देवनागरी ध्वनिशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है। - रविशंकर शुक्ल।
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प्रतिनिधि निबंधों व समालोचनाओं का संकलन आलेख, लेख और निबंध.

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आज हिन्दी बोलो, हिन्दी दिवस है  - सुदर्शन वशिष्ठ

हमारी राजभाषा हिन्दी है। उत्तर भारत में हिन्दी पट्टी है जहां कई राज्यों की राजभाषा हिन्दी है। भारत के संविधान में इन राज्यों को ''क'' श्रेणी में रखा गया है। संविधानिक रूप से हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं, राजभाषा कहा गया है। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को संघ के संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया और संविधान में बाकायदा इस की व्याख्या की गई। राजभाषा के रूप में हिन्दी की विजय मात्र एक मत से ही हुई थी, ऐसा कहा जाता है। 'क' श्रेणी में हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार तथा सभी संघ शासित राज्य आते हैं। इस क्षेत्र को ही हिन्दी पट्टी कहा जाता है।
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स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन संबोधन - भारत-दर्शन संकलन

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...
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महात्मा गांधी -शांति के नायक - नरेन्द्र देव

2 अक्‍टूबर का दिन कृतज्ञ राष्‍ट्र के लिए राष्‍ट्रपिता की शिक्षाओं को स्मरण करने का एक और अवसर उपलब्‍ध कराता है। भारतीय राजनीतिक परिदृश्‍य में मोहन दास कर्मचंद गांधी का आगमन ख़ुशी प्रकट करने के साथ-साथ हज़ारों भारतीयों को आकर्षित करने का पर्याप्‍त कारण उपलब्‍ध कराता है तथा इसके साथ उनके जीवन-दर्शन के बारे में भी ख़ुशी प्रकट करने का प्रमुख कारण है, जो बाद में गाँधी दर्शन के नाम से पुकारा गया। यह और भी आश्‍चर्यजनक बात है कि गाँधी जी के व्‍यक्तित्‍व ने उनके लाखों देशवासियों के दिल में जगह बनाई और बाद के दौर में दुनियाभर में असंख्‍य लोग उनकी विचारधारा की तरफ आकर्षित हुए।

इस बात का विशेष श्रेय गाँधी जी को ही दिया जाता है कि हिंसा और मानव निर्मित घृणा से ग्रस्‍त दुनिया में महात्‍मा गाँधी आज भी सार्वभौमिक सद्भावना और शांति के नायक के रूप में अडिग खड़े हैं और भी दिलचस्‍प बात यह है कि गाँधी जी अपने जीवनकाल के दौरान शांति के अगुवा बनकर उभरे तथा आज भी विवादों को हल करने के लिए अपनी अहिंसा की विचार-धारा से वे मानवता को आश्‍चर्य में डालते हैं। बहुत हद तक यह महज़ एक अनोखी घटना ही नहीं है कि राष्‍ट्र ब्रिटिश आधिपत्‍य के दौर में कंपनी शासन के विरूद्ध अहिंसात्‍मक प्रतिरोध के पथ पर आगे बढ़ा और उसके साथ ही गाँधी जी जैसे नेता के नेतृत्‍व में अहिंसा को एक सैद्धांतिक हथियार के रूप में अपनाया। यह बहुत आश्‍चर्यजनक है कि उनकी विचारधारा की सफलता का जादू आज भी जारी है।

क्‍या कोई इस तथ्‍य से इनकार कर सकता है कि अहिंसा और शांति का संदेश अब भी अंतर्राष्‍ट्रीय या द्विपक्षीय विवादों को हल करने के लिए विश्‍व नेताओं के बीच बेहद परिचित और आकर्षक शब्‍द है ? यह कहने की जरूरत नहीं कि इस बात का मूल्‍यांकन करना कभी संभव नहीं हुआ कि भारत और दुनिया किस हद तक शांति के मसीहा महात्‍मा गाँधी के प्रति आकर्षित है।

