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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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हार और जीत |
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रावण या राम - जैनन प्रसाद | फीजी |
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मेरे देश की आँखें - अज्ञेय | Ajneya |
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जेल में क्या-क्या है - पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' |
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मंदिर-दीप - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
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'रंग दे बसंती चोला' अत्यंत लोकप्रिय देश-भक्ति गीत है। यह गीत किसने रचा? इसके बारे में बहुत से लोगों की जिज्ञासा है और वे समय-समय पर यह प्रश्न पूछते रहते हैं। |
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रहीम के दोहे - रहीम |
(1) |
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तुलसीदास | सोहनलाल द्विवेदी की कविता - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
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चीरहरण - जैनन प्रसाद | फीजी |
हँस रहे हैं आज |
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एक बैठे-ठाले की प्रार्थना - पं० बदरीनाथ भट्ट |
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गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी - कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra |
गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी |
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डॉ॰ सुधेश के मुक्तक - डॉ सुधेश |
प्राण का पंछी सवेरे क्यों चहकता है |
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दुनिया मतलब की गरजी, अब मोहे जान पडी ।।टेक।। |
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होली - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
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झूठों ने झूठों से... - राहत इन्दौरी |
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तू शब्दों का दास रे जोगी - राहत इन्दौरी |
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जल को तरसे हैं ... - जया गोस्वामी |
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जहाँ पेड़ पर... - बशीर बद्र |
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शहीदों के प्रति - भोलानाथ दर्दी |
भइया नहीं है लाशां यह बे कफ़न तुम्हारा |
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वीर सपूत - रवीन्द्र भारती | देशभक्ति कविता |
गंगा बड़ी है हिमालय बड़ा है |
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स्नेह-निर्झर बह गया है | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
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जीत तुम्हारी - विश्वप्रकाश दीक्षित ‘बटुक' |
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हिंडोला - अजय गुप्ता |
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कोमल मैंदीरत्ता की दो कविताएं - कोमल मैंदीरत्ता |
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सैनिक अनुपस्थिति में छावनी - वीरेन डंगवाल |
लाम पर गई है पलटन |
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मृत्यु-जीवन - हरिशंकर शर्मा |
फूल फबीला झूम-झूमकर डाली पर इतराता था, |
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कैसा समय - नासिर अहमद सिकन्दर |
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