जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
हास्य काव्य
भारतीय काव्य में रसों की संख्या नौ ही मानी गई है जिनमें से हास्य रस (Hasya Ras) प्रमुख रस है जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं - श्रृंगार रस (रति भाव), हास्य रस (हास), करुण रस (शोक), रौद्र रस (क्रोध), वीर रस (उत्साह), भयानक रस (भय), वीभत्स रस (घृणा, जुगुप्सा), अद्भुत रस (आश्चर्य), शांत रस (निर्वेद)।

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गुरुदक्षिणा  - जैनन प्रसाद | फीजी

सायक बिकते हैं
धनुः विद्या भी बिकती है
पर बिकते नहीं हैं तो केवल
द्रोणचार्य जैसे गुरु।
लेकिन
सौभाग्य से अगर
मिल भी गए
और कृपालु हों वे
अर्जुन ही समझ लें तुम्हें
तो किंकर्तव्यविमूढ़ की भांति
तुम लक्ष्य अनुसंधान कर पाओगे?
भेद पाओगे! क्या?
वह आँख?
अगर इस दुष्कर कार्य में
सफलता मिल भी गई
तो मांग बैठेगा तुमसे !
गुरुदक्षिणा !
जो तुम दे नहीं पाओगे
क्योंकि तुम
एकलव्य नहीं हो।
...

हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !  - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियाँ मिल जाएँगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मरी उमर की डोर गहो तुम !
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !
...

समंदर की उम्र - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar

लहर ने
समंदर से
उसकी उम्र पूछी,
समंदर मुस्करा दिया।
...

भिखारी| हास्य कविता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

एक भिखारी दुखियारा
भूखा, प्यासा
भीख मांगता
फिरता मारा-मारा!
...

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