हालाँकि यह शांति अलग तरह की शांति है। खुद शांति के नायक के शब्‍दों में- मैं शांति पुरूष हूं, लेकिन मैं किसी चीज की कीमत पर शांति नहीं चाहता। मैं ऐसी शांति चाहता हूं, जो आपको क़ब्र में नहीं तलाशनी पड़े। यह विशुद्ध रूप से एक ऐसा तत्‍व है, जो गाँधी को शांति पुरुष के रूप में उपयुक्‍त दर्जा देता है। यह उल्‍लेखनीय है कि शांति का अग्रदूत होने के बावजूद महात्‍मा गाँधी न सिर्फ किसी ऐसे व्‍यक्ति से अलग-थलग रहे, जो शांति के नाम पर कहीं भी या कुछ भी गलत मंजूर करेगा।

गाँधी जी की शां‍ति की परिभाषा संघर्ष के बग़ैर नहीं थी। दरअसल उन्‍होंने दक्षिण अफ्रीका में गोरों के शासन के विरूद्ध संघर्ष में बुद्धिमानी से उनका नेतृत्‍व किया था। इसके बाद 1915 में भारत वापस आने पर गाँधी जी ने समाज सुधारक के साथ, अस्‍पृश्‍यता और अन्‍य सामाजिक बुराइयों के विरूद्ध दीर्घदर्शक के रूप में अहिंसा का इस्‍तेमाल किया। बाद में उन्‍होंने राजनीतिक परिदृश्‍य तक इसका विस्‍तार किया और दीर्घकाल में अपने प्रेम, शांति और आपसी समायोजन के संदेश को हिंदू मुस्लिम भाई-चारे के लिए इस्‍तेमाल किया।

उनका मशहूर भक्ति गीत रामधुन-ईश्‍वर अल्‍लाह तेरे नाम अब भी हिंदू-मुस्लिम शांति के लिए राष्‍ट्र का श्रेष्‍ठ गीत है। यह हमें इस बहस में ले जाता है कि गाँधी जी के लिए शांति का क्‍या मतलब था। जी हां, कोई कह सकता है कि व्‍यापक तौर पर शांति उनके लिए अपने आप में कोई अंत नहीं था। इसके बजाय यह सिर्फ मानवता का बेहतर कल्‍याण सुनिश्चित करने के लिए एक माध्‍यम थी।

वस्‍तुत: महात्‍मा गाँधी सत्‍य के अग्रदूत थे। दरअसल उन्‍होंने खुद भी कहा था कि सच्‍चाई शांति की तुलना में ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है। इस संदर्भ में यंग इंडिया अखबार में महात्‍मा गाँधी के निम्‍नलिखित शब्‍द उदाहरण के लिए प्रस्‍तुत किये जाते हैं, जो बिल्‍कुल प्रासंगिक हैं। महात्‍मा गाँधी ने लिखा - हालाँकि हम भगवान की शान में जोर-जोर से गाते हैं और पृथ्‍वी पर शांत रहने के लिए कहते हैं, लेकिन आज न तो भगवान के प्रति वह शान और न ही धरती पर शांति दिखाई देती है। महात्‍मा गाँधी ने यह शब्‍द दिसंबर 1931 में लिखे थे। 17 वर्ष बाद जनवरी 1948 में एक क्रूर हथियारे की गोली से उनका स्‍वर्गवास हो गया। यह बहुत दर्दनाक था कि सार्वभौमिक शांति और अंहिसा का संत हिंसा और घृणा का शिकार बना। लेकिन 2010 के आज के दौर में भी महात्‍मा गांधी के 1931 के शब्‍द सत्‍य हैं।

आज दुनिया बहुत से और हर प्रकार के विवादों का सामना कर रही है, इसलिए हम देखते हैं कि सार्वभौमिक भाईचारे और शांति और सहअस्तित्‍व के बारे में गाँधी जी का बल आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है। इसलिए उनकी शिक्षाएं आज भी देशभक्ति के सिद्धांत के साथ-साथ विभिन्‍न वैश्विक विवादों को हल करने या समाप्‍त करने के मार्ग और माध्‍यम सुझाती हैं। दरअसल गाँधी जी की शिक्षाओं का सच्‍चा प्रमाण इस तथ्‍य में निहित है कि सिर्फ अच्‍छाई समाप्‍त होती है, वह बुरे माध्‍यमों को तर्क संगत नहीं ठहराती है। इसलिए आज दुनियाभर में मानव प्रतिष्‍ठा और प्राकृतिक न्‍याय के मूल्‍य को बनाए रखने पर बल दिया जाता है।

यह स्‍पष्‍ट है कि आज की दुनिया में शां‍ति के संकट के सिवाए कुछ भी स्‍थाई नजर नहीं आता है तथा शांति के इस मसीहा को इससे बेहतर श्रद्धांजलि और कुछ नहीं होगी कि शांति और आपसी सहनशीलता के हित में काम किया जाए। यही गाँधीवाद की प्रासंगिकता है।

- नरेन्द्र  देव

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यदि मैं तानाशाह होता ! - बालकृष्ण राव

यदि मैं तानाशाह होता तो विदेशी माध्यम द्वारा शिक्षा तुरंत बंद कर देता, जो अध्यापक इस परिवर्तन के लिए तैयार न होते उन्हें बर्ख़ास्त कर देता, पाठ्य पुस्तकों के तैयार किए जाने का  इंतजार न करता ।' पिछले प्राय: एक पखवारे भर प्रयागनिवासी महात्मा गांधी के इन शब्दों को अपने नगर के अनेक स्थानों पर चिपके पोस्टरों पर लिखे देखते रहे हैं । उत्तर प्रदेश-शासन द्वारा जो 'भाषा विधेयक' विधानमंडल में प्रस्तुत हुआ था उसे ही इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि हम लोगों ने राष्ट्रपिता के इन शब्दों को याद करने-कराने की कोशिश की।
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पांच पर्वों का प्रतीक है दीवाली - भारत-दर्शन संकलन

त्योहार या उत्सव हमारे सुख और हर्षोल्लास के प्रतीक है जो परिस्थिति के अनुसार अपने रंग-रुप और आकार में भिन्न होते हैं। त्योहार मनाने के विधि-विधान भी भिन्न हो सकते है किंतु इनका अभिप्राय आनंद प्राप्ति या किसी विशिष्ट आस्था का संरक्षण होता है। सभी त्योहारों से कोई न कोई पौराणिक कथा अवश्य जुड़ी हुई है और इन कथाओं का संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होता है। यह भी कहा जा सकता है कि पौराणिक कथाएं प्रतीकात्मक होती हैं।
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न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता | FAQ  - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

न्यूज़ीलैंड हिंदी पत्रकारिता - बारम्बार पूछे  जाने वाले प्रश्न | FAQ 
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लालबहादुर शास्त्री - भारत-दर्शन संकलन | Collections

भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश के एक सामान्य निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था। आपका वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। शास्त्री जी के पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक शिक्षक थे व बाद में उन्होंने भारत सरकार के राजस्व विभाग में क्लर्क के पद पर कार्य किया।
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समाज के वास्तविक शिल्पकार होते हैं शिक्षक - डा. जगदीश गांधी

सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्मदिवस 5 सितम्बर के अवसर पर विशेष लेख
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क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयास किया था? - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

क्या महात्मा गांधी ने भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को बचाने का प्रयास किया था? उपरोक्त प्रश्न प्राय: समय-समय पर उठता रहा है। बहुत से लोगों का आक्रोश रहता है कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया।
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गाँधी राष्ट्र-पिता...? - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

कुछ समय से यह मुद्दा बड़ा चर्चा में है, 'गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी?
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हिंदी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है - श्री केशवचन्द्र सेन

