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कहानियां |
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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कितनी जमीन? - लियो टोल्स्टोय | Leo Tolstoy |
दो बहने थी। बड़ी का कस्बे में एक सौदागर से विवाह हुआ था। छोटी देहात में किसान के घर ब्याह थी। |
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पत्रकार - विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक |
दोपहर का समय था। 'लाउड स्पीकर' नामक अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में काफी चहल-पहल थी। यह एक प्रमुख तथा लोकप्रिय पत्र था। |
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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते... - आराधना झा श्रीवास्तव |
मेज़ पर जमी हुई धूल को तर्जनी ऊँगली से हटाते हुए और उसे शेष उंगलियों से रगड़कर झाड़ते हुए शर्मा जी झुंझलाए और फिर ऊँचे स्वर में कामिनी को पुकारते हुए कहा, “कामिनी..कामिनी...कहाँ हो...देखो तो मेज़ पर धूल की कितनी मोटी परत है। आज इस कमरे की सफ़ाई करना भूल गई क्या? काम ठीक से करे न करे, मगर महारानी को पगार तो समय पर ही चाहिए।” |
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जो कभी डाकू था - भानुप्रताप शुक्ल |
उद्यान में जाते ही उनके पैर थम से गए। देखा, तो सामने पेड़ की शाखा पर पालने में पड़ा एक बालक किलकारियां मार रहा था। ऋषि आनन्दित हो उठे। उनके उन्मुक्त हास्य में हँसी नहीं, आत्म-विश्वास, चुनौती और अगाध शक्ति का स्फुरण था। क्षण भर सोचा और पहुंच गए उसके माँ-बाप के पास। |
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चीनी बाबा - विद्या विंदु सिंह |
चीनी बाबा हम छोटे बच्चों की राह हनुमानजी की तरह हाथ-पैर फैलाकर रोक लेते थे। हम लोग जिधर से कन्नी काटकर निकलना चाहें, वे हमसे पहले उधर पहुँच जाते थे। अगर पतली गली होती तो हम फँस जाते थे और बाबा पकड़कर प्यार की एक-एक चपत लगा देते थे। पर अगर अहाते में बाबा मिलते तो हम लोग बाबा को हरा देते थे। और कोई उनके बाएँ से तो कोई दाएँ से और कोई पाँवों के बीच से निकल जाता था। पाँवों के बीच से निकलने वाला बच्चा प्रायः बाबा की मोटी गुदगुदी पिंडलियों में दबकर पकड़ा जाता था, और बच्चों को अगल-बगल से भाग जाने में छूट मिल जाती थी। हम लोग बचकर भागते थे गाते हुए-- 'बाबा! चीनी खाएँगे।' बाबा हमें दौड़ाते और हम उतनी ही तेजी से भागते। चीनी बाबा के साथ का यह खेल आज भी स्मृति में हूबहू ताजा है। |
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