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कहानियां |
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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इनाम - नागार्जुन | Nagarjuna |
हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया। |
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सती | कहानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
दो शताब्दियों से अधिक बीत गये हैं; पर चिंतादेवी का नाम चला आता है। बुंदेलखंड के एक बीहड़ स्थान में आज भी मंगलवार को सहस्त्रों स्त्री-पुरुष चिंतादेवी की पूजा करने आते हैं। उस दिन यह निर्जन स्थान सुहाने गीतों से गूँज उठता है, टीले और टोकरे रमणियों के रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुशोभित हो जाते हैं। देवी का मंदिर एक बहुत ऊँचे टीले पर बना हुआ है। उसके कलश पर लहराती हुई लाल पताका बहुत दूर से दिखायी देती है। मन्दिर इतना छोटा है कि उसमें मुश्किल से एक साथ दो आदमी समा सकते हैं। भीतर कोई प्रतिमा नहीं है, केवल एक छोटी-सी वेदी बनी हुई है। नीचे से मन्दिर तक पत्थर का जीना है। भीड़-भाड़ में धक्का खा कर कोई नीचे न गिर पड़े, इसलिए जीने की दीवार दोनों तरफ बनी हुई है। यहीं चिंतादेवी सती हुई थीं; पर लोकरीति के अनुसार वह अपने मृत पति के साथ चिता पर नहीं बैठी थीं। उनका पति हाथ जोड़े सामने खड़ा था; पर वह उसकी ओर आँख उठा कर भी न देखती थीं। वह पति-शरीर के साथ नहीं, उसकी आत्मा के साथ सती हुईं। उस चिता पर पति का शरीर न था, उसकी मर्यादा भस्मीभूत हो रही थी। |
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काबुलीवाला | रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
मेरी पाँच बरस की लड़की मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली, "बाबूजी, रामदयाल दरबान है न, वह 'काक' को 'कौआ' कहता है। वह कुछ जानता नहीं न, बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। "देखो, बाबूजी, भोला कहता है - आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी, भोला झूठ बोलता है, है न?" और फिर वह खेल में लग गई। |
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चोरी का अर्थ | लघु-कथा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar |
एक लम्बे रास्ते पर सड़क के किनारे उसकी दुकान थी। राहगीर वहीं दरख़्तों के नीचे बैठकर थकान उतारते और सुख-दुख का हाल पूछता। इस प्रकार तरोताजा होकर राहगीर अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाते। |
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