यदि एक भाषा के न होने के कारण भारत में एकता नहीं होती है, तो और चारा ही क्या है? तब सारे भारतवर्ष में एक ही भाषा का व्यवहार करना ही एकमात्र उपाय है । अभी कितनी ही भाषाएँ भारत में प्रचलित हैं । उनमें हिन्दी भाषा ही सर्वत्र प्रचलित है । इसी हिन्दी को भारत वर्ष की एक मात्र भाषा स्वीकार कर लिया जाए, तो सहज ही में यह एकता सम्पन्न हो सकती है । किन्तु राज्य की सहायता के बिना यह कभी भी संभव नहीं है । अभी अंग्रेज हमारे राजा हैं, वे इस प्रस्ताव से सहमत होंगे, ऐसा विश्वास नहीं होता । भारतवासियों के बीच फिर फूट नहीं रहेगी वे परस्पर एक हृदय हो जायेंगे, आदि सोच कर शायद अंग्रेजों के मन में भय होगा । उनका खयाल है कि भारतीयों में फूट न होने पर ब्रिटिश साम्राज्य भी स्थिर नहीं रह सकेगा ।
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हिन्दी, भारत की सामान्य भाषा - लोकमान्य तिलक

राष्ट्रभाषा की आवश्यकता अब सर्वत्र समझी जाने लगी है । राष्ट्र के संगठन के लिये आज ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे सर्वत्र समझा जा सके । लोगों में अपने विचारों का अच्छी तरह प्रचार करने के लिये भगवान बुद्ध ने भी एक भाषा को प्रधानता देकर कार्य किया था । हिन्दी भाषा राष्ट्र भाषा बन सकती है । राष्ट्र भाषा सर्वसाधारण के लिये जरूर होनी चाहिए । मनुष्य-हृदय एक दूसरे से विचार-विनिमय करना चाहता है; इसलिये राष्ट्र भाषा की बहुत जरूरत है । विद्यालयों में हिन्दी की पुस्तकों का प्रचार होना चाहिये । इस प्रकार यह कुछ ही वर्षों में राष्ट्र भापा बन सकती है ।
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न्यूज़ीलैंड में हिन्दी पठन-पाठन - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

यूँ तो न्यूज़ीलैंड कुल 40 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश है, फिर भी हिंदी के मानचित्र पर अपनी पहचान रखता है। पंजाब और गुजरात के भारतीय न्यूज़ीलैंड में बहुत पहले से बसे हुए हैं किन्तु 1990 के आसपास बहुत से लोग मुम्बई, देहली, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा इत्यादि राज्यों से आकर यहां बस गए। फिजी से भी बहुत से भारतीय राजनैतिक तख्ता-पलट के दौरान यहां आ बसे। न्यूज़ीलैंड में फिजी भारतीयों की अनेक रामायण मंडलियाँ सक्रिय हैं। यद्यपि फिजी मूल के भारतवंशी मूल रुप से हिंदी न बोल कर हिंदुस्तानी बोलते हैं तथापि यथासंभव अपनी भाषा का ही उपयोग करते हैं। उल्लेखनीय है कि फिजी में गुजराती, मलयाली, तमिल, बांग्ला, पंजाबी और हिंदी भाषी सभी भारतवंशी लोग हिंदी के माध्यम से ही जुड़े हुए हैं।
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न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता - रोहित कुमार 'हैप्पी'

यूँ तो न्यूजीलैंड में अनेक पत्र-पत्रिकाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं। सबसे पहला प्रकाशित पत्र था 'आर्योदय' जिसके संपादक थे श्री जे के नातली, उप संपादक थे श्री पी वी पटेल व प्रकाशक थे श्री रणछोड़ के पटेल। भारतीयों का यह पहला पत्र 1921 में प्रकाशित हुआ था परन्तु यह जल्दी ही बंद हो गया।
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