जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

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हमने कोशिश करके देखी | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी'

हमने कोशिश करके देखी पत्थर को पिघलाने की
पत्थर कभी नहीं पिघले अब मानी बात जमाने की।
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रंगीन पतंगें - अब्बास रज़ा अल्वी | ऑस्ट्रेलिया

अच्छी लगती थी वो सब रंगीन पतंगे
काली नीली पीली भूरी लाल पतंगे
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जो तुम आ जाते एक बार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

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अधिकार | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना।
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मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता - महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma

मैं नीर भरी दुःख की बदली,
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनो में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झनी मचली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
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तमाम घर को .... | ग़ज़ल  - ज्ञानप्रकाश विवेक | Gyanprakash Vivek

तमाम घर को बयाबाँ बना के रखता था
पता नहीं वो दीए क्यूँ बुझा के रखता था

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राष्ट्रगीत में भला कौन वह - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay

राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मख़मल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
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रहीम के दोहे - 2 - रहीम

(21)
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देश - शेरजंग गर्ग

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का काम नहीं होता है देश
संसद, सड़कों, आयोगों का नाम नहीं होता है देश
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वंदन कर भारत माता का | काका हाथरसी की हास्य कविता - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय ।
काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
...

राष्ट्रीय गान - रबींद्रनाथ टैगोर

राष्ट्र-गान (National Anthem) संवैधानिक तौर पर मान्य होता है और इसे संवैधानिक विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित, 'जन-गण-मन' हमारे देश भारत का राष्ट्र-गान है। किसी भी देश में राष्ट्र-गान का गाया जाना अनिवार्य हो सकता है और उसके असम्मान या अवहेलना पर दंड का विधान भी हो सकता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र गान के अवसर पर इसमें सम्मिलित न होकर, केवल आदरपूर्वक मौन खड़ा रहता है तो उसे अवहेलना नहीं कहा जा सकता। भारत में धर्म इत्यादि के आधार पर लोगों को ऐसी छूट दी गई है।
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नया वर्ष  - शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

नया वर्ष कुछ ऐसा हो पिछले बरस न जैसा हो
घी में उँगली मुँह में शक्कर पास पर्स में पैसा हो ।

भूल जाएँ सब कड़वी बातें पाएँ नई नई सौगातें
नहीं काटना पड़ें वर्ष में बिन बिजली गर्मी की रातें ।
कोई घपला और घुटाला काण्ड न ऐसा-वैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो...

बच्चे खुश हों खेलें खायें रोज सभी विद्यालय जायें
पढ़ें लिखें शुभ आदत सीखें करें शरारत मौज मनायें
नहीं किसी के भी गड्ढ़े में गिरने का अंदेशा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो...

युवा न भटकें गलियाँ-गलियाँ मिल जाएँ सबको नौकरियाँ
राहू केतु शुभ हो जाएँ मिल जाएँ सबकी कुण्डलियाँ
लड़की ऐश्वर्या-सी लड़का अभिषेक बच्चन जैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो...

स्वस्थ रहें सब वृद्ध सयाने बच्चे उनका कहना मानें
सेवा में तत्पर हो जाएँ आफिस कोर्ट कचहरी थाने
डेंगू और चिकनगुनियाँ का अब प्रतिबन्ध हमेशा हो
नया वर्ष कुछ ऐसा हो...

नए वर्ष में नूतन नारे बना सकें नेता बेचारे
गाली बकलें कोई किसी को पर जूते चप्पल न मारे
नहीं विश्व में अन्त किसी का बेनजीर के जैसा हो ।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो...

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ऐसे में मनाएं बोलो कैसे गणतंत्र? - योगेन्द्र मौदगिल


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आज़ाद हिंद फौज के कौमी तराने | संकलन - भारत-दर्शन संकलन

आज़ाद हिंद फौज के क़ौमी तरानों का संकलन।
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हमारा गणतंत्र - रोहित कुमार 'हैप्पी'

आज प्रजा की करता यहाँ पूछ कहाँ तंत्र है?
राजनीति धर्महीन मात्र एक षड्यंत्र है!
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राष्ट्रीय गीत | National Song - बंकिम चन्द्र चटर्जी

वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
...

उत्प्रवासी - मोहन राणा

महाद्वीप एक से दूसरे तक ले जाते अपनी भाषा
दुनिया और किसी अज्ञात के बीच एक घर साथ
ले जाते आम और पीपल का गीत
ले जाते कोई ग्रीष्म कोई दोपहर
ले जाते सूटकेस में गठरी एक साथ,
बाँध लेते अजवाइन का पराँठा भी सफर के लिए
लेते जाते अपने पुरचनियों का एक सपना जीते
लंबी रात जिसकी और दिन उनींदा
...

कबीर दोहे -3  - कबीरदास | Kabirdas

(41)
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥

(42)
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

(43)
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥

(44)
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥

(45)
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥

(46)
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।

(47)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥

(48)
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥

(49)
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

(50)
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥


गुरू महिमा पर कबीर दोहे  (Kabir Dohe on Guru)
...

मेरी कविता - कमला प्रसाद मिश्र

मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ा
मेरे सुप्त हृदय को जैसे स्मृतियों ने है सहसा चीरा
...

मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल - रोहित कुमार 'हैप्पी'

मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं
मैं जहां रहता था अब वो घर नहीं, बस्ती नहीं।
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हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !  - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियाँ मिल जाएँगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मरी उमर की डोर गहो तुम !
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम !
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मैं अपनी ज़िन्दगी से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ
ग़मों से गुफ़्तगू करता हूँ लेकिन मुस्कुराता हूँ
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ताजमहल - कमला प्रसाद मिश्र

उमड़ा करती है शक्ति, वहीं दिल में है भीषण दाह जहाँ
है वहीं बसा सौन्दर्य सदा सुन्दरता की है चाह जहाँ
उस दिव्य सुन्दरी के तन में
उसके कुसुमित मृदु आनन में
इस रूप राशि के स्वप्नों को देखा करता था शाहजहाँ
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पुराने ख़्वाब के फिर से | ग़ज़ल - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

पुराने ख़्वाब के फिर से नये साँचे बदलती है
सियासत रोज़ अपने खेल में पाले बदलती है
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घर | कविता - मोहन राणा

धरती कर सकती है मिटा सकती है भूख सबकी
पर तृप्त नहीं पाती लालसा एक इन्सान की कभी
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मैंने जाने गीत बिरह के - आनन्द विश्वास

मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों ने पतवार छीन ली,
नैया जाती खाती गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है।
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क़दम-क़दम बढ़ाये जा | अभियान गीत - वंशीधर शुक्ल

क़दम-क़दम बढ़ाये जा
खुशी के गीत गाये जा
यह ज़िन्दगी है कौम की
तू कौम पर लुटाये जा
बढ़ाये जा, क़दम-क़दम बढ़ाये जा।
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नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच

कार लेकर क्या करूँगा?
तंग उनकी है गली वह, साइकिल भी जा न पाती ।
फिर भला मै कार को बेकार लेकर क्या करूँगा?

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शुभ सुख चैन की बरखा बरसे | क़ौमी तराना - भारत-दर्शन संकलन

शुभ सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग्य है जागा
पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा
द्राविड़, उत्कल, बंगा
चंचल सागर, विंध्य हिमालय
नीला यमुना गंगा
तेरे नित गुण गाएं
तुझसे जीवन पाएं
सब जन पाएं आशा
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत नाम सुभागा
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो
भारत नाम सुभागा
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हम देहली-देहली जाएँगे  - मुमताज हुसैन

हम देहली-देहली जाएँगे
हम अपना हिंद बनाएँगे
अब फौ़जी बनके रहना है
दु:ख-दर्द, मुसीबत सहना है
सुभाष का कहना कहना है
चलो देहली चलके रहना है
हम देहली-देहली जाएँगे।
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सुभाषजी | गीत - मुमताज़ हुसैन

सुभाष जी
सुभाष जी
वह जाने हिन्‍द आ गए
है नाज़ जिस पे हिन्‍द को
वह जाने हिन्‍द आ गए
सुभाष जी
सुभाष जी
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कुछ और नहीं है चाह मुझे | गीत -  कमलेश कुमार वर्मा

कुछ और नहीं है चाह मुझे
......बन गुलाब मुस्कराओ तुम,
......हर ओर सुरभि फैलाओ तुम ,
......आशा के दीप जलाओ तुम ,
......जीवन की राह दिखाओ तुम ,
हे ! मन -मीत सवाँर मुझे ..........कुछ और नहीं है चाह ...
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उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो - जी.एस. ढिल्‍लों

उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो
आजा़दी यूँ लेते हैं जवाँ, ले के दिखा दो
खूँखार बनो शेर मेरे हिन्‍दी सिपाही
दुश्‍मन की सफ़े तोड़ दो एक तहलका मचा दो।
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas

सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।
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हम भारत की बेटी हैं - अज्ञात

हम भारत की बेटी हैं, अब उठा चुकीं तलवार
हम मरने से नहीं डरतीं, नहीं पीछे पाँव को धरतीं
आगे ही आगे बढ़तीं, कस कमर हुईं तैयार
हम भारत की बेटी...
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आजा़द हिन्‍द सेना ने जब - कप्तान रामसिंह ठाकुर

आजा़द हिन्‍द सेना ने जब
नेता जी का पैगाम लिया
जय हिन्‍द का नारा गूँज उठा
हाथों में तिरंगा थाम लिया।
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है वक्त बड़ा बलशाली - प्रदीप कुमार तिवारी 'साथी'

वक्त ही दाता वक्त विधाता, वक्त बड़ा बलशाली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली
खेल निराले वक्त के सारे,हर इक अदा निराली
है वक्त बड़ा बलशाली, है ये वक्त बड़ा बलशाली
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क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी

क्या कहें ज़िंदगी का फ़साना मियाँ
कब हुआ है किसी का ज़माना मियाँ
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तुलसी की चौपाइयां  - तुलसीदास | Tulsidas

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनूरूप।।
जथा अनेक वेष धरि नृत्य करइ नट कोइ ।
सोइ सोइ भाव दिखावअइ आपनु होइ न सोइ ।।
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लोग क्या से क्या न जाने हो गए | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी

लोग क्या से क्या न जाने हो गए
आजकल अपने बेगाने हो गए
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बिला वजह आँखों के | ग़ज़ल - डॉ. शम्भुनाथ तिवारी

बिला वजह आँखों के कोर भिगोना क्या
अपनी नाकामी का रोना रोना क्या
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मिलिए इस बहार से | गीत - सुभाष

खिली है हर कली-कली,
महक उठी है हर गली।
सुगंध उड़ के फूलों की,
हवा के संग-संग चली।
दिल ने कहा प्यार से,
मिलिए इस बहार से।
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अब तो मजहब कोई | नीरज के गीत  - गोपालदास ‘नीरज’

अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए
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जितना कम सामान रहेगा | नीरज का गीत  - गोपालदास ‘नीरज’

जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
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गोपालदास नीरज के दोहे - गोपालदास ‘नीरज’

(1)
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
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हटाओ धूल ये रिश्ते संभाल कर रक्खो | ग़ज़ल - अखिलेश कृष्णवंशी

हटाओ धूल ये रिश्ते संभाल कर रक्खो,
पुराना दूध है फिर से उबाल कर रक्खो।

वक़्त की सीढ़ियों पे उम्र तेज़ चलती है,
जवां रहोगे कोई शौक़ पाल कर रक्खो


ये दोस्ती औ' दुश्मनी का मसहला है जनाब,
कसौटियों पे कसो देख भाल कर रक्खो।

दबाओ होंठ में, उंगली पे बाँध लो चाहे ,
मैं आँचल हूँ, मुझे सीने पे डाल कर रक्खो।

कभी तो दिल की सुनो ये कहाँ ज़रूरी है,
हरेक बात को लफ़्ज़ों में ढाल कर रक्खो।

मैं आसमां में एक चाँद टांक आया हूँ ,
चलो तारा कोई तुम भी उछाल कर रक्खो।

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तुझसे मिलकर हमें महसूस ये होता रहा है | ग़ज़ल - डा भावना

तुझसे मिलकर हमें महसूस ये होता रहा है
तू सारी रात यूं ही जागकर सोता रहा है

हसीन ख्वाब की नरम जमीन से गुजरते हुए
कड़ी मिट्टी-सा कड़े जख्म संग सोता रहा है

पड़े थे छींटे जो दामन पर उछलकर तेरे
पूरी उम्र उसके दाग छुपकर धोता रहा है

कभी जो टूटकर बिखर गया था प्रेम का मोती
वह चुन-चुन कर उन दानों को पिरोता रहा है

पा लो भले तू मंजिलें और दौलत की नगरी
पाओगे कहां प्यार जो हर पल खोता रहा है

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वो जब भी | ग़ज़ल - डा भावना

वो जब भी भूलने को बोलते हैं
किसी शीशे से पत्थर तोड़ते हैं

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जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती | ग़ज़ल - डॉ. मनु प्रताप सिंह

जाने क्यों कोई शिकायत नहीं आती
नजर कहीं भी अब वो सूरत नहीं आती

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ज़िंदगी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

लाचारी है,
बीमारी है,
...फिर भी
ज़िंदगी सभी को प्यारी है!

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तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया | ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया
मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया

सबका भला करो,इसी में अपना है भला
जीवन में आगे आएगा सबके लिया दिया

हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम
कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया

हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु
परमात्मा ने प्रेम हमें सर्वथा दिया

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,
देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया

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आपसे सच कहूँ मौसम हूँ | ग़ज़ल - सूबे सिंह सुजान

आपसे सच कहूँ मौसम हूँ, बदल जाऊँगा
आज मैं बर्फ हूँ कल आग में जल जाऊँगा

सर्दियों में मैं समन्दर की तरफ भागूँगा
गर्मियों में मैं पहाडों पे निकल जाऊँगा

आपका प्यार बरसने लगा मुझ पर लेकिन,
आप बदलो या न बदलो मैं बदल जाऊँगा

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ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है | ग़ज़ल - डा अदिति कैलाश

ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है
दीवार-दर हो के भी घर सुनसान क्यूँ है

मुश्किल है अब तो जीना एक पल भी तेरे बिन
ये जान कर भी तू मुझसे यूँ अनजान क्यूँ है

कमी नहीं है प्यार की इस जहाँ में देख लो
पर हर शख्स यहाँ इतना परेशान क्यूँ है

दोस्ती से हसीं कुछ नहीं है इस जहाँ में यारों
हर दिल में यहाँ दुश्मनी का सामान क्यूँ है

नहीं सोचा था रह जाउंगी मै भी कभी यूँ तन्हा
सपनों के रास्तें में ये बड़ा शमशान क्यूँ है

ना जाने मेरी जिंदगी यूँ वीरान क्यूँ है
दीवार-दर हो के भी घर सुनसान क्यूँ है

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दो ग़ज़लें - प्रगीत कुँअर

सबने बस एक नज़र भर देखा
हमने मंज़र वो ठहर कर देखा

फिर से दुनिया में लौट आये हम
हमने सौ बार भी मर कर देखा

...

अभी होली दिवाली | ग़ज़ल - शुभम् जैन

अभी होली दिवाली साथ में रमज़ान देखा है,
तराशा हुस्न का नायाब वो एवान देखा है।।

हवाओं से चिरागों को बचाना और होता है,
घरों को तोड़ देता है कभी तूफ़ान देखा है?

सुने मैंने सभी किस्से अभी उम्मीद है बाकी,
अभी जिंदा ज़माने में वफ़ा ईमान देखा है।।

किताबों में न हो मौजूद वो नाकामियाँ मेरी,
मुझे देखो,कभी हारा हुआ इंसान देखा है?

'शुभम्' वो रोज़ आते थे कभी मेरी भी गलियों में,
यहाँ थी रौशनी तुमने जिसे वीरान देखा है।।

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दो पल | गीत -  शिवशंकर वशिष्ठ

दो पल को ही गा लेने दो ।
गाकर मन बहला लेने दो !
...

मिले न मुझको सच्चे मोती | गीत - दिनेश गोस्वामी

दूर-दूर तक ढूंढ़ा मैंने
सागर-तक की गहराई में,

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एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

...

मरण काले - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

निराला के देहांत के पश्चात् उनके मृत शरीर का चित्र देखने पर हरिवंशराय बच्चन की लिखी कविता -

मरा
मैंने गरुड़ देखा,
गगन का अभिमान,
धराशायी,धूलि धूसर, म्लान!

मरा
मैंने सिंह देखा,
दिग्दिगंत दहाड़ जिसकी गूँजती थी,
एक झाड़ी में पड़ा चिर-मूक,
दाढ़ी-दाढ़-चिपका थूक।

मरा
मैंने सर्प देखा,
स्फूर्ति का प्रतिरूप लहरिल,
पड़ा भू पर बना सीधी और निश्चल रेख।

मरे मानव-सा कभी मैं
दीन, हीन, मलीन, अस्तंगमितमहिमा,
कहीं, कुछ भी नहीं पाया देख।

क्या नहीं है मरण
जीवन पर अवार प्रहार? -
कुछ नहीं प्रतिकार।

क्या नहीं है मरण
जीवन का महा अपमान?-
सहन में ही त्राण।

क्या नहीं है मरण ऐसा शत्रु
जिसके साथ, कितना ही सम कर,
निबल निज को मान,
सबको, सदा,
करनी पड़ी उसकी शरण अंगीकार?-

क्या इसी के लिए मैंने
नित्य गाए गीत,
अंतर में सँजोए प्रीति के अंगार,
दी दुर्नीति को डटकर चुनौती,
ग़लत जीती बाज़ियों से
मैं बराबर
हार ही करता गया स्वीकार,
एक श्रद्धा के भरोसे
न्याय, करुणा, प्रेम - सबके लिए
निर्भर एक ही अज्ञात पर मैं रहा
सहता बुद्धि व्यंग्य प्रहार?

इस तरह रह
अगर जीवन का जिया कुछ अर्थ,
मरण में मैं मत लगूँ असमर्थ!

...

नव वर्ष - हरिवंश राय बच्चन | Harivansh Rai Bachchan

नव वर्ष
हर्ष नव
जीवन उत्कर्ष नव
...

भिक्षुक | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

वह आता --
दो टूक कलेजे के करता--
पछताता पथ पर आता।
...

प्राप्ति | कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'


तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिरा‌एँ हु‌ईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।

...

तोड़ती पत्थर : कविता | सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'

वह तोड़ती पत्‍थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर-
वह तोड़ती पत्‍थर।
...

यह कवि अपराजेय निराला  - राम विलास शर्मा

यह कवि अपराजेय निराला,
जिसको मिला गरल का प्याला;
ढहा और तन टूट चुका है,
पर जिसका माथा न झुका है;
शिथिल त्वचा ढल-ढल है छाती,
लेकिन अभी संभाले थाती,
और उठाए विजय पताका-
यह कवि है अपनी जनता का!

...

साँप! - अज्ञेय | Ajneya

साँप!
...

एक बरस बीत गया | कविता - अटल बिहारी वाजपेयी | Atal Bihari Vajpayee

एक बरस बीत गया
झुलसाता जेठ मास
शरद चाँदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
...

दो ग़ज़लें  - कृष्ण सुकुमार | Krishna Sukumar

झील, समुंदर, दरिया, झरने उसके हैं
मेरे  तश्नालब  पर  पहरे  उसके  हैं

हमने दिन भी अँधियारे में काट लिये
बिजली, सूरज, चाँद-सितारे उसके हैं

चलना मेरी ज़िद में शामिल है वर्ना
उसकी मर्ज़ी,  सारे रस्ते  उसके  हैं

जिसके आगे हम उसकी कठपुतली हैं
माया  के  वे  सारे  पर्दे  उसके  हैं

मुड़ कर पीछे शायद ही अब वो देखे
हम पागल ही आगे-पीछे  उसके  हैं

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कही अल्लाह कही राम लिख देंगे - यतीन्द्र श्रीवास्तव

कही अल्लाह कही राम लिख देंगे !
इंक़लाब का तूफ़ान लिख देंगे !!
जितना मर्ज़ी चाहे मिटा लो दुनिया वालो !
हम ज़र्रे ज़र्रे में हिंदुस्तान लिख देंगे !!

ज़मीने बदल गई , आसमान बदल गए !
इक चादर में सोने वालो के मकाँ बदल गए !!
इस बदलाव के नाम एक पैग़ाम लिख देंगे !
हम हर उगते हुए माथे पे एक हिंदुस्तान लिख देंगे !!

सच कि तलाश में आईने निकल गए !
अँधेरा इतना गर्म था कि उजाले पिघल गए !!
हम ऐसे मौसम के नाम फ़रमान लिख देंगे !
मंदिरो कि हवाओं पे अ- सलाम लिख देंगे !!

न रहे राज़ कोई न राज़दारी रहे !
दुनिया में कुछ रहे तो ईमान और वफादारी रहे !!
हर बिगड़े हुए ईमान को बे-ईमान लिख देंगे !
हम हर जुबां पे सर ज़मीने-ए-हिंदुस्तान लिख देंगे !!

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