जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
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नया सबेरा - बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष

नए साल का, नया सबेरा,
जब, अम्बर से धरती पर उतरे,
तब, शान्ति, प्रेम की पंखुरियाँ,
धरती के कण-कण पर बिखरें।
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अन्वेषण - रामनरेश त्रिपाठी

मैं ढूंढता तुझे था, जब कुंज और वन में।
तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥
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जीवन का अधिकार - सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant

जो है समर्थ, जो शक्तिमान,
जीवन का है अधिकार उसे।
उसकी लाठी का बैल विश्‍व,
पूजता सभ्‍य-संसार उसे!
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पहाड़े - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

आपके और मेरे
पहाड़े भिन्न हैं।
आपके लिए--
दो दूनी
चार।
...

सहेजे हैं शब्द  - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड

शौकिया जैसे सहेजते हैं लोग
रंगीन, सुंदर, मृत तितलियाँ
सहेजे हैं वैसे ही मैंने
भाव भीगे, प्रेम पगे शब्द।

शब्द, जो कभी
चंपा के फूल की तरह
तुम्हारे होंठों से झरे थे।
शब्द, जो कभी
गुलाब की महक से
तुम्हारे पत्रों में बसे थे।

शब्द
जो बगीचे में उडती तितलियों से
थे कभी प्राणवंत
सहेज रखे हैं मैंने
वे सारे शब्द।

क्या हुआ जो मर गया प्यार
क्या हुआ जो मर गया रिश्ता
क्या हुआ जो असंभव है पुनर्जीवन इनका

मैंने सहेज रखे हैं शब्द
पूरी भव्यता के साथ
जैसे सहेजते हैं
मिस्र के लोग 'ममी'।
...

कुछ अनुभूतियाँ - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड

दूर दूर तक फैला मिला आकाश
चारों ओर ऊँची पहाड़ियाँ
शांत नीरव वातावरण
दूर-दूर तक कोई कोलाहल न था।
शांति केवल शांति।
...

भारतीय | फीज़ी पर कविता - जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी

लम्बे सफर में हम भारतीयों को
कभी पत्थर कभी मिले बबूल
...

चलो चलें उस पार - अमरजीत कौर कंवल | फीजी

चलों चलें उस पार
झर झर करते झरने हों जहाँ
बहती हो नदिया की धारा
जीवन के चंद पल हों अपने
कर लें हम प्रकृति से प्यार
...

कभी गिरमिट की आई गुलामी - जोगिन्द्र सिंह कंवल | फीजी

उस समय फीज़ी में तख्तापलट का समय था। फीज़ी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार जोगिन्द्र सिंह कंवल फीज़ी की राजनैतिक दशा और फीज़ी के भविष्य को लेकर चिंतित थे, तभी तो उनकी कलम बोल उठी:
...

उत्प्रवासी - मोहन राणा

महाद्वीप एक से दूसरे तक ले जाते अपनी भाषा
दुनिया और किसी अज्ञात के बीच एक घर साथ
ले जाते आम और पीपल का गीत
ले जाते कोई ग्रीष्म कोई दोपहर
ले जाते सूटकेस में गठरी एक साथ,
बाँध लेते अजवाइन का पराँठा भी सफर के लिए
लेते जाते अपने पुरचनियों का एक सपना जीते
लंबी रात जिसकी और दिन उनींदा
...

रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया

अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे
...

अवसर नहीं मिला - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra

जो कुछ लिखना चाहा था
वह लिख न कभी मैं पाया
जो कुछ गाना चाहा था
वह गीत न मैं गा पाया। 

मुझको न मिला अवसर ही
अपने पथ पर चलने का
था दीप पड़ा झोली में
अवसर न मिला जलने का।

जो दीप न जल पाता है
वह क्या प्रकाश फैलाये
जिसको न मिला अवसर ही
वह गीत भला क्या गाये।
...

देश की मिट्टी | कविता - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया

बेटी ने
देश की मिट्टी उठाई
एक बोतल में रख
सील लगाई
सूटकेस में रख
साथ अपने लाई
जमी रहें जड़ें
अपनी जगह
विदेश में रहें
देश की तरह
मिट्टी की खुशबू
भर दे खुशहाली
देश से जाएँ
तो क्यों जाएँ ख़ाली
शायद यह बात
उसके मन में आई
देश की मिट्टी
वो साथ अपने लाई।
...

गिनती  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

आपको नहीं लगता कि
गिनती अधूरी है?
'गिनती' में शून्य तो आप
गिनते ही नहीं। 
वैसे 'शून्य' के बिना
'गिनती' गिनती नहीं।
...

फीजी कितना प्यारा है - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

प्रशांत महासागर से घिरा
चमचमाती सफ़ेद रेतों से भरा
फीजी द्वीप हमारा
देखो, कितना प्यारा है!
सर्वत्र छाई हरयाली ही हरयाली
फल-फूलों से भरी डाली-डाली
फसलों से लहराते गन्ने के खेतों में
गुणगुनाती मैना प्यारी है
लोग यहाँ के कितने प्यारे
कभी ‘बुला', कभी ‘राम-राम'
कह स्वागत करते
हिल-मिलकर एक दूजे का
साथ निभाते
हँसते-खेलते समय बिताते
बहुभाषीय और बहुसांस्कृति का
नारा लगाते
सच में यह!
स्वर्ग बड़ा निराला है
जन्म हुआ इस भूमि पर
अन्न यही का खाएं हम
खेले इसकी गोद में हम
अब वतन यही हमारा है
फीजी द्वीप हमारा
देखो, कितना प्यारा है।
...

हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हिंदी उनकी राजनीति है 
हिंदी इनका हथियार है
हिंदी कईयों का औज़ार है। 
हिंदी उनके लिए भाषण है
हिंदी इनके लिए जलसा है 
हिंदी कईयों का नारा है। 
जरा गिनो तो 
अनगनित
हिंदीवालों में से
कितनों को हिंदी से प्यार है?
जरा बताओ तो 
यह कैसा अनुराग है?
...

यथार्थ - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया

आँखें बरबस भर आती हैं,
जब मन भूत के गलियारों में विचरता है।
सोच उलझ जाती है रिश्तों के ताने-बाने में,
एक नासूर सा इस दिल में उतरता है।
...

अपने अलावा भी | कविता - मोहन राणा

ना लिखे भी ना सोचे भी
ना चीख पुकार के भी
नानाविध उपकरण और विधियाँ भी बेकार
उपाय यही इस मन से मोक्ष का
...

अकबर और तुलसीदास - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi

अकबर और तुलसीदास,
दोनों ही प्रकट हुए एक समय,
एक देश,  कहता है इतिहास;
...

वो था सुभाष, वो था सुभाष - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

वो भी तो ख़ुश रह सकता था
महलों और चौबारों में।
उसको लेकिन क्या लेना था,
तख्तों-ताज-मीनारों से!
         वो था सुभाष, वो था सुभाष!
...

अकारण  - राजीव वाधवा

गगन में टूटता तारा
कि जैसे हो कोई बेघर
चमन में झूलती डाली
मचलता जैसे हो सरवर

ज़माना इक जहां तेरा
इरादे टूटते बनते
रहेगा इक निशां मेरा
तमन्ना इसकी सब करते
...

कवि और कविता  - मौसम कुमरावत

ज़रूरी नहीं,
पुस्तक थामे
मंच पर इतराने वाला,
हो एक श्रेष्ठ कवि।
...

मनुष्य बनाये रखना - विजय कुमार सिंह

हम खड़े होंगे कभी भीड़ में कभी हम अकेले
कभी हम मरुथल में होंगे कभी फूलों से सजे मेले।
...

दिनेश भारद्वाज की दो रचनाएँ  - दिनेश भारद्वाज

एक विचार
...

काग़ज़ फाड़ दिए - दीपक शर्मा

सींचे थे खून पसीनों से,
लिख पढ़ के साल महीनों से
रद्दी के जो ज़द हुए
निरर्थक जिनके शब्द हुe
पुरानी उपाधियां, प्रमाणपत्र
आज झाड़ दिए मैंने
काग़ज़ फाड़ दिए मैंने।
...

बोलो फिर कैसे मुस्काएं - विजय कनौजिया

जब पलकें हों गीली-गीली
फिर मन को कुछ भी न भाए
कितनी भी कोशिश कर लें पर
बोलो फिर कैसे मुस्काएं।
...

मेरे देश की आवाज़  - ज्योति स्वामी "रोशनी"

आज दिल की अपने बात कहने दे
तू मुझे सफेद रहने दे
...

मेरा दिल मोम सा - सुनीता शर्मा

खिड़की दरवाजे लोहे के बना
बोल्ट कर लिए हैं मैंने
कोई कण धूल-सा आंखों में
ना चुभ जाए कहींl
मेरा दिल मोम सा
पिघल न जाए कहींl
बिस्तर पर भी चप्पल
उतारने से कतराती हूँ मैं
कोई फूल कांटा बनकर
ना चुभ जाए कहींl
मेरा दिल मोम सा
पिघल ना जाए कहींl
अंगुलियों में भी सुई लेकर
कपड़े सिलने से घबराती हूँ मैं
कोई याद जख्म बन
ना छिल जाए कहींl
मेरा दिल मोम सा
पिघल ना जाए कहींl
...

लिखना बाकी है - हरिहर झा | ऑस्ट्रेलिया | Harihar Jha

शब्दों के नर्तन से शापित
अंतर्मन शिथिलाया
लिखने को तो बहुत लिखा
पर कुछ लिखना बाकी है
...

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