच्छी नहीं
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