जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
हाइकु
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कमलेश भट्ट कमल के हाइकु - कमलेश भट्ट कमल

कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना!

खाता है बेटा
तृप्त हो जाती है माँ
बिना खाए ही!

समुद्र नहीं
परछाईं खुद की
लाँघो तो जानें !

मुझ में भी हैं
मेरी सात पीढ़ियाँ
तन्हा नहीं मैं!

प्रकृति लिखे
कितनी लिपियों में
सौंदर्य-कथा!

सुन सको तो
गंध-गायन सुनो
पुष्प कंठों का!

पल को सही
बुझने से पहले
लड़ी थी लौ भी!
...

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