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कहानियां |
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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झलमला - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आंचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी के कमरे की ओर जा रही है। मैंने पूछा, 'क्यों री! यह क्या है ?' वह बोली, 'झलमला।' मैंने फिर पूछा, 'इससे क्या होगा ?' उसने उत्तर दिया, 'नहीं जानते हो बाबू, आज तुम्हारी बड़ी भाभी पंडितजी की बहू की सखी होकर आई हैं। इसीलिए मैं उन्हें झलमला दिखाने जा रही हूँ।' |
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सफेद गुड़ - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना |
दुकान पर सफेद गुड़ रखा था। दुर्लभ था। उसे देखकर बार-बार उसके मुँह से पानी आ जाता था। आते-जाते वह ललचाई नजरों से गुड़ की ओर देखता, फिर मन मसोसकर रह जाता। |
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पत्रकार - विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक |
दोपहर का समय था। 'लाउड स्पीकर' नामक अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र के दफ्तर में काफी चहल-पहल थी। यह एक प्रमुख तथा लोकप्रिय पत्र था। |
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इश्तिहार - शैलजा कौशल |
तलवे से अलग हुआ फटा जूता पहने, पैर घिसता, गले में अपने चाचा की पुरानी टाई लटकाए, घिसी पुरानी कमीज - पैंट पहने आलोक पिछले तीन दिन से एक से दूसरे मार्केटिंग दफ्तरों में चक्कर लगा रहा है। उसे अफसरी तो नहीं करनी है पर वह अपनी बहन सुमति और अपने लिए दवा और खाना जुटाने निकला है। जब से उसे ह्यूमन होर्डिंग यानी इंसानी इश्तिहार के काम के बारे में पता चला है, वह पूरे मन से इस काम की तलाश करने में जुटा है। मालूम चला है कि मेन रोड पर ह्यूमन होर्डिंग बनकर डटे रहने के कुछ सौ रुपए मिलते हैं। पेट भरने के सवाल ने पिछले एक महीने से उसके रातों की नींद उडा ली है। सुमति घर पर पडी बुखार से तप रही है, इसी घबराहट में आलोक की कमीज पसीने से तर हो रही है। कडी गर्मी में वह सुबह से शाम तक कहीं किसी काम की तलाश में एक से दूसरी जगह चक्कर काट रहा है। माता पिता के देहांत के बाद आलोक और उसकी बहन चाचा केदारनाथ के घर पर दिल्ली में ही रहते रहे लेकिन अब उनका काम मंदा चल रहा था। बडे परिवार के बोझ के चलते उन्होंने आलोक और सुमति को अपने घर से अलग कर दिया है जिससे सुमति की जिम्मेदारी और अपना खुद का जीवन आलोक के कंधों पर आ गया है। बडी मुश्किल से लाजपत नगर में एक रैनबसेरे में भाई बहन को पनाह मिली है। पढाई बीच ही में छूट गई। अगर यह दिन न आते तो दोनों अगले साल कॉलेज में दाखिला लेते। आलोक अब तक हमेशा फस्र्ट डिवीयन में पास होता रहा है। अब पढाई छूट जाने का गम उसे अलग निगल रहा है। हर नौजवान की तरह उसने भी अपने भावी जीवन को लेकर सपने देखे थे। उसे चाहत थी कि वह एमबीए में एडमीश्न ले और एक मल्टीनेशनल कंपनी के मार्केटिंग विभाग में बडी पोस्ट पर काम करे और इस तरह वह एक दिन कंपनी की सबसे उंची पोस्ट तक पहुंच जाए। तब वह अपनी बहन सुमति की शादी एक अच्छे परिवार में कर पाएगा। खूब पैसा और नाम कमाएगा। लेकिन पढाई छूट जाने के बाद से उसके सभी इच्छाएं और सपने धुंधला गए थे। आलोक बेहद निराश था। समय तो बस अब रोटी की तलाश का था। अब तो पेट भरने के लिए जो काम मिलेगा वह करना पडेगा। |
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घुसपैठिये - ओमप्रकाश वाल्मीकि | Om Prakash Valmiki |
मेडिकल कॉलेज के छात्र सुभाष सोनकर की खबर से शहर की दिनचर्या पर कोई फर्क नहीं पड़ा था। अखबारों ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था। एक ही साल में यह दूसरी मौत थी मेडिकल कॉलेज में। फाइनल वर्ष की सुजाता की मौत को भी आत्महत्या का केस कहकर रफा-दफा कर दिया गया था। किसी ने भी आत्महत्या के कारणों की पड़ताल करना जरूरी नहीं समझा था। लगता था जैसे इस शहर की संवेदनाओं को लकवा मार गया है। दो-दो हत्याओं के बाद भी यह शहर गूँगा ही बना रहा। |
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