जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
ग़ज़लें
ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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धूप से छाँव की.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन

धूप से छाँव की कहानी लिख
आह से आँसुओं की बानी लिख
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मेरे इस दिल में.. | ग़ज़ल - कुँअर बेचैन

मेरे इस दिल में क्या है क्या नहीं है
अभी तक मैंने ये सोचा नहीं है
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लोग उस बस्ती के यारो | ग़ज़ल - सुरेन्द्र चतुर्वेदी

लोग उस बस्ती के यारो, इस कदर मोहताज थे
थी ज़ुबां ख़ुद की मगर, मांगे हुए अल्फ़ाज़ थे
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संध्या नायर की दो ग़ज़लें  - संध्या नायर

कलम इतनी घिसो

कलम इतनी घिसो, पुर तेज़, उस पर धार आ जाए
करो हमला, कि शायद होश में, सरकार आ जाए
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टूट कर बिखरे हुए... - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

टूट कर बिखरे हुए इंसान कहां जाएंगे
दूर तक सन्नाटा है नादान कहां जाएंगे
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