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आलेख |
प्रतिनिधि निबंधों व समालोचनाओं का संकलन आलेख, लेख और निबंध. |
Articles Under this Category |
प्रेमचंद : घर में - शिवरानी देवी प्रेमचन्द |
प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी द्वारा लिखी, 'प्रेमचंद : घर में' पुस्तक में शिवरानी ने प्रेमचन्द के बचपन का उल्लेख किया है। यहाँ उसी अंश को प्रकाशित किया जा रहा है। |
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धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र - धनपतराय से मुंशी प्रेमचंद तक का सफ़र |
मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम 'धनपत राय' था। |
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प्रेमचंद की लघु -कथा रचनाएं - बलराम अग्रवाल |
कई वर्ष पूर्व डॉ. कमल किशोर गोयनका ने एक बातचीत के दौरान मुझसे कहा था कि प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य खोजते हुए उन्हें उनकी 25-30 लघुकथाएं भी प्राप्त हुई हैं और वे शीघ्र ही उन्हें पुस्तकाकार प्रकाशित करेंगे । हम, लघुकथा से जुड़े, लोगों के लिए यह बड़ी उत्साहवर्धक सूचना थी । इस बहाने कथा की लघ्वाकारीय प्रस्तुति के बारे में प्रेमचंद की तकनीक को जानने समझने में अवश्य ही मदद मिलती । हालांकि प्रेमचंद को उपन्यास-सम्राट माना जाता है, परन्तु वे कहानी-सम्राट नहीं थे-यह नहीं कहा जा सकता । |
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चन्द्रदेव से मेरी बातें | निबंध - बंग महिला राजेन्द्रबाला घोष |
बंग महिला (राजेन्द्रबाला घोष) का यह निबंध 1904 में सरस्वती में प्रकाशित हुआ था। बाद में कई पत्र-पत्रिकाओं ने इसे 'कहानी' के रूप में प्रस्तुत किया है लेकिन यह एक रोचक निबंध है। |
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प्रेमचंद के पत्र - बनारसीदास चतुर्वेदी |
प्रेमचंद की आकांक्षाओं को प्रकट करते दो पत्र: |
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प्रेमचंद के संस्मरण - भारत-दर्शन संकलन |
एक बार बनारसीदास चतुर्वेदी ने प्रेमचन्द को मज़ाक में पत्र लिखकर शिवरानी (प्रेमचंद की पत्नी) को कलाई घड़ी दिलने की सिफ़ारिश की। चतुर्वेदी ने पत्र में लिखा - |
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प्रेमचंद की विचार यात्रा - शैलेंद्र चौहान |
प्रेमचंद ने सन 1936 में अपने लेख ‘महाजनी सभ्यता' में लिखा है कि ‘मनुष्य समाज दो भागों में बँट गया है । बड़ा हिस्सा तो मरने और खपने वालों का है, और बहुत ही छोटा हिस्सा उन लोगों का था जो अपनी शक्ति और प्रभाव से बड़े समुदाय को बस में किए हुए हैं । इन्हें इस बड़े भाग के साथ किसी तरह की हमदर्दी नहीं, जरा भी रू -रियायत नहीं। उसका अस्तित्व केवल इसलिए है कि अपने मालिकों के लिए पसीना बहाए, खून गिराए और चुपचाप इस दुनिया से विदा हो जाए।' इस उद्धरण से यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद की मूल सामाजिक चिंताएँ क्या थीं । |
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मैं कहानी कैसे लिखता हूँ - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
मेरे किस्से प्राय: किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित होते हैं, उसमें मैं नाटक का रंग भरने की कोशिश करता हूँ मगर घटना-मात्र का वर्णन करने के लिए मैं कहानियाँ नहीं लिखता। मैं उसमें किसी दार्शनिक और भावनात्मक सत्य को प्रकट करना चाहता हूँ। जब तक इस प्रकार का कोई आधार नहीं मिलता, मेरी कलम ही नहीं उठती। आधार मिल जाने पर मैं पात्रों का निर्माण करता हूँ। कई बार इतिहास के अध्ययन से भी प्लाट मिल जाते हैं लेकिन कोई घटना कहानी नहीं होती, जब तक कि वह किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को व्यक्त न करे। |
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प्रेमचंद की सर्वोत्तम 15 रचनाएं - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मुंशी प्रेमचंद को उनके समकालीन पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने 1930 में उनकी प्रिय रचनाओं के बारे में प्रश्न किया, "आपकी सर्वोत्तम पन्द्रह गल्पें कौनसी हैं?" |
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क्या आप जानते हैं? - भारत-दर्शन संकलन |
यहाँ प्रेमचंद के बारे में कुछ जानकारी प्रकाशित कर रहे हैं। हमें आशा है कि पाठकों को भी यह जानकारी लाभप्रद होगी। |
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प्रेमचन्दजी के साथ दो दिन - बनारसीदास चतुर्वेदी |
"आप आ रहे हैं, बड़ी खुशी हुई। अवश्य आइये। आपने न-जाने कितनी बातें करनी हैं। |
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प्रेमचंद गरीब थे, यह सर्वथा तथ्यों के विपरीत है - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
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भारत का स्वाधीनता यज्ञ और हिन्दी काव्य - डॉ शुभिका सिंह |
"हिमालय के ऑंगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार।" |
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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक - प्रदीप कुमार सिंह |
23 जुलाई - लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जयन्ती |
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