जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

Articles Under this Category

भगवान सबका एक है | लोक-कथा - नीरा सक्सेना

पेरिस में इब्राहीम नाम का एक आदमी अपनी बीवी और बच्चों के साथ एक मोंपड़ी में रहता था। वह एक साधारण गृहस्थ था, पर था बड़ा धर्मात्मा और परोपकारी । उसका घर शहर से दस मील दूर था। उसकी झोपड़ी के पास से एक पतलीसी सड़क जाती थी। एक गाँव से दूसरे गाँव को यात्री इसी सड़क से होकर आते-जाते थे।
...

यह मेरी मातृभूमि है - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand

आज पूरे 60 वर्ष के बाद मुझे मातृभूमि-प्यारी मातृभूमि के दर्शन प्राप्त हुए हैं। जिस समय मैं अपने प्यारे देश से विदा हुआ था और भाग्य मुझे पश्चिम की ओर ले चला था उस समय मैं पूर्ण युवा था। मेरी नसों में नवीन रक्त संचारित हो रहा था। हृदय उमंगों और बड़ी-बड़ी आशाओं से भरा हुआ था। मुझे अपने प्यारे भारतवर्ष से किसी अत्याचारी के अत्याचार या न्याय के बलवान हाथों ने नहीं जुदा किया था। अत्याचारी के अत्याचार और कानून की कठोरताएँ मुझसे जो चाहे सो करा सकती हैं मगर मेरी प्यारी मातृभूमि मुझसे नहीं छुड़ा सकतीं। वे मेरी उच्च अभिलाषाएँ और बड़े-बड़े ऊँचे विचार ही थे जिन्होंने मुझे देश-निकाला दिया था।
...

प्रवासी की माँ - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

(1)

"जिंदगी की राहों में रंज-ओ-ग़म के मेले है
भीड़ है क़यामत की और हम अकेले है----"

रेडियो पर गीत बज रहा है और बूढ़ी हो चली भागवन्ती जैसे किसी सोच में डूबी हुई है। तीन-तीन बेटों वाली इस ‘माँ' को भला कौनसी चिंता सता रही है?

भागवन्ती के तीन बेटे हैं। बड़का, मझला और छुटका । बड़का तो शादी होते ही जैसे ससुरालवालों का हो चुका था। उसे माँ की सुध ही कहाँ थी! मझला कई वर्षों से विदेश में बस गया है। छुटका घर में है लेकिन उसकी 'लिवइन रिलेशनशिप' चल रही है। वह होते हुए भी जैसे नहीं है, उसके लिए।
भागवन्ती जब भी उदास होती छुटका अगर देख लेता तो पूछता, "क्या बात है, माँ?"

"कुछ नहीं! बस यूंही मझले की याद आ गई थी।" अपने अकेलेपन की बात भागवन्ती छुपा जाती।

"थोड़े दिन मझले भैया के पास बाहर घूम आओ।"

"इत्ती दूर ! अकेले? ना भैया, ना !"

"कहो तो इस बार भइया से बोल दूँ?"

भागवन्ती मुसकुरा दी, मुँह से कुछ न बोली। न ‘हाँ' कहा, न ‘ना'।
...

तमाशा खत्म - कैलाश बुधवार

यह एक बड़ी पुरानी कहानी है जिसे आप बार-बार सुनते हैं, अक्सर गुनते हैं लेकिन फिर हमेशा भूल जाते हैं। कहानी रोज ही दोहराई जाती है-- पात्र बदल जाएँ, घटनाओं में हेर-फेर आ जाए पर कहानी वहीं की वहीं रहती है, नई और ताजी; जो मैं सुनाने जा रहा हूँ, यह उसी कहानी की एक शक्ल है।
...

उज्ज्वल भविष्य - महेन्द्र चन्द्र विनोद शर्मा | फीजी व न्यूज़ीलैंड

धनई और कन्हई लंगोटिया यार थे और पड़ोसी भी। ऐसा लगता था कि उनके दो शरीर थे परन्तु आत्मा एक ही थी। वे प्रण बांध कर हर दिन कम से कम चार घण्टे एक साथ बिताते थे। आज धनई के घर, कल कन्हई के। कभी-कभी दोनों एक ही थाली से भोजन भी करते थे। एकता दर्शाने के लिए वे अकसर एक ही रंग और एक ही ढंग के कपड़े भी धारण करते थे। एक साथ सूखी तम्बाकू, चना और सुपारी मिलाकर खाते और एक ही साथ यंगोना पीते। जब जोश में आते तब शराब की बोतल भी खाली कर देते थे। उन्हें विवाद करते कभी किसी ने नहीं सुना, झगड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता था।
...

संस्कृति - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai

भूखा आदमी सड़क के किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुँचा और उसे दे ही रहा था कि एक दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था।
...

फंदा - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा]
...

गिरगिट - एन्तॉन चेखव

पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव अपना नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल दबाए बाजार के चौक से गुज़र रहा है। लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे लपका हुआ चला आ रहा है। टोकरी ऊपर तक बेरों से भरी हुई थी जिसे उन्होंने तुरंत जब्त कर लिया। चारों ओर ख़ामोशी...चौक में एक भी आदमी नहीं...दुकानों व सरायों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं। यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता है।
...

पाठ | लघुकथा - अभिमन्यु अनत

इंग्लैण्ड का एक भव्य शहर। प्रतिष्ठित अंग्रेज परिवार का हेनरी। उम्र अगले क्रिसमस में आठ वर्ष। स्कूल से लौटते ही वह अपनी माँ के पास पहुँचकर उससे बोला, "मम्मी कल मैंने एक दोस्त को अपने यहाँ खाने पर बुलाया है।"
...

परिणाम | लघु-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी'

उस शानदार महल की दीवारों पर लगे सफेद चमकीले पत्थरों का सौंदर्य देखते ही बनता था। दर्शक उन पत्थरों की सराहना किए बिना न रह सकते थे। सुंदर चमकीले पत्थर लोगों से अपनी प्रशंसा सुन फूले न समाते थे।
...

मेरी बड़ाई | लघुकथा  - सुदर्शन | Sudershan

जिस दिन मैंने मोटरकार ख़रीदी, और उसमें बैठकर बाज़ार से गुज़रा, उस दिन मुझे ख्याल आया, "यह पैदल चलने वाले लोग बेहद छोटे हैं, और मैं बहुत बड़ा हूँ।"
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश