जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
संस्मरण
संस्मरण - Reminiscence

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आर्शीवाद - देवेन्द्र सत्यार्थी

एक क्षण ऐसा भी आता है, जब अतीत और वर्तमान एकाकार हो जाते हैं, बल्कि इसमें भविष्य की शुभ कामना का भी समावेश हो जाता है।

ऐसा ही एक क्षण था, जब शान्तिनिकेतन में गुरुदेव के हाथों में किसी अज्ञात हिन्दी लेखक द्वारा भेजी हुई पाण्डुलिपि पहुंची, इस निवेदन के साथ कि गुरुदेव इस पर आशीर्वाद के दो शब्द लिख दें।

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