हमारी नागरी दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है। - राहुल सांकृत्यायन।
कविताएं
देश-भक्ति की कविताएं पढ़ें। अंतरजाल पर हिंदी दोहे, कविता, ग़ज़ल, गीत क्षणिकाएं व अन्य हिंदी काव्य पढ़ें। इस पृष्ठ के अंतर्गत विभिन्न हिंदी कवियों का काव्य - कविता, गीत, दोहे, हिंदी ग़ज़ल, क्षणिकाएं, हाइकू व हास्य-काव्य पढ़ें। हिंदी कवियों का काव्य संकलन आपको भेंट!

Articles Under this Category

साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu'

साजन! होली आई है!
सुख से हँसना
जी भर गाना
मस्ती से मन को बहलाना
पर्व हो गया आज-
साजन ! होली आई है!
हँसाने हमको आई है!

साजन! होली आई है!
इसी बहाने
क्षण भर गा लें
दुखमय जीवन को बहला लें
ले मस्ती की आग-
साजन! होली आई है!
जलाने जग को आई है!

साजन! होली आई है!
रंग उड़ाती
मधु बरसाती
कण-कण में यौवन बिखराती,
ऋतु वसंत का राज-
लेकर होली आई है!
जिलाने हमको आई है!

साजन ! होली आई है!
खूनी और बर्बर
लड़कर-मरकर-
मधकर नर-शोणित का सागर
पा न सका है आज-
सुधा वह हमने पाई है !
साजन! होली आई है!

साजन ! होली आई है !
यौवन की जय !
जीवन की लय!
गूँज रहा है मोहक मधुमय
उड़ते रंग-गुलाल
मस्ती जग में छाई है
साजन! होली आई है!

...

मुक्तिबोध की कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh

मैं बना उन्माद री सखि, तू तरल अवसाद
प्रेम - पारावार पीड़ा, तू सुनहली याद
तैल तू तो दीप मै हूँ, सजग मेरे प्राण।
रजनि में जीवन-चिता औ' प्रात मे निर्वाण
शुष्क तिनका तू बनी तो पास ही मैं धूल
आम्र में यदि कोकिला तो पास ही मैं हूल
फल-सा यदि मैं बनूं तो शूल-सी तू पास
विँधुर जीवन के शयन को तू मधुर आवास
सजल मेरे प्राण है री, सजग मेरे प्राण
तू बनी प्राण! मै तो आलि चिर-म्रियमाण।
...

ऋतु फागुन नियरानी हो - कबीरदास | Kabirdas

ऋतु फागुन नियरानी हो,
कोई पिया से मिलावे ।
सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, 
सोई पिया की मनमानी,
खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,
सतगुरु से लिपटानी ।
इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,
इक इक कुल अरुझानी ।
इक इक नाम बिना बहकानी,
हो रही ऐंचातानी ।।

पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,
रूपहि माहिं समानी ।
जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,
तन- मन सबहि भुलानी।
यों मत जाने यहि रे फाग है,
यह कछु अकथ- कहानी ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
यह गति विरलै जानी ।।

             - कबीर
...

सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas

सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।
...

वसन्त आया - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

सखि, वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।

लता-मुकुल-हार-गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।

आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अञ्चल
पृथ्वी का लहराया।

...

जो पुल बनाएँगें - अज्ञेय | Ajneya

जो पुल बनाएँगें
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे
सेनाएँ हो जाएगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगें राम ,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बंदर कहलाएँगे
...

होली आई - होली आई - हर्ष कुमार

बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी
नहीं जोर कुछ चला था उसका, जली होलिका होली आई

...

होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad

बरसते हो तारों के फूल
छिपे तुम नील पटी में कौन?
उड़ रही है सौरभ की धूल
कोकिला कैसे रहती मीन।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश