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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
Articles Under this Category |
हमने कोशिश करके देखी | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
हमने कोशिश करके देखी पत्थर को पिघलाने की |
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया |
अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे |
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जो तुम आ जाते एक बार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma |
कितनी करूणा कितने संदेश |
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अधिकार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma |
वे मुस्काते फूल, नहीं |
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मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma |
मैं नीर भरी दुःख की बदली, |
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तमाम घर को .... | ग़ज़ल - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek |
तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था |
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राष्ट्रगीत में भला कौन वह - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay |
राष्ट्रगीत में भला कौन वह |
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रहीम के दोहे - 2 - रहीम |
(21) |
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देश - शेरजंग गर्ग |
ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश |
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वंदन कर भारत माता का | काका हाथरसी की हास्य कविता - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । |
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राष्ट्रीय गान - रबींद्रनाथ टैगोर |
राष्ट्र-गान (National Anthem) संवैधानिक तौर पर मान्य होता है और इसे संवैधानिक विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित, 'जन-गण-मन' हमारे देश भारत का राष्ट्र-गान है। किसी भी देश में राष्ट्र-गान का गाया जाना अनिवार्य हो सकता है और उसके असम्मान या अवहेलना पर दंड का विधान भी हो सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के अवसर पर इसमें सम्मिलित न होकर, केवल आदरपूर्वक मौन खड़ा रहता है तो उसे अवहेलना नहीं कहा जा सकता। भारत में धर्म इत्यादि के आधार पर लोगों को ऐसी छूट दी गई है। |
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नया वर्ष - शास्त्री नित्यगोपाल कटारे |
नया वर्ष कुछ ऐसा हो पिछले बरस न जैसा हो |
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ऐसे में मनाएं बोलो कैसे गणतंत्र? - योगेन्द्र मौदगिल |
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आज़ाद हिंद फौज के कौमी तराने | संकलन - भारत-दर्शन संकलन |
आज़ाद हिंद फौज के क़ौमी तरानों का संकलन। |
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हमारा गणतंत्र - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
आज प्रजा की करता यहाँ पूछ कहाँ तंत्र है? |
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राष्ट्रीय गीत | National Song - बंकिम चन्द्र चटर्जी |
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्! |
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उत्प्रवासी - मोहन राणा |
महाद्वीप एक से दूसरे तक ले जाते अपनी भाषा |
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कबीर दोहे -3 - कबीरदास | Kabirdas |
(41) |
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मेरी कविता - कमला प्रसाद मिश्र |
मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा |
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मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं |
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हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम ! - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम ! |
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मैं अपनी ज़िन्दगी से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar |
मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ |
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ताजमहल - कमला प्रसाद मिश्र |
उमड़ा करती है शक्ति, वहीं दिल में है भीषण दाह जहाँ |
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पुराने ख़्वाब के फिर से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar |
पुराने ख़्वाब के फिर से नये साँचे बदलती है |
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घर | कविता - मोहन राणा |
धरती कर सकती है मिटा सकती है भूख सबकी |
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मैंने जाने गीत बिरह के - आनन्द विश्वास |
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है, |
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क़दम-क़दम बढ़ाये जा | अभियान गीत - वंशीधर शुक्ल |
क़दम-क़दम बढ़ाये जा |
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नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच |
कार लेकर क्या करूँगा? |
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शुभ सुख चैन की बरखा बरसे | क़ौमी तराना - भारत-दर्शन संकलन |
शुभ सुख चैन की बरखा बरसे |
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हम देहली-देहली जाएँगे - मुमताज हुसैन |
हम देहली-देहली जाएँगे |
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सुभाषजी | गीत - मुमताज़ हुसैन |
सुभाष जी |
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कुछ और नहीं है चाह मुझे | गीत - कमलेश कुमार वर्मा |
कुछ और नहीं है चाह मुझे |
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उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो - जी.एस. ढिल्लों |
उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो |
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas |
सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें। |
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हम भारत की बेटी हैं - अज्ञात |
हम भारत की बेटी हैं, अब उठा चुकीं तलवार |
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आजा़द हिन्द सेना ने जब - कप्तान रामसिंह ठाकुर |
आजा़द हिन्द सेना ने जब |
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है वक्त बड़ा बलशाली - प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी' |
वक्त ही दाता वक्त विधाता, वक्त बड़ा बलशाली |
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क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी |
क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ |
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तुलसी की चौपाइयां - तुलसीदास | Tulsidas |
किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।। |
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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी |
लोग क्या से क्या न जाने हो गए |
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बिला वजह आँखों के | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी |
बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या |
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मिलिए इस बहार से | गीत - सुभाष |
खिली है हर कली-कली, |
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अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत - गोपालदास ‘नीरज’ |
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए |
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जितना कम सामान रहेगा | नीरज का गीत - गोपालदास ‘नीरज’ |
जितना कम सामान रहेगा |
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गोपालदास नीरज के दोहे - गोपालदास ‘नीरज’ |
(1) |
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हटाओ धूल ये रिश्ते संभाल कर रक्खो | ग़ज़ल - अखिलेश कृष्णवंशी |
हटाओ धूल ये रिश्ते संभाल कर रक्खो, |
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तुझसे मिलकर हमें महसूस ये होता रहा है | ग़ज़ल - डा भावना |
तुझसे मिलकर हमें महसूस ये होता रहा है |
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वो जब भी | ग़ज़ल - डा भावना |
वो जब भी भूलने को बोलते हैं |
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जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती | ग़ज़ल - डॉ. मनु प्रताप सिंह |
जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती |
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ज़िंदगी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
लाचारी है, |
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तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया | ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान |
तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया |
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आपसे सच कहूँ मौसम हूँ | ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान |
आपसे सच कहूँ मौसम हूँ, बदल जाऊँगा |
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ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है | ग़ज़ल - डा अदिति कैलाश |
ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है |
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दो ग़ज़लें - प्रगीत कुँअर |
सबने बस एक नज़र भर देखा |
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अभी होली दिवाली | ग़ज़ल - शुभम् जैन |
अभी होली दिवाली साथ में रमज़ान देखा है, |
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दो पल | गीत - शिवशंकर वशिष्ठ |
दो पल को ही गा लेने दो । |
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मिले न मुझको सच्चे मोती | गीत - दिनेश गोस्वामी |
दूर-दूर तक ढूंढ़ा मैंने |
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एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए, |
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मरण काले - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
निराला के देहांत के पश्चात् उनके मृत शरीर का चित्र देखने पर हरिवंशराय बच्चन की लिखी कविता - |
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नव वर्ष - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan |
नव वर्ष |
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भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
वह आता -- |
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प्राप्ति | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
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तोड़ती पत्थर : कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
वह तोड़ती पत्थर; |
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यह कवि अपराजेय निराला - राम विलास शर्मा |
यह कवि अपराजेय निराला, |
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साँप! - अज्ञेय | Ajneya |
साँप! |
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एक बरस बीत गया | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee |
एक बरस बीत गया |
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दो ग़ज़लें - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar |
झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं |
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कही अल्लाह कही राम लिख देंगे - यतीन्द्र श्रीवास्तव |
कही अल्लाह कही राम लिख देंगे ! |
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