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कथा-कहानी |
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
Articles Under this Category |
मालवीय जी - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
महामना मालवीय जी को एक विद्वान ने कहा-- "महाराज! आप मुझे 100 गालियां देकर देख ले, मुझे क्रोध नहीं आएगा।" |
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पाजेब - जैनेन्द्र कुमार | Jainendra |
बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियां आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पांव में पड़े उसी के अनुकूल ही रहती हैं। |
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चायवाला - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
गंगाधरन पहली बार भारत आया था। भारतीय मूल का होने के कारण उसकी भारत में काफी दिलचस्पी थी और वह भारत के बारे में और अधिक जानने के इरादे से ही इस बार छुट्टियों में भारत आ पहुंचा और देहली के किसी पांच सितारा होटल में जा ठहरा था। |
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आखिर क्यों? - डॉ. ज्ञान प्रकाश |
शाम का धुंधलका छाने को था, मैं फिर से वहीं अपने चिरपरिचित स्थान पर आ कर बैठ गया और हर आने जाने वाले को गहरी निगाहों से देखने लगा। |
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जन्मभूमि - देवेन्द्र सत्यार्थी |
गाड़ी हरबंसपुरा के स्टेशन पर खड़ी थी। इसे यहाँ रुके पचास घंटे से ऊपर हो चुके थे। पानी का भाव पाँच रुपये गिलास से एकदम पचास रुपये गिलास तक चढ गया और पचास रुपये हिसाब से पानी खरीदते समय लोगों को बडी नरमी से बात करनी पडती थी । वे डरते थे कि पानी का भाव और न चढ जाएे । कुछ लोग अपने दिल को तसल्ली दे रहे थे कि जो इधर हिन्दुओं पर बीत रही है वही उधर मुसलमानों पर भी बीत रही होगी, उन्हें पानी इससे सस्ते भाव पर नहीं मिल रहा होगा, उन्हें भी नानी याद आ रही होगी। |
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करवा का व्रत - यशपाल | Yashpal |
कन्हैयालाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद हुआ। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिए सप्ताह-भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूछे जो प्रायः ऐसे अवसर पर दूसरों से पूछे जाते हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये गये जो अनुभवी लोग नवविवाहितों को दिया करते हैं। |
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रामलीला - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
इधर एक मुद्दत से रामलीला देखने नहीं गया। बंदरों के भद्दे चेहरे लगाए, आधी टाँगों का पाजामा और काले रंग का ऊँचा कुर्ता पहने आदमियों को दौड़ते, हू-हू करते देखकर अब हँसी आती है, मज़ा नहीं आता। काशी की लीला जगद्विख्यात है। सुना है, लोग दूर-दूर से देखने आते हैं। मैं भी बड़े शौक से गया, पर मुझे तो वहाँ की लीला और किसी वज्र देहात की लीला में कोई अंतर न दिखाई दिया। हाँ, रामनगर की लीला में कुछ साज-सामान अच्छे हैं। राक्षसों और बंदरों के चेहरे पीतल के हैं, गदाएँ भी पीतल की हैं, कदाचित बनवासी भ्राताओं के मुकुट सच्चे काम के हों; लेकिन साज-सामान के सिवा वहाँ भी वही हू-हू के सिवाय कुछ नहीं। फिर भी लाखों आदमियों की भीड़ लगी रहती। |
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डाची | कहानी - उपेन्द्रनाथ अश्क | Upendranath Ashk |
काट* 'पी सिकंदर' के मुसलमान जाट बाक़र को अपने माल की ओर लालच भरी निगाहों से तकते देखकर चौधरी नंदू पेड़ की छाँह में बैठे-बैठे अपनी ऊंची घरघराती आवाज़ में ललकार उठा, "रे-रे अठे के करे है?*" और उसकी छह फुट लंबी सुगठित देह, जो वृक्ष के तने के साथ आराम कर रही थी, तन गई और बटन टूटे होने का कारण, मोटी खादी के कुर्ते से उसका विशाल सीना और उसकी मज़बूत बाहें दिखाई देने लगीं। |
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ओछी मानसिकता - मीरा जैन - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
ढेर सारे माटी के दीयों को देखते ही सावित्री पति पर बरस पड़ी, ‘दीपावली में वैसे ही मुझे घर के काम से फुर्सत नहीं है और ऊपर से ये ढेर सारे दीये उठा लाए। अपनी इस ओछी मानसिकता को त्याग दो कि ज्यादा दीपक जलाने से ज्यादा लक्ष्मी आएगी। अरे, जितना किस्मत में होगा उतना ही मिलेगा। मैं आखिर कब तक खटती फिरूं?' |
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दीप जगमगा उठे - शैल चंद्रा |
बिरजू थका हारा अपनी झोंपड़ी में लौटा । उसका उतरा हुआ मुख देखकर उसकी पत्नी ने पूछा आज भी आपको काम नही मिला? उसने कुछ नहीं कहा। झोंपड़ी में अंधियारा छाया था। |
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दीवाली किसे कहते हैं? - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
"बापू परसों दीवाली है, ना? बापू, दीवाली किसे कहते हैं?" सड़क के किनारे फुटपाथ पर दीये बेच रहे एक कुम्हार के फटेहाल नन्हे से बच्चे ने अपने बाप से सवाल किया। |
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