जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

Articles Under this Category

बुराई का जोर बुरे पर  - दीन दयाल भार्गव

दो भाई थे। एक भूत की पूजा करता था, दूसरा भगवान की। भूत भगवान की पूजा करने वाले भाई को नाना प्रकार के लोभ-प्रलोभन दिखाता था, जिससे वह उसकी ओर आकृष्ट हो; परन्तु जब वह भाई इनसे विचलित नहीं हुआ तब वह भूत उसे तरह-तरह से डराने लगा। परन्तु जब इससे भी वह भाई अपनी भगवद्भक्ति में अटल रहा, तब तो भूत बड़ा निराश हुआ। एक दिन भूत ने अपनी पूजा करने वाले भाई को स्वप्न दिया और कहा, "देख तू अपने भगवान की पूजा करने वाले भाई को मना ले वरना तुझे मार डालूगा ।"
...

कलम और कागज़ - मुनिज्ञान

अपने ऊपर आती हुई कलम को देखते ही कागज़ ने कहा--जब भी तुम आती हो, मुझे सिर से लेकर पैर तक काले रंग से रंग देती हो। मेरी सारी शुक्लता और स्वच्छता को विनष्ट कर देती हो ।
...

स्वामी का पता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

गंगा जी के किनारे, उस निर्जन स्थान में जहाँ लोग मुर्दे जलाते हैं, अपने विचारों में तल्लीन कवि तुलसीदास घूम रहे थे।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश