जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

Articles Under this Category

छाप तिलक सब छीनी - अमीर खुसरो

अपनी छवि बनाइ के जो मैं पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैंना मिलाइ के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाइ के।
...

उड़ान - राज हंस गुप्ता

ऊँचे नील गगन के वासी, अनजाने पहन पाहुन मधुमासी,
बादल के संग जाने वाले,
पंछी रे, दो पर दे देना !
सीमाओं में बंदी हम, अधरों पीते पीड़ा का तम:
तुम उजियारे के पंथी, मेरी अंधियारी राह अगम!
बांहों पर मोती बिखराए, आँखों पर किरणें छितराए,
ऊषा के संग आने वाले
पंछी रे, दो पर दे देना !
तुमसे तो बंधन अनजाने, तुम्हें कौन-से देस बिराने?
मैं बढूं जिधर उधर झेलूं अवरोधक जाने पहचाने|
अधरों पर मधुबोल संजोये, पावनता में प्राण भिगोये,
मुक्ति-गान सुनाने वाले
पंछी रे, दो पर दे देना !

- राज हंस गुप्ता
profgupt@gmail.com
...

सृजन-सिपाही - श्रवण राही

लेखनी में रक्त की भर सुर्ख स्याही
काल-पथ पर भी सृजन के हम सिपाही,
तप्त अधरों पर मिलन की प्यास लिखते हैं
हम धरा की देह पर आकाश लिखते हैं
...

मैंने जाने गीत बिरह के - आनन्द विश्वास

मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों ने पतवार छीन ली,
नैया जाती खाती गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है।
...

मोल करेगा क्या तू मेरा? - भगवद्दत ‘शिशु'

मोल करेगा क्या तू मेरा?
मिट्‌टी का मैं बना खिलौना;
मुझे देख तू खुशमत होना ।
कुछ क्षण हाथों का मेहमां हूं, होगा फिर मिट्‌टी में डेरा ।
मोल करेगा क्या तू मेरा ?
...

अश्कों ने जो पाया है - साहिर लुधियानवी

अश्कों ने जो पाया है वो गीतों में दिया है
इस पर भी सुना है कि जमाने को गिला है
...

तुमने मुझको देखा... - श्री गिरिधर गोपाल

तुमने मुझको देखा मेरा भाग खिल गया ।
मेघ छ्टे सूरज निकला हिल उठीं दिशाएं,
दूर हुईं पथ से बाधा मनसे चिंताएं,
तुमने अंक लगाया मेरा शाप धुल गया ।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश