जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

Articles Under this Category

भारत प्यारा - आशीष यादव

इस मिट्टी से उस मिट्टी तक जीवन सफर हमारा हो।
हम रहें चाहे जहाँ भी पर दिल में भारत प्यारा हो।।
इसकी नदियां इसके झरने,
इसके मौसम के क्या कहने!
उत्तर में खड़ा हिमालय है,
दक्षिण में सागर की लहरें।
मेरी नजरों को बस जीवन भर यही नजारा हो।
हम रहें चाहे जहाँ भी पर दिल में भारत प्यारा हो।।
फूलों का यह गुलशन है,
रंग बिरंगे फूल खिले हैं।
हवा बिखेरे खुशबू इसकी,
महकती हुई धूल उड़े है।
इसके गुलशन में बस हरदम यूं ही बहार हो।
हम रहें चाहे जहाँ भी पर दिल में भारत प्यारा हो।।
...

वो पहले वाली बात कहाँ? - मोहम्मद आरिफ

वो पहले वाली बात कहाँ?
जब पंछी झूम के गाते थे
फूल भरे उस अंचल में
मदमस्त भौंरे इतराते थे।
...

आओ ! आओ ! भारतवासी । गीत  - बाबू जगन्नाथ

आओ ! आओ ! भारतवासी। 
क्या बंगाली ! क्या मदरासी ! ॥
...

कुछ तो सोचा ही होगा - बालकवि बैरागी

कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने
वरना सोचो ये दुनिया जीने के लायक क्यों होती?
तुम रोज सवेरे उठते हो और रोज रात को सोते हो
जब भी कोई मिलता है, अपना ही रोना रोते हो,
ये रोना-धोना बंद करो, कुछ हँसना-गाना शुरू करो
बेशक मरने को आए हो, पर बिना जिये तो नहीं मरो।